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गणित में भी अव्वल हैं बेटियां

यह स्थापित तथ्य है कि महिलाओं की अर्थव्यवस्था में भागीदारी बढ़ाने से न केवल सामाजिक, बल्कि अर्थव्यवस्था में भी भारी बदलाव लाया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मानना है कि अगर भारत में आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए, तो भारत की जीडीपी में भारी वृद्धि हो सकती है.

सीबीएसइ, आइसीएसइ के नतीजे आने वाले हैं और विभिन्न राज्यों के बोर्ड के नतीजे आने शुरू हो गये हैं. सब में एक समानता दिखेगी कि बेटियों ने हर जगह अपना परचम लहराया होगा. मुझे याद है कि एक बेटी ने सीबीएसइ 12वीं बोर्ड में 600 में से 600 नंबर हासिल कर इतिहास रच दिया था. यह सफलता इसलिए भी खास थी कि वह विज्ञान की छात्रा नहीं थी, जिसमें अक्सर शत प्रतिशत नंबर आ जाते हैं. बोर्ड परीक्षाओं में तो लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से हमेशा से बेहतर रहता है.

कहने का आशय यह है कि हर क्षेत्र में बेटियां आगे हैं, तो समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी भागीदारी कम क्यों है. दरअसल, उनकी शिक्षा की अनदेखी की जाती है. एक धारणा बना ली गयी है कि गणित विषय में लड़कियों के मुकाबले लड़के बेहतर होते हैं, लेकिन हाल में आयी यूनिसेफ की एक रिपोर्ट ने इस धारणा को तार तार कर दिया है.

द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन, 2023 के अनुसार, जिन 83 देशों से किशोरों के बीच गणित में दक्षता का आकलन किया गया, उनमें से 34 देशों में लड़कों का लड़कियों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन पाया गया, जबकि 38 देशों में लड़कियों का प्रदर्शन बेहतर था. जहां बेहतर प्रदर्शन करने वाले लड़कों का अनुपात अधिक था, उनमें अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, इटली और हंगरी जैसे देश शामिल हैं.

इस रिपोर्ट में 82 देशों के लिए पढ़ाई में प्रवीणता का आकलन किया, तो पाया गया कि 81 देशों में पढ़ाई में लड़कियों की कुशाग्रता का स्तर लड़कों के मुकाबले कहीं ज्यादा था. युगांडा एकमात्र देश है, जहां लड़कों ने बेहतर प्रदर्शन किया. वहां भी यह अंतर सिर्फ एक प्रतिशत का था. गणित में प्रवीणता वाले टॉप 10 देशों में सिर्फ स्विट्जरलैंड में लड़कों ने बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन यहां भी लड़कों ने केवल एक अंक से बाजी मारी. जिन देशों में ये आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाये, उनमें भारत और चीन समेत सभी दक्षिण एशियाई देश शामिल हैं.

मौटे तौर पर इससे दुनियाभर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है. रिपोर्ट बताती है कि शिक्षकों व अभिभावकों द्वारा गणित को समझने में लड़कियों की असमर्थता जैसी नकारात्मक धारणा इस असमानता को बढ़ावा दे रही हैं. इससे लड़कियों का आत्मविश्वास कम होता है, जो उनकी सफलता में बाधक बनता है. यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल का कहना है कि लड़कियों में लड़कों के समान गणित सीखने की योग्यता होती है, लेकिन उनके पास दक्षता दिखाने के लिए समान अवसरों की कमी है.

हमें उन लैंगिक रूढ़ियों को दूर करने की जरूरत है, जो लड़कियों को पीछे धकेलते हैं. रिपोर्ट के अनुसार गणित बेहद महत्वपूर्ण विषय है, इससे बच्चों में विश्लेषण करने की क्षमता मजबूत होती है. जो बच्चे गणित और अन्य बुनियादी विषयों में दक्षता हासिल नहीं कर पाते हैं, उन्हें समस्या समाधान और तार्किक क्षमता जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए संघर्ष करना पड़ता है. हमें बेटे-बेटियों में भेदभाव विश्व स्तर पर देखने को मिलता है.

