Sheikh Hasina: शेख हसीना ने अपने देश में चल रहे छात्रों के हिंसक आंदोलन के बाद अपना पद छोड़ने के बाद सुरक्षा कारणों से अपना देश भी छोड़ दिया है. इन दिनों वह राजधानी दिल्ली में हैं. शेख हसीना के लिए भारत और राजधानी दिल्ली अपने दूसरे घर जैसे हैं. उन्होंने यहां 1975 से 1981 के दौरान पंडारा पार्क में निवार्सित जीवन गुजारा था. हसीना से पहले तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा 1959 में भारत आये थे, तो कुछ महीनों तक दिल्ली में रहे थे.
अपनी आत्मकथा ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ में उन्होंने लिखा है कि अपने दिल्ली प्रवास के दौरान वे हैदराबाद हाउस में रहते थे. वहां रहते हुए देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गोविंद वल्लभ पंत सरीखे नेताओं से मिलने जाया करते थे. इतना ही नहीं, अफगानिस्तान के अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह 1990 के दशक में पांच कामराज मार्ग के बंगले में रहा करते थे. ज्ञातव्य हो कि दलाई लामा और अफगानिस्तान के नेताओं को भारत ने राजनीतिक शरण दी थी.
शेख हसीना अपने दिल्ली में बिताये दिनों को कैसे भूल सकतीं हैं भला. उन्होंने यहां 1975 से 1981 के दौरान निवार्सित जीवन गुजारा था. उनके साथ उनके पति डॉ एमए वाजेद मियां और दोनों बच्चे भी थे.
वह पंडारा पार्क के एक फ्लैट में रहती थीं. उस कठिन दौर में प्रणब मुखर्जी और उनकी पत्नी शुभ्रा मुखर्जी उनके साथ रहे. यहां रहते हुए शेख हसीना और शुभ्रा मुखर्जी एक-दूसरे के अत्यंत नजदीक आ गये थे. दोनों परिवारों का लगातार मिलना-जुलना होता रहता था. दरअसल शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक बंगबंधु शेख मुजीब-उर-रहमान, मां और तीन भाइयों का ढाका के धनमंडी स्थित आवास में 15 अगस्त, 1975 को कत्ल कर दिया गया था. उस भयावह कत्लेआम के समय शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां और बच्चों के साथ जर्मनी में थीं. इसलिए उन सबकी जान बच गयी थी.
वाजिद मियां न्यूक्लियर साइंटिस्ट थे और जर्मनी में ही कार्यरत थे. शेख हसीना पंडारा रोड में शिफ्ट करने से पहले कुछ सप्ताह तक राजधानी के 56 लाजपत नगर- पार्ट तीन में भी रही थीं. वहां बाद के कई सालों तक बांग्लादेश का हाई कमीशन काम करता रहा. शेख हसीना के परिवार के कत्लेआम ने उन्हें बुरी तरह तोड़ कर रख दिया था. तब प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत में राजनीतिक शरण देने का निर्णय लिया था. श्रीमती गांधी और शेख मुजीब के बीच बेहद मधुर संबंध थे. शेख हसीना का उस हत्याकांड के बाद बांग्लादेश वापस जाने का सवाल ही नहीं उठता था.
हसीना जब दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहती थीं, तब प्रणब मुखर्जी के तालकटोरा रोड वाले घर में बराबर सपरिवार जाया करती थीं. तब दोनों परिवारों के बच्चे भी करीब आ गये थे. दिल्ली में रहते हुए जब कुछ समय हो गया था, तब शेख हसीना ने आकाशवाणी की बांग्ला सेवा में काम करना शुरू कर दिया था, ताकि उनका समय बीत सके. परिस्थितियां सामान्य होने पर हसीना 1981 में स्वदेश वापस लौट गयीं, पर उनके मुखर्जी परिवार से संबंध अटूट बने रहे. वह जब भी दिल्ली आयीं, तो शुभ्रा और प्रणब मुखर्जी के साथ मिलने का समय अवश्य निकाला. शुभ्रा मुखर्जी और शेख हसीना के बीच कला, संगीत और बांग्ला साहित्य पर चर्चा होती थी. जब 18 अगस्त, 2015 को शुभ्रा मुखर्जी का निधन हुआ, तब शेख हसीना अपनी पुत्री पुतुल के साथ खास तौर पर प्रणब मुखर्जी से संवेदना व्यक्त करने आयी थीं. तब दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अगवानी करने प्रणब दा की पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी पहुंची थीं.
जब शेख हसीना दिल्ली में रहा करती थीं तब अवामी लीग के नेता लगातार उनसे मिलने आया करते थे. उनसे गुजारिश करते थे कि वे अपने देश की सियासत में सक्रिय हो जाएं. लंबे समय तक टाल-मटोल के बाद उन्होंने बांग्लादेश की राजनीति में जाने का मन बनाया था. इसके बाद 1981 में वह स्वदेश लौट गयीं. यदि शेख हसीना फिर से दिल्ली में रहती हैं, तो उनकी आंखें तरसेंगी अपने कष्ट के दिनों की सहेली को देखने के लिए. परंतु न तो उन्हें उनकी सहेली शुभ्रा मुखर्जी मिलेंगी और न ही प्रणब मुखर्जी ही मिल सकेंगे. दोनों अब दिवंगत हो चुके हैं. हां, इतना जरूर है कि शेख हसीना को यहां अपने पिता शेख मुजीब-उर-रहमान के नाम पर एक सड़क देखने को मिल जायेगी.
इस सड़क का नाम 2017 तक पार्क स्ट्रीट था. यह राम मनोहर लोहिया अस्पताल के करीब है. विदित हो कि शेख मुजीब-उर-रहमान बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन में केंद्रीय शख्सियत रहे थे. जब 10 जनवरी, 1972 को वे दिल्ली आये थे, तब उनका पालम हवाई अड्डे पर भव्य स्वागत हुआ था. उस दिन राजधानी में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. उन्होंने बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन में भारत द्वारा सहयोग देने के लिए भारत का आभार व्यक्त किया था. हवाई अड्डे पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी कैबिनेट ने उनका स्वागत किया था. हवाई अड्डे पर दोनों देशों के राष्ट्रगान भी हुए थे. शेख हसीना का दिल्ली की सड़कों, पेड़ों, परिंदों आदि को प्यार करना समझ आता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)