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राजस्व में वृद्धि

बीते कुछ समय से सरकार ने कराधान प्रणाली में अनेक सुधार किया है तथा तकनीक के उपयोग से समूची प्रक्रिया सुगम भी हुई है.

वर्तमान वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में अपेक्षा से अधिक राजस्व संग्रहण हुआ है, जो बीते पांच वर्षों में सबसे अधिक है. यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इन्हीं महीनों में देश को कोरोना महामारी की भयावह दूसरी लहर से जूझना पड़ा था. इन तीन महीनों का कुल राजस्व संग्रहण बजट में लक्षित पूरे वित्त वर्ष के राजस्व का लगभग 28 फीसदी हो सकता है. महामारी से पहले के तीन वर्षों में इस अवधि में केवल 14 फीसदी संग्रहण ही हो पाता था.

यदि हम 2019 के अप्रैल, मई और जून के आंकड़े की तुलना में देखें, तो वर्तमान संग्रहण की वार्षिक वृद्धि दर 15 प्रतिशत है. प्रत्यक्ष करों में बढ़त बहुत उत्साहजनक है. कंपनियों ने इस बार 2019 के उन महीनों से 75 प्रतिशत और व्यक्तियों ने 27 प्रतिशत अधिक कर चुकाया है. स्रोत पर 10 प्रतिशत की कर कटौती के अलावा, इन श्रेणियों में करदाताओं को वर्ष भर के कर अनुमान का 15 फीसदी हिस्सा 15 जून तक जमा करना होता है.

अप्रत्यक्ष कर संग्रहण की गति धीमी है. पहली तिमाही में वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण में बढ़ोतरी 11 प्रतिशत है. यह भी उत्साहजनक है क्योंकि पूरे राजस्व में इसका योगदान लगभग एक-तिहाई है. बीते कुछ समय से सरकार ने कराधान प्रणाली में अनेक सुधार किया है तथा तकनीक के उपयोग से समूची प्रक्रिया सुगम भी हुई है. पहले कम संग्रह होने की एक वजह तो यह थी कि प्रणाली की गति कम थी और दूसरी वजह थी कि बजट में संग्रहण का लक्ष्य अधिक रखा जाता था.

पर, अब इन वास्तविकताओं के आधार पर ही आशा का निर्धारण हो रहा है. इन आंकड़ों को अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़त के साथ देखा जाना चाहिए. दूसरी लहर की आक्रामकता से कुछ समय के लिए ऐसा लगने लगा था कि पहली लहर की तरह इस बार भी अर्थव्यवस्था पर बड़ा आघात हो सकता है. लेकिन पहले के अनुभवों से लाभ उठाते हुए सरकारों ने पाबंदियों को सोच-समझ कर लागू किया ताकि आर्थिक गतिविधियां जारी रहें.

टीकाकरण अभियान ने भी इसमें बड़ा योगदान किया है. उत्पादन, निर्यात, निवेश और रोजगार के मोर्चे पर सकारात्मक रूझान हैं. मांग में भी धीरे धीरे वृद्धि हो रही है. इन संकेतों के आधार पर वृद्धि दर के संतोषजनक रहने का अनुमान लगाया जा रहा है. संग्रह अधिक और समय से होने से कल्याणकारी योजनाओं और परियोजनाओं में व्यय करने में सरकार को सहूलियत होती है.

लेकिन बीती तिमाही में सरकार ने बजट में उल्लिखित पूंजी व्यय लक्ष्य का केवल 20 प्रतिशत ही खर्च किया है. पूरे खर्च का हिसाब भी पूरे साल के बजट का 24 प्रतिशत ही है, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे कम है. इस असंतुलन पर ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि बाजार में मांग बढ़े क्योंकि उसका एक बड़ा आधार सरकारी खर्च होता है. मांग बढ़ने से अर्थव्यवस्था को लाभ होगा और कर संग्रहण भी बढ़ेगा.

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