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भविष्य उन्मुख व वृद्धिपरक बजट

वित्तमंत्री ने वित्तीय घाटा धीरे-धीरे कम करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता फिर जताते हुए राजस्व खर्च को कम और पूंजी खर्च को अधिक रखा है.

वर्ष 2022-23 के बजट प्रस्ताव और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का संबोधन कई अर्थों में भविष्य की ओर उन्मुख तथा वृद्धिपरक हैं. फिर भी न्यायिक, प्रशासनिक एवं पुलिस सुधार किनारे रखे गये हैं. इससे अन्य क्षेत्रों में हुए सुधारों (विशेषकर कारोबारी और रहन-सहन की सुगमता के मामले में) से हुए ठोस लाभों के खत्म होने का खतरा है. सुर्खियों से परे बजट के कुछ मुख्य तत्व दिखते हैं.

पहला इसका भविष्योन्मुखी होना है. सूचना तकनीक, ड्रोन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन, डिजिटल करेंसी, यहां तक कि डिस्ट्रिब्यूटेड फाइनेंस जैसे उभरते क्षेत्रों पर बजट में ध्यान दिया गया है. साथ ही हरित और चक्रीय आर्थिकी पर भी ध्यान दिया गया है. ई-गवर्नेंस तथा डिजिटल विषमता को पाटने के लिए प्रस्तावित निवेश से उत्पादकता और रहन-सहन में बेहतरी आयेगी.

संचार, विनिर्माण, व्यापार, वितरण एवं मनोरंजन के अलावा रक्षा और कृषि में तकनीक के लाभ का विस्तार करने का विचार व्यापक व भविष्योन्मुखी है. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र के दायरे को बढ़ाना तथा विदेशी विश्वविद्यालयों के कामकाज के साथ वैश्विक खिड़की खोलना अर्थव्यवस्था के उछाल का आधार बनेंगे.

बजट की दूसरी विशेषता इसकी पूर्णता है. ‘गति शक्ति’ योजना से उत्पादों व सेवाओं की मांग बढ़ने तथा आपूर्ति कड़ी का खर्च कम होने और भंडारण प्रबंधन बेहतर होने से पूरी अर्थव्यवस्था को लाभ होगा. आशा है कि स्टार्टअप, वेंचर पूंजी और निजी इक्विटी की सुविधा से नवोन्मेष बढ़ाने तथा वैश्विक स्तर की वस्तुएं और सेवाओं के सृजन में मदद मिलेगी.

बजट का तीसरा मुख्य तत्व वृद्धि है. सार्वजनिक पूंजी व्यय को 35 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 7.5 लाख करोड़ रुपये करने के साथ अतिरिक्त एक लाख करोड़ रुपये की पूंजी उपलब्ध होगी, जो राज्य सरकारों को बिना ब्याज के दी जायेगी. इससे वृद्धि को गति मिलेगी तथा निजी पूंजी खर्च के लिए राह हमवार होगी. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की उच्च दर के लिए बहुत निवेश की जरूरत होती है.

निजी व सरकारी क्षेत्र के निवेश से 30 प्रतिशत निरंतर निवेश मुहैया हो सकता है, जिससे 7-8 फीसदी सतत वृद्धि की संभावना बनेगी. निजी क्षेत्र व बैंकों का लेखा-जोखा साफ-सुथरा होने के बावजूद कोई हिचक गति को बाधित कर रही है. सरकारी खर्च बढ़ाने के प्रस्ताव से उन्हें उत्साह मिलेगा.

एक अहम तत्व रोजगार है. कृषि के बाद देश के तीन सबसे बड़े रोजगारदाता हैं- निर्माण, इंफ्रास्ट्रक्चर और मैनुफैक्चरिंग. सस्ते आवास और सस्ते वित्त के लिए अधिक आवंटन से निर्माण क्षेत्र में उभार होगा. ‘गति शक्ति’ मिशन में अकेले ही बड़े पैमाने पर रोजगार के मौके मुहैया कराने की क्षमता है. पिछले साल शुरू हुई उत्पादन से संबंधित प्रोत्साहन योजना (पीएलआइ स्कीम) ने मैनुफैक्चरिंग में जान फूंकी है़ निर्यात को बढ़ावा दिया है और लाखों रोजगार पैदा किया है.

