वित्त वर्ष 2023-24 में देश का रक्षा निर्यात 21,083 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया, जो 2022-23 की तुलना में 32.5 प्रतिशत अधिक है. यदि इस भारी बढ़ोतरी की तुलना वित्त वर्ष 2013-14 से की जाए, तो निर्यात में बीते एक दशक में 31 गुना वृद्धि हुई है. साल 2004-05 और 2013-14 तथा 2014-15 और 2023-24 की वृद्धि की तुलना करें, तो निर्यात 21 गुना बढ़ा है. वर्ष 2004-05 और 2013-14 के बीच 4,312 करोड़ रुपये के रक्षा उत्पादों का निर्यात हुआ था, जबकि 2014-15 से 2023-24 की अवधि में यह आंकड़ा 88,319 करोड़ रुपये जा पहुंचा. इन आंकड़ों से रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में तीव्र विकास का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. हालिया वर्षों में रक्षा क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार ने अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिये हैं.
इनमें सबसे प्रमुख है रक्षा क्षेत्र में निजी भागीदारी और विदेशी निवेश की अनुमति. इससे निवेश के साथ-साथ तकनीक हासिल करने की सुविधा भी बढ़ी तथा रोजगार के नये अवसरों का सृजन भी हुआ. तकनीक और संसाधन बढ़ने से शोध एवं अनुसंधान में भी प्रगति आयी है. नीतिगत सुधारों की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि निर्यात में 60 प्रतिशत योगदान निजी क्षेत्र है और 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों का है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही इस उपलब्धि को देश की बढ़ती क्षमता की अभिव्यक्ति बताया है. उत्पादन और निर्यात बढ़ने की दूसरी मुख्य वजह यह है कि सरकार अपनी रक्षा जरूरतों के लिए देश में बने उत्पादों को प्राथमिकता दे रही है.
सरकार ने बहुत सी चीजों की एक सूची बनायी है, जिनकी खरीद देश में ही हो सकती है यानी उनका आयात नहीं किया जा सकता है. यह सूची समय-समय पर संशोधित होती है और इसमें नये उत्पादों को जोड़ा जाता है. इस निर्णय का दूसरा सकारात्मक पहलू यह है कि देश में ही खरीद कर हम बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत भी कर रहे हैं तथा आयात पर हमारी निर्भरता भी घट रही है. नीतिगत सुधारों और सरकार की खरीद से गुणवत्तापूर्ण उत्पादन को भी प्रोत्साहन मिल रहा है. इन प्रयासों से विभिन्न देशों में भारतीय रक्षा उत्पादों के प्रति भरोसा बढ़ा है और वे भारत से अपना आयात बढ़ा रहे हैं. रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने में डिजिटल व्यवस्था से भी मदद मिली है. इससे समूची प्रक्रिया तेज और पारदर्शी हुई है. रक्षा निर्यात आर्थिक विषय होने तथा देश को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देने के साथ-साथ रणनीतिक और सैन्य दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. इससे हमारी रक्षा क्षमता को मजबूती तो मिलती ही है, साथ में आयातक देशों के साथ सामरिक संबंध भी बेहतर होते हैं.