हर साल 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा का दिन आता है, चला जाता है. बहुतेरे लोगों को शायद इस पूजा का पता भी नहीं होता, लेकिन कल-कारखानों-गैरेज-बस डिपो के आस-पास रहनेवाले लोग प्रायः इससे परिचित होते हैं. इस साल भी 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती आयी, लेकिन इस साल एक नयी बात हुई. इस दिन एक योजना लागू हुई जिसका नाम प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना है. प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस पर इस योजना की घोषणा की थी. इसका उद्देश्य ऐसे तबकों की मदद करना है, जो पारंपरिक कौशल के सहारे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं.
योजना का लाभ 18 तरह के कारीगरों और शिल्पकारों को मिलेगा, जो विकास की दौड़ में पिछड़े हुए हैं. 13,000 करोड़ रुपये की योजना के तहत कई तरह की मदद दी जायेगी. लेकिन, सबसे ज्यादा चर्चा सस्ता ऋण उपलब्ध कराने की हो रही है. कारीगरों और शिल्पकारों को दो किस्तों में तीन लाख रुपये का कर्ज दिया जायेगा. पहले एक लाख रुपया मिलेगा, उसे डेढ़ साल में लौटाने के बाद दो लाख रुपये दिये जायेंगे, जिसे ढाई साल में लौटाना होगा.
लाभार्थियों से पांच प्रतिशत के रियायती दर पर ब्याज लिया जाएगा. दिखने में मामूली लगनेवाले ये कर्ज इन पेशों के लिए काफी महत्व रखते हैं, क्योंकि ऐसे असंगठित पेशों के लिए बैंकों जैसे पारंपरिक स्रोतों से कर्ज मिलना मुश्किल होता है. निश्चित तौर पर ऐसी सुविधाओं से शिल्पकारों और कारीगरों की आर्थिक मदद होगी, लेकिन इस पेशे से जुड़े लोगों की मुश्किलें केवल कर्ज मिलने से नहीं खत्म हो जाएगी. उनकी सबसे बड़ी चुनौती उनके बनाये सामानों और सेवाओं की बिक्री को सुनिश्चित करना है.
कोई भी उद्यमी यदि कर्ज लेता है तो वह उसे पूंजी की तरह इस्तेमाल करता है. उसके सहारे वह उत्पादन करता है या अपनी सेवाएं देता है. फिर उससे होनेवाली कमाई से वह कर्ज भी लौटाता है और कारोबार का भी विस्तार करता है. लेकिन, यदि कमाई पक्की ना हो, तो उद्यमी कर्ज लौटाने के लिए दूसरा कर्ज लेने के चक्र में फंस सकता है. केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पिछले महीने कहा था कि विश्वकर्मा योजना का उद्देश्य इस पेशे को लोगों को घरेलू और वैश्विक मूल्य श्रृंखला से जोड़ना भी है. इससे ऐसा लगता है कि सरकार को भी इस चुनौती का अंदाज है. विश्वकर्मा योजना को सार्थक बनाने के लिए इस बारे में कारगर व्यवस्था की जानी चाहिए.