जैसे यह धारणा बना ली गयी है कि बेटियां गणित में अच्छी नहीं होतीं, इसलिए उन्हें कला विषयों को ही पढ़ना चाहिए और उनके लिए अध्यापिका की नौकरी सबसे अच्छी है. अक्सर पिता यह तय कर देते हैं कि बेटियों को क्या विषय पढ़ना चाहिए. इसका नतीजा यह होता है कि नौकरियों के लिए भी उनके लिए ज्यादा विकल्प नहीं होते हैं. जाहिर है, जब कम संख्या में लड़कियां गणित पढ़ेंगी, तो उनकी इंजीनियरिंग पढ़ने की योग्यता कम होगी और लड़कियां लड़कों के मुकाबले कम इंजीनियर बनेंगी.

इस भेदभाव की एक वजह यह भी है कि लड़कियों को हमेशा एक ही तरह की परंपरागत भूमिकाओं में दिखाया जाता है. बाद में यह धारणा का रूप ले लेता है. कुछ समय पहले यूनेस्को ने ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि दुनियाभर में स्कूली किताबों में महिलाओं को कम स्थान दिया जाता है. उन्हें कमतर पेशों में भी दिखाया जाता है. जैसे पुरुष डॉक्टर की भूमिका में दिखाये जाते हैं, तो महिलाएं हमेशा नर्स के रूप में नजर आती हैं.

साथ ही, महिलाओं को हमेशा खाने, फैशन या मनोरंजन से जुड़े विषयों में ही दिखाया जाता है. यह सही है कि परिस्थितियों में भारी बदलाव आया है. शिक्षा से लेकर खेलकूद और विभिन्न प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं में लड़कियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. महिलाएं जिंदगी के सभी क्षेत्रों में सक्रिय हैं. चाहे वह राजनीति का क्षेत्र हो या फिर शिक्षा, कला-संस्कृति अथवा आइटी या फिर मीडिया का क्षेत्र, सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने सफलता के झंडे गाड़े हैं, लेकिन अब भी समाज में महिलाओं के काम का सही मूल्यांकन नहीं किया जाता है. घर को सुचारू रूप से संचालित करने में उनके दक्षता की अक्सर अनदेखी कर दी जाती है.

अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की अक्सर चर्चा होती है, उसमें भी महिलाओं का बड़ा योगदान है. आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले बहुत पीछे है. यह स्थापित तथ्य है कि महिलाओं की अर्थव्यवस्था में भागीदारी बढ़ाने से न केवल सामाजिक, बल्कि अर्थव्यवस्था में भी भारी बदलाव लाया जा सकता है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मानना है कि अगर भारत में आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए, तो भारत की जीडीपी में भारी वृद्धि हो सकती है. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश के कुल श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी 25.5 फीसदी और पुरुषों की हिस्सेदारी 53.26 फीसदी है. कुल कामकाजी महिलाओं में से लगभग 63 फीसदी खेती-बाड़ी के काम में लगी हैं. वर्ष 2011 के जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार जब करियर बनाने का समय आता है, उस समय अधिकतर लड़कियों की शादी हो जाती है.

विश्व बैंक के एक आकलन के अनुसार भारत में महिलाओं की नौकरियां छोड़ने की दर बहुत अधिक है. यह पाया गया है कि एक बार किसी महिला ने नौकरी छोड़ी, तो ज्यादातर दोबारा नौकरी पर वापस नहीं लौटती है. यह सही है कि ऐसे परिवारों की संख्या में कमी आयी है, जिनमें बेटे और बेटी के बीच भेदभाव किया जाता हो, लेकिन अब भी ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो बेटी के करियर को ध्यान में रख कर नहीं पढ़ाते हैं, बल्कि शादी को ध्यान में रख कर शिक्षा दिखाते हैं. जबकि हकीकत यह है कि बेटी का करियर अच्छा होगा, तो शादी में भी आसानी होगी. इस मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है.

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