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ड्रोन हमले की चुनौती

न केवल कश्मीर घाटी और सीमावर्ती क्षेत्रों में चौकसी मुस्तैद होनी चाहिए, बल्कि देश के बाकी हिस्सों में भी समुचित सतर्कता बरतनी चाहिए.

जम्मू-कश्मीर में बीते दिनों ड्रोन से हुए आतंकी हमलों और ड्रोनों की गतिविधियों ने विशेष सुरक्षा इंतजाम करने की जरूरत को रेखांकित किया है. जम्मू हवाई अड्डे का इस्तेमाल मुख्य रूप से अति विशिष्ट व्यक्तियों तथा सुरक्षा बलों के आवागमन के लिए होता है. यहां स्थित वायु सेना के ठिकाने पर दो हमले तब हुए, जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लद्दाख सीमा क्षेत्र की यात्रा पर थे. इन घटनाओं को केंद्र सरकार ने बेहद गंभीरता से लिया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में स्थिति की समीक्षा की गयी है.

रिपोर्टों के अनुसार, जल्दी ही राज्य में ड्रोनों के हमलों को रोकने के लिए आवश्यक तकनीक और साजो-सामान की व्यवस्था की जायेगी. इन घटनाओं के पीछे पाकिस्तान-स्थित आतंकी गिरोह लश्करे-तैयबा का हाथ होने का संकेत है, लेकिन विस्तृत जानकारी बाद में ही मिल सकेगी. पाकिस्तान और उसकी शह पर कश्मीर में अशांति और आतंक फैलानेवाले गिरोह हथियारों और धन की आपूर्ति के लिए ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करते रहे हैं.

कई सालों से अनेक देशों में सक्रिय हिंसक समूह भी ड्रोनों का उपयोग करते रहे हैं. कुछ समय पहले मध्य भारत के माओवाद प्रभावित इलाकों में भी ड्रोनों को देखा गया है. हालांकि अब ऐसे तकनीकी खतरों को नाकाम करने के लिए ठोस कदम उठाने के फैसले हो रहे हैं, पर यह काम पहले ही किया जाना चाहिए था. कश्मीर घाटी में आतंकवाद पर काबू पाने में सुरक्षाबलों को लगातार कामयाबी मिली है और अलगाववादी संगठनों का प्रभाव भी कम हो रहा है. ऐसे में पाकिस्तान और उसके इशारों पर सक्रिय समूह नये सिरे से अपनी गतिविधियों को बढ़ाने की कोशिश में हैं.

ड्रोन और इस तरह की तकनीकों का उपयोग सुरक्षाबलों और सेना द्वारा बहुत समय से हो रहा है. ऐसे में यह अंदेशा पहले से ही था कि ये तकनीक आतंकियों को भी उपलब्ध हो सकते हैं. कुछ साल पहले ड्रोन के असैनिक इस्तेमाल के संबंध में नियम भी जारी हो चुके हैं और अधिक क्षमता के ड्रोनों के लिए लाइसेंस भी अनिवार्य कर दिया गया है. इसके बावजूद ड्रोनों की खरीद-बिक्री पर पूरी निगरानी रखना मुश्किल है. दूसरी तरफ चीन और पाकिस्तान जैसे आक्रामक पड़ोसी देश भी हैं, जो हिंसक और आतंकी संगठनों के लिए हथियारों और तकनीक का स्रोत हो सकते हैं.

ऐसी स्थिति में न केवल कश्मीर घाटी और सीमावर्ती क्षेत्रों में चौकसी मुस्तैद होनी चाहिए, बल्कि देश के बाकी हिस्सों में भी समुचित सतर्कता बरतनी चाहिए. भारत ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचने की कोशिश की है. आतंकवाद तथा आतंक का प्रसार करने में सूचना और संचार तकनीक के दुरुपयोग को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता बढ़ गयी है. इस संबंध में अपनी सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के साथ भारत को अन्य देशों को लामबंद करने पर भी जोर देना चाहिए.

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