16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पीएचडी की शर्त हटाने से अच्छे शिक्षक मिल सकेंगे

ऐसे कई विषय हैं, जिसमें पीएचडी धारकों की संख्या तो बहुत कम है या नहीं के बराबर है. जैसे, नीति निर्माण, डिजाइन, विदेशी भाषा, आर्किटेक्चर, कानून की पढ़ाई इत्यादि में पीएचडी उम्मीदवारों का अभाव है.

उच्च शिक्षा संस्थानों में सहायक प्रोफेसर या असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए नियम में परिवर्तन किया गया है. अब इस पद पर नियुक्ति के लिए पीएचडी का होना अनिवार्य नहीं है. लेकिन, नियुक्ति के लिए पीएचडी की योग्यता वैकल्पिक बनी रहेगी. इसे खत्म नहीं किया गया है. इसे समझने की जरूरत है. एक जुलाई से लागू नियम के अनुसार सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए सहायक प्रोफेसर के पद पर सीधी भर्ती के लिए, राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा(नेट), राज्य पात्रता परीक्षा(एसइटी) और राज्य स्तरीय पात्रता परीक्षा(एसएलइटी) न्यूनतम मानदंड होंगे. नियम में बदलाव हुआ है.

नियम खत्म नहीं किया गया है. वर्ष 2010 में इस पद पर नियुक्ति के लिए नेट, एसइटी, एसएलइटी क्वालिफाइ होना जरूरी था. लेकिन, पीएचडी धारक बिना नेट के भी सीधे बहाली के लिए पात्र थे. पुन: 2018 में, यूजीसी ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सहायक प्रोफेसर पद पर भर्ती के लिए मानदंड निर्धारित किये, जिसमें पीएचडी अनिवार्य कर दिया गया. इसके लिए उम्मीदवारों को अपनी पीएचडी पूरी करने के लिए तीन साल का समय दिया गया.

सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 2021-22 शैक्षणिक सत्र से भर्ती के लिए मानदंड लागू करना शुरू करने के आदेश दिये गये. लेकिन, कोविड महामारी की वजह से यूजीसी ने 2021 में विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसरों की भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यता के रूप में पीएचडी की अनिवार्यता की तारीख जुलाई 2021 से बढ़ाकर जुलाई 2023 कर दी. लेकिन, शैक्षणिक संस्थानों के लंबे समय तक बंद रहने के कारण पीएचडी छात्रों का शोध कार्य रुक गया था.

वर्ष 2021 में कहा गया था कि विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर के पद के लिए पीएचडी डिग्री अनिवार्य करना वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अनुकूल नहीं है. इसकी वजह बताते हुए कहा गया कि पीएचडी धारकों की संख्या भी कम है. साथ ही, नेट, सेट, स्लेट आदि क्वालिफाई करना आसान है. इन्हीं सुझावों को देखते हुए एक बार पुन: सहायक प्रोफेसर पद पर बहाली के लिए न्यूनतम योग्यता में बदलाव कर इसे एक जुलाई से लागू किया गया है.

ऐसे कई विषय हैं, जिसमें पीएचडी धारकों की संख्या तो बहुत कम है या नहीं के बराबर है. जैसे, नीति निर्माण, डिजाइन, विदेशी भाषा, आर्किटेक्चर, कानून की पढ़ाई इत्यादि में पीएचडी उम्मीदवारों का अभाव है. ऐसे में पीएचडी की शर्त हटाने से अच्छे शिक्षक मिल सकेंगे. बाद में, पीएचडी पूरी करने के बाद ये सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर बन पायेंगे. मेरा मानना है कि सहायक प्रोफेसर बनने के लिए पीएचडी की आवश्यकता नहीं है.

यदि अच्छी प्रतिभाओं को शिक्षण की ओर आकर्षित करना है तो यह शर्त नहीं रखी जा सकती. हां, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के स्तर पर इसकी आवश्यकता है. लेकिन एक सहायक प्रोफेसर के लिए पीएचडी शायद हमारे सिस्टम में अनुकूल नहीं है और इसलिए हमने इसे सुधार लिया है. अब जिस विषय में पीएचडी नहीं मिल रहे हैं वहां आसानी से नेट क्वालिफाइ करने वाले शिक्षक मिल जायेंगे. इसके बाद वे एसोसिएट प्रोफेसर बनने के लिए पीएचडी करेंगे. हमारे देश में हर साल 25 हजार लोग पीएचडी करते हैं.

प्रमुख विषयों में प्रतियोगिता बहुत ज्यादा है. जैसे, मैथेमेटिक्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री, इतिहास, राजनीति शास्त्र आदि. इस तरह के विषयों की नियुक्ति में संस्थान अपने अनुसार नियुक्ति के ऊंचे मानदंड रख सकते हैं. स्वायत्त शिक्षण संस्थान भी अपनी जरूरत के हिसाब से चयन के मानदंड रख सकते हैं. जैसे, अगर विदेशी भाषा के लिए किसी सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति होनी है तो वहां मास्टर्स की डिग्री के साथ नेट क्वालिफाइड होने की अनिवार्यता रख सकते हैं.

अगर लॉ में कोई पीएचडी धारक नहीं मिल रहा है तो एलएलएम के साथ नेट क्वालिफाइड आवेदक को सहायक प्रोफेसर के लिए चुना जा सकता है. इसके साथ ही, जैसे केमिस्ट्री में अधिक उम्मीदवार हैं तो पीएचडी के साथ-साथ दो जर्नल पब्लिश होने की शर्त रखी जा सकती है. शिक्षण संस्थान नियुक्ति के लिए यूजीसी द्वारा जारी गाइडलाइन के तहत उच्च मानदंडों का इस्तेमाल कर सकते हैं. सहायक प्रोफेसर के लिए न्यूनतम नेट, एसइटी, एसएलइटी क्वालिफाइड होना जरूरी है. पीएचडी वाले को संस्थान प्राथमिकता में रख सकेगी.

वर्तमान में इस बदलाव समेत हर तरह के बदलाव नयी शिक्षा नीति के अनुसार किये हो रहे हैं. केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए 34 वर्षों के अंतराल के बाद जुलाई 2020 में एक नयी शिक्षा नीति को मंजूरी दी. नयी शिक्षा नीति का उद्देश्य छात्रों की सोच और रचनात्मक क्षमता को बढ़ाकर सीखने की प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाना है. के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 29 जुलाई 2020 को नयी शिक्षा नीति बनायी गयी.

वर्ष 2030 तक इस नीति को पूर्ण रूप से लागू करने की आशा है. नयी शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य एक बच्चे को कुशल बनाने के साथ-साथ, जिस भी क्षेत्र में वह रुचि रखता हैं, उसी क्षेत्र में उन्हें प्रशिक्षित करना है. नयी शिक्षा नीति में शिक्षक की शिक्षा और प्रशिक्षण प्रक्रियाओं के सुधार पर भी जोर दिया गया है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें