आसेतु हिमालय भारत, सांस्कृतिक रूप से एक है. यह भारत के राष्ट्र जीवन का एकात्मबोध है. आदि सनातन से इसका स्वरूप कमोबेश यही रहा है. बाहरी हस्तक्षेप या सैन्य आक्रमण के कारण यदि किसी भौगोलिक क्षेत्र में थोड़ा-बहुत बदलाव आया, तो उसका प्रभाव संपूर्ण उपमहाद्वीप पर पड़ा है. बार-बार आक्रमण होने के कारण कई बाहरी मान्यताओं ने इस देश के जन-मन को प्रभावित तो किया, लेकिन कालांतर में उसने कायांतरित चट्टानों की तरह अपने स्वरूप में आमूलचूल परिवर्तन कर लिया. भारत की संस्कृति, धर्म, मान्यता और चिंतन का यदि सही आकलन और मूल्यांकन करना है, तो कदाचित आदिवासी समाज को समझना बेहद जरूरी है.
बार-बार समाचार माध्यमों में यह चर्चा की जाती है कि आदिवासी समाज भारतीय आदि सनातन संस्कृति का अंग नहीं है. यह षड्यंत्र मीमांसा का विषय है, लेकिन कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि आदिवासी जन-मन भारत की एकात्म और आदि संस्कृति का विरोधी रहा है. बृहत्तर जनजातीय समाज में भी कई धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सुधार के आंदोलन देखने को मिलते हैं.
संत सुरमल दास भील, मतंग ऋषि, बिरसा मुंडा, तात्या भील, झलकारी बाई, बाबा पिथोरा देव, जतरा टाना भगत, सफाहोड़ आदि नाम ऐसे हैं जिन्होंने आदिवासी समाज में नयी चेतना का संचार किया. इन संतों एवं समाज सुधारकों ने व्यापक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक आंदोलन प्रारंभ किये और समाज के उत्थान में उद्धारक की भूमिका निभायी.
जतरा टाना भगत के अभिन्न सहयोगी मिकू भगत ने आदिवासी समाज को उन्नत बनाने में अभूतपूर्व भूमिका निभायी. जतरा और मिकू दोनों एक ही गुरु, तुरिया भगत के शिष्य थे. दोनों आपस में साले और बहनोई भी थे. दोनों ने मिल कर टाना भगत आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की. फिरंगियों के खिलाफ यह आंदोलन आदिवासी समाज का निर्णायक आंदोलन माना जाता है. पूरे छोटानागपुर क्षेत्र में टाना भगत आंदोलन फैल गया.
टाना भगत आंदोलन के प्रणेता जतरा को वर्ष 1916 में गिरफ्तार कर लिया गया. उनके साथ मिकू भगत को भी गिरफ्तार किया गया, लेकिन मिकू भगत ने राजनीतिक आंदोलन से खुद को अलग रखने की बात कही. उन्होंने कहा कि उनका आंदोलन विशुद्ध रूप से धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आंदोलन है. फिरंगी सरकार ने मिकू भगत को छोड़ दिया. इसके बाद मिकू भगत का संप्रदाय, जिसे विशनु भगत कहा जाता है टाना भगत आंदोलन के लिए मंझे हुए कार्यकर्ता तैयार करने लगा.
इसके कारण लाख कोशिशों के बाद भी अंग्रेजी हुकूमत, टाना भगत आंदोलन को पूर्ण रूप से कुचलने में नाकाम रही. मिकू भगत समाज सुधार में लग गये. आगे चल कर मिकू भगत कोठदार बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए. मिकू भगत, गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड के अरंगलोया गांव के रहनेवाले थे. विशनु भगत संप्रदाय के प्रणेता कोठदार बाबा यानी मिकू भगत के नाम पर नीमटांड के गुरुगांव जाहूप में एक जड़ी-बूटी विकास केंद्र भी चलता है.
संस्था इसी वर्ष जाहूप में आगामी दो अक्तूबर को कोठदार बाबा की प्रतिमा भी स्थापित कर रही है. कोठदार बाबा आदिवासी समाज के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक नवचेतना के अग्रदूत हैं. इस आंदोलन को वैष्णव भक्ति आंदोलन कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. विशनु भगत संप्रदाय से जुड़ा समाज आर्थिक रूप से समृद्ध हुआ. इस समाज ने आदिवासी समाज की कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाया. आज इस संप्रदाय का प्रभाव झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में देखने को मिलता है.
आदिवासी समाज में लाखों की संख्या में कोठदार बाबा के अनुयायी आदि सनातन धर्म और संस्कृति की अलख जगा रहे हैं. साम्राज्यवादी और पश्चिमी षड्यंत्र के कारण मिकू भगत के अहिंसक एवं सामाजिक सुधार आंदोलन को न तो कभी मान्यता दी गयी और न ही उसका तटस्थ मूल्यांकन किया गया. यदि इस आंदोलन के आदर्श के रूप को प्रस्तुत किया जाता तो इसका लाभ न केवल वनवासी क्षेत्र के लोगों को मिलता, अपितु पूरे देश पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता.
आगे चल कर टाना भगत संप्रदाय कई हिस्सों में बंट गया, लेकिन सबका लक्ष्य भारतीय आदि सनातन धार्मिक धारा का संरक्षण रहा. टाना भगत आंदोलन अंत में महात्मा गांधी के अहिंसक राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गया और देश को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. मिकू भगत ने भाषा को समृद्ध बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. कई ऐसी शब्दावलियों का निर्माण किया, जिससे कुड़ुख भाषा को मजबूती मिली.
स्वदेशी अर्थ चिंतन, स्वावलंबन, आदि सनातन आधारित सामाजिक और धार्मिक संरचना, विशनु भगत सुधारवादी आंदोलन की देन है. कोठदार बाबा ने शिष्यों को जड़ी-बूटियों का ज्ञान भी उपलब्ध कराया. झारखंड के आदिवासी समाज में आंदोलनों की लंबी शृंखला है. इनमें कोठदार बाबा के आंदोलन की अलग अहमियत है, जिस पर राष्ट्रीय विमर्श की जरूरत है.