छह दक्षिणी राज्यों- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और पुद्दुचेरी में अलग-अलग पार्टियां सत्ता में हैं. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में जिन पार्टियों- कांग्रेस, डीएमके, टीआरएस, सीपीएम ने विजयी उम्मीदवारों का समर्थन नहीं किया, उन्हें बड़ा राजनीतिक झटका लगा है. राहुल गांधी पर इनकी निर्भरता भी अचरज की बात है और उनका कांग्रेस अध्यक्ष बनने से इनकार भी इन क्षेत्रीय पार्टियों के लिए एक धक्का है. कांग्रेस भी लगातार कमजोर हो रही है.
दक्षिण भारत के सभी क्षेत्रीय दल श्रीलंका में रुके चीन के खुफिया जहाज की जासूसी से संरक्षण चाहते हैं. विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने या तो केंद्र को पत्र लिखा है या केंद्रीय नेताओं से मिलकर इसरो, कुडनकुलम संयंत्र, कोच्चि बंदरगाह, बंगाल की खाड़ी में तैनात परमाणु पनडुब्बियों जैसे स्थानों की चीनी जासूसी पर विरोध जताया है.
अगर श्रीलंका में संकट बना रहता है, तो शरणार्थियों की समस्या आ सकती है तथा प्रतिबंधित लिट्टे जैसे संगठनों के अतिवादी व समर्थक आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के बंदरगाहों तक नाव से पहुंच सकते हैं. दक्षिणी राज्यों के मतदाताओं ने छह पार्टियों को ताकतवर जरूर बनाया है, पर वे सभी केंद्र सरकार के निकट आना चाहते हैं, ताकि उनके राज्यों को आर्थिक पैकेज, अतिरिक्त अनुदान, परियोजनाओं के लिए मदद मिल सके.
जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ दूसरी बार चुने गये, तो दक्षिणी राज्यों में भाजपा के प्रति धारणा में व्यापक बदलाव आया. उस जनादेश से यह संकेत गया कि हिंदी पट्टी में मोदी-योगी डबल इंजन के असर को तोड़ा नहीं जा सकता. इससे दक्षिण के मतदाताओं का रूझान भी बदल रहा है. चार पार्टियां- डीएमके, वाईएसआर कांग्रेस, सीपीएम और टीआरएस नरेंद्र मोदी और भाजपा का जम कर विरोध करते हैं.
इन दलों को लगता था कि भाजपा उत्तर प्रदेश हार जायेगी और 2024 में विरोधी दलों को जनादेश मिलेगा. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किये जा रहे डिजिटल बदलाव, कोरोना महामारी का बहुत अच्छा प्रबंधन, मोदी शासन में भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं होना जैसे कारकों से युवाओं की सोच बदलने लगी है. क्षेत्रीय दल 2023 गुजरने के इंतजार में है. तब तक दक्षिण के मुख्यमंत्री मोदी के करीब दिखना चाहते हैं.
कभी स्टालिन की पार्टी डीएमके ने काले झंडों और गुब्बारों से मोदी का विरोध किया था तथा उत्तर भारतीय विरोधी माहौल बनाया था, पर उत्तर प्रदेश के नतीजे के बाद यह सब बदल गया. स्टालिन ने अंतरराष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिता के उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव प्रधानमंत्री से मुलाकात के लिए चार दिन दिल्ली रहे, पर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा. लगभग सभी क्षेत्रीय दलों ने प्रधानमंत्री के विरुद्ध अभद्र भाषा बोलना कम कर दिया है.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने हाल में कहा कि उनकी पार्टी अपनी मूल विचारधारा से नहीं डिगेगी तथा किसी भी हाल में भाजपा और आरएसएस से समझौता नहीं करेगी. प्रधानमंत्री से मुलाकात के बारे में उन्होंने कहा कि वे मुख्यमंत्री होने के नाते विकास योजनाओं के लिए प्रधानमंत्री से मिलने जा रहे हैं. इसे डीएमके और भाजपा के बीच संबंध नहीं समझा जाना चाहिए. इस माह वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी दो बार प्रधानमंत्री मोदी से मिल चुके हैं.
रेड्डी खेमे के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री से चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेलुगु देशम से जुड़े मुद्दों पर विस्तार से चर्चा के लिए समय मांगा गया था. कहा जा रहा था कि इस माह के शुरू में नीति आयोग की बैठक के बाद ही मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री से आमने-सामने मिलने का समय मांगेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री की अति व्यस्तता के कारण ऐसा न हो सका था. शायद तभी जगन रेड्डी ने प्रधानमंत्री से बाद का कोई समय मांगा था और प्रधानमंत्री कार्यालय ने उन्हें सूचित किया था कि वे इसी महीने बाद में दिल्ली आ सकते हैं.
खबरों में कहा जा रहा है कि भाजपा तेलुगु देशम की ओर कुछ झुकाव दिखाने लगी है. दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी और चंद्रबाबू नायडू की संक्षिप्त मुलाकात से यह स्पष्ट भी हुआ. ऐसे में प्रधानमंत्री और रेड्डी की मुलाकात अहम हो जाती है. सूत्रों की मानें, तो उस बैठक की अवधि कम से कम एक घंटे हो सकती है तथा उसमें आंध्र प्रदेश से जुड़े मसलों के साथ-साथ व्यक्तिगत से लेकर राजनीति तक हर मुद्दे पर चर्चा की संभावना है. हालांकि राज्य को धन आवंटित करने में केंद्र उदार रहा है, पर ऐसे मुद्दे हैं, जिनