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खतरा बनता प्लास्टिक

न्यूनतम प्लास्टिक उपयोग वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते हुए शुरुआत उन प्लास्टिकों पर प्रतिबंध से होनी चाहिए, जिनका पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता.

एक बार इस्तेमाल होने के बाद कचरे में तब्दील हो जानेवाला प्लास्टिक गंभीर पर्यावरणीय संकट बन रहा है. यह समस्या समुद्र की गहराई से लेकर हिमालय की ऊंचाई तक व्याप्त है. दुनियाभर में व्यापक पैमाने पर प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल होता है, इतना कि उससे फ्रांस के दोगुने भौगोलिक आकार को ढंका जा सकता है. कई अध्ययन बताते हैं कि जमीन और समुद्र की गहराईयों में पहुंच रहे इस प्लास्टिक को विघटित होने में हजारों वर्ष लग जाते हैं.

मिट्टी, पानी को दूषित करनेवाला प्लास्टिक पर्यावरण और जीव-जंतुओं के लिए आपदा बन रहा है. भारत सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने की दिशा में बड़ी पहल करने जा रहा है. प्लास्टिक इस्तेमाल के तौर-तरीकों और उसके पर्यावरणीय दुष्प्रभावों के आकलन के आधार पर केंद्र सरकार की एक समिति ने कुछ स्वागतयोग्य प्रस्ताव दिये हैं. नया मसौदा वर्ष 2016 में अधिसूचित और 2018 में संशोधित मौजूदा नियमों को प्रतिस्थापित करेगा.

मसौदे में 1 जनवरी, 2022 से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उत्पादन, आयात, भंडारण, वितरण और ब्रिकी पर रोक संबंधी प्रावधान हैं. तीन चरणों में एकल उपयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक प्रभावी ढंग से लागू की जायेगी. प्लास्टिक स्टिक, गुब्बारे, थर्मोकोल, प्लेट, कप, कटलरी, स्ट्रॉ, प्लास्टिक पैकेट, बैनर्स आदि को सिलसिलेवार ढंग से प्रतिबंधित किया जायेगा.

आखिरी चरण में 240 माइक्रोन से कम मोटे बिना-बुनाई वाले बैग आदि बैन होंगे. इलेक्ट्रिकल फिटिंग, टेबलवेयर में इस्तेमाल होनेवाले थर्मोसेट प्लास्टिक और खिलौनों, कंघों तथा मग में इस्तेमाल होनेवाले थर्मोप्लास्टिक का भी पहली बार जिक्र किया गया है. समिति ने उपयोगिता (स्वच्छता, उत्पाद सुरक्षा, अनिवार्यता, सामाजिक और आर्थिक प्रभाव) और पर्यावरणीय प्रभाव (एकत्रीकरण, पुनर्चक्रण, समाधान की संभावना, वैकल्पिक सामग्री का पर्यावरणीय प्रभाव तथा कूड़े की प्रवृत्ति) के अहम कारकों का अध्ययन किया है.

प्लास्टिक पर निर्भरता कम करने की दिशा में निश्चित ही यह बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है. हालांकि, कचरा बीनने वालों के लिए आजीविका की वैकल्पिक व्यवस्था पर भी हमें गौर करना होगा. देश में प्लास्टिक पुनर्चक्रण शृंखला से करीब 15 लाख कूड़ा बीनने वाले जुड़े हुए हैं. न्यूनतम प्लास्टिक उपयोग वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते हुए शुरुआत उन प्लास्टिकों पर प्रतिबंध से होनी चाहिए, जिनका पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता. भारत में सालाना 94.6 लाख टन कचरा निकलता है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुमान के मुताबिक रोजाना निकलनेवाले 25,940 टन कचरे में से मात्र 15,384 टन (लगभग 60 फीसदी) ही इकट्ठा और पुनर्चक्रित किया जाता है. शेष प्लास्टिक पर्यावरण फैलता है, जो खतरा पैदा कर रहा है. सिंगल यूज प्लास्टिक के कूड़े से होनेवाले नकारात्मक प्रभाव के प्रति लोगों में जागरूकता कम है. इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से व्यापक उपभोक्ता जागरूकता अभियान चलाना होगा, ताकि लोगों के बर्ताव में बदलाव आ सके.

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