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भाजपा के लिए तमिलनाडु में बढ़ी चुनौती

भाजपा यदि एआइएडीएमके को लौटाने में नाकाम रहती है तो वर्ष 2022 में उसकी हैदराबाद कार्यकारिणी में तय प्रस्ताव के लक्ष्य पर असर पड़ सकता है. इसमें कहा गया था कि अगले लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत से 50 लोकसभा सीटें लाने पर ध्यान देना चाहिए.

ऑल इंडिया अन्नाद्रमुक का एनडीए से बाहर निकलना नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की हैट्रिक लगाने की भाजपा की रणनीति के लिए निश्चित तौर पर एक बड़ा झटका है. अचानक हुए इस घटनाक्रम से तमिलनाडु में डीएमके की अगुआई वाले गठबंधन के छोटे राजनीतिक दल भी एआइएडीएमके से ज्यादा सीटों के लिए सौदेबाजी करने लगेंगे. और कांग्रेस को भी प्रलोभन मिलेगा. यदि मान लें कि ऐसा होता है, तो कांग्रेस-डीएमके गठबंधन के कारण विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन में भी हलचल मच सकती है. वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों से मात्र 240 दिन पहले, तमिलनाडु की राजनीति में आए उथल-पुथल और असमंजस से मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के नेतृत्व वाली सत्ताधारी डीएमके को फायदा होगा. एआइएडीएमके बीजेपी का एक भरोसेमंद सहयोगी रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के दौर में पार्टी ने अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन को समर्थन दिया था.

जयललिता ने इसे अपने चुनावी घोषणापत्र का भी हिस्सा बनाया था. समान विचारों वाली यह ऐसी पांचवीं पार्टी है जिसने एनडीए से नाता तोड़ा है. इससे पहले अकाली दल, शिव सेना, जेडीयू आदि ने भी समर्थन वापस लिया था और नरेंद्र मोदी सरकार से हाथ खींच लिया था. एआइएडीएमके के बीजेपी से संबंध तोड़ने के लिए कई कारण बताए जा रहे हैं. यह घटनाक्रम अभी और बदलेगा, और संभवतः अगले एक महीने में तमिलनाडु की राजनीति बदल जाएगी. ऐसी अटकलें हैं कि इससे कांग्रेस के अगुआई वाले इंडिया गठबंधन में एक बड़ा संकट खड़ा हो सकता है. कांग्रेस अगर एआइएडीएमके के साथ ऐसी स्थिति में जाने का मन बनाती है कि वह उसे तमिलनाडु में 20 सीटों पर लड़ने देगी, तो ऐसे में स्टालिन क्या करेंगे? दिल्ली में भाजपा नेता एआइएडीएमके को दोषी ठहराते हैं कि वह सनातन धर्म के मुद्दे पर मौन साधे रही. गृह मंत्री अमित शाह ने एआइएडीएमके नेता इ पलानीसामी से खुलकर कहा था कि वह चाहते हैं कि उनकी पार्टी एक बयान जारी कर उदयनिधि स्टालिन की आलोचना करे.

लेकिन एआइएडीएमके ने सोमवार को भाजपा से नाता तोड़ने का फैसला क्यों कर डाला? सूत्रों की मानें, तो एआइएडीएमके चाहती थी कि भाजपा तमिलनाडु में अपने प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई को या तो पद से हटाये या उन्हें काबू में करे. लेकिन भाजपा के इनकार करने के बाद उन्होंने एनडीए से नाता तोड़ लिया. पिछले सप्ताह एआइएडीएमके के पांच सदस्यों की एक टीम ने दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात की थी, और अन्नामलाई को हटाने की मांग की. लेकिन नड्डा तैयार नहीं हुए. यानी एआइएडीएमके ने एनडीए गठबंधन से सीटों के बंटवारे के प्रश्न पर गठबंधन नहीं तोड़ा.

बीजेपी अन्नामलाई की ‘एन मन, एन मक्कल’ यात्रा को समर्थन दे रही है. वह इस यात्रा से पूरे तमिलनाडु में पार्टी का जनाधार मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. यह यात्रा 11 जनवरी 2024 को चेन्नई में समाप्त होगी. उम्मीद की जा रही है कि प्रधानमंत्री इस अवसर पर चेन्नई में यात्रियों को फूल-माला पहनाएंगे. बीजेपी ने अपने नेताओं को सलाह दी है कि वह इस मुद्दे पर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहें. लेकिन कम-से-कम दो भाजपा नेताओं ने कहा है कि उन्हें संबंध टूटने की इस घटना में भी कुछ उम्मीद दिखायी दे रही है, क्योंकि भाजपा को इससे तमिलनाडु में खुद अपनी जमीन तलाशने का मौका मिलेगा. वह आगामी लोकसभा चुनावों के लिए छोटे दलों के साथ गठबंधन कर सकती है. भाजपा के सूत्रों का कहना है कि एआइएडीएमके अपने इस कदम से तमिलनाडु में अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाना चाहती है.

यह दिलचस्प बात है कि दिल्ली में भाजपा के कई बड़े नेताओं को अभी भी एआइएडीएमके के एनडीए खेमे में लौट आने का भरोसा है. इसके लिए पर्दे के पीछे से कोशिशें चल रही हैं. बहुत जल्दी, भाजपा के एक शीर्ष नेता फिर से बातचीत का दौर शुरू करने के लिए चेन्नई पहुंचेंगे. भाजपा यदि एआइएडीएमके को लौटाने में नाकाम रहती है तो वर्ष 2022 में उसकी हैदराबाद कार्यकारिणी में तय प्रस्ताव के लक्ष्य पर असर पड़ सकता है. इसमें कहा गया था कि अगले लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत से 50 लोकसभा सीटें लाने पर ध्यान देना चाहिए. भाजपा नेताओं को इस बात का अहसास है कि गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में उसका प्रदर्शन चरम स्तर पर पहुंच चुका है. भाजपा को पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों और बिहार में कुछ सीटें गंवाने की भी आशंका है. उसकी क्षतिपूर्ति तभी हो सकती है जब भाजपा दक्षिण भारत में मजबूत होगी.

एआइएडीएमके महासचिव इ पलानीसामी चार साल तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री इसलिए बने रहे क्योंकि उन्हें केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन था. उनके गुट को दो पत्तियों का चुनाव चिह्न भी भाजपा के परोक्ष समर्थन से मिला. उनके और ओ पनीरसेल्वम के बीच कई कानूनी लड़ाइयां हुईं, और उनसे बाहर निकलने में भाजपा उनके साथ मजबूती से खड़ी रही. लेकिन अभी के राजनीतिक घटनाक्रम भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं देते. मगर इस पुरानी कहावत को भी याद रखना चाहिए, कि राजनीति में कोई भी स्थायी शत्रु नहीं होता.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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