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक साक्षात्कार में बताया है कि इलेक्ट्रॉनिक मैनुफैक्चरिंग सेक्टर का लक्ष्य तीन सालों में 300 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात का है और इसमें एक करोड़ से अधिक रोजगार पैदा होंगे. करों से संबंधित प्रस्तावों में मौजूदा दरों में बदलाव नहीं करना स्थिरता के माहौल को इंगित करता है. असल में, बजट में पूंजी लाभ कर और कुछ शुल्कों की कमियों को ठीक करने का प्रयास किया गया है.

थोक एवं खुदरा मूल्य सूचकांक जीडीपी वृद्धि के लिए खतरा बन गये हैं. मुद्रास्फीति से आबादी के बड़े हिस्से से आर्थिक वृद्धि के लाभ छिन जाने का खतरा भी है. इसलिए वित्तमंत्री ने वित्तीय घाटा धीरे-धीरे कम करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता फिर जतायी है तथा राजस्व खर्च को कम और पूंजी खर्च को अधिक रखा है. बजट प्रस्तावों के आंकड़ों से पारदर्शिता झलकती है.

कर प्रक्रिया को सरल बनाने तथा करदाताओं में भरोसा पैदा करने की यात्रा जारी रखी गयी है. डिजिटल ब्यौरा देना, बिना मौजूदगी आकलन व अपील, आर्थिकी का डिजिटाइजेशन, डाटा संग्रहण और सबसे अहम भरोसे की बहाली से कर संग्रहण में उछाल है. इसमें जीडीपी वृद्धि का भी निश्चित योगदान है. बहुत अधिक राजस्व के बावजूद गरीब आबादी की परेशानी को धन देकर कम नहीं करने की आलोचना कुछ हद तक ही ठीक है.

वैश्विक स्तर पर महामारी का साया है, साथ ही राष्ट्रवाद तथा भू-राजनीतिक तनाव भी उभर रहे हैं. ये सब एक-दूसरे से संबद्ध हैं. उत्पादन के कारकों- भूमि, श्रम और पूंजी- के प्रभावी आवंटन सुनिश्चित करने के संबंध में पहली पीढ़ी के सुधार हो चुके हैं. विकास की राह के साथ छोटे-छोटे बदलावों का सिलसिला जारी रहेगा. मूल्य सृजन में बढ़ोतरी, जिसे अर्थशास्त्री टोटल फैक्टर प्रोडक्टिविटी (टीएफपी) कहते हैं, को सांस्थानिक सुधारों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है.

बजट से पूर्व प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में इसे प्रक्रिया सुधार के रूप में उल्लिखित किया है. नीतिगत निर्णयों को अपेक्षित परिणामों के लिए लागू करने के लिए संस्थागत ढांचे में प्राधिकार एवं प्रतिनिधित्व की आवश्यकता होती है. इसमें प्रक्रिया प्रबंधन की खामियों की पहचान कर नीति के लक्ष्य को बाधित करनेवालों के लिए भी रास्ता खुल जाता है.

एक्जिट नीति मोदी सरकार के सुधारों में प्रमुख है और इसके उद्देश्यों की प्राप्ति के प्रयास सबसे अच्छे कानूनों में एक- दिवालिया कानून- के जरिये हुआ. दुर्भाग्य से पांच वर्षों के अनेक संशोधनों और समुचित न्यायिक व्यवस्था करने के बावजूद इसके अपेक्षित परिणाम नहीं आये हैं.

संविदा के लागू करने के मामले में 180 से अधिक देशों में भारत का स्थान 168वां है. इसमें औसतन 1200 से अधिक दिन लग जाते हैं और संविदा के मूल्य के 25 प्रतिशत हिस्से से अधिक खर्च हो जाता है. और भी अनेक क्षेत्र हैं, जहां देरी, लागत और न्याय के अभाव जैसी चिंताएं जतायी गयी हैं. न्यायिक व्यवस्था, नौकरशाही और पुलिस में बदलाव लंबे समय से प्रतीक्षित है.

छोटे फेर-बदल या सुधार से काम नहीं चलेगा. संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप इन संस्थाओं के पुनर्निर्माण की आवश्यकता है. जब तक ऐसा नहीं होता, कारोबारी सुगमता, विशेषकर रहन-सहन की सुगमता, दूर की कौड़ी बनी रहेगी. कुल मिलाकर, भविष्योन्मुखी बजट को साकार करने के लिए मिशन मोड में काम करना होगा. कामकाज व प्रक्रिया की गति में बड़ी वृद्धि करनी होगी. वैश्विक वातावरण और भारत की जनसांख्यिकी देश को नयी राह पर ले जाने का आखिरी मौका दे रहे हैं. इसलिए ध्यान नीतियों को साकार करने पर केंद्रित किया जाना चाहिए.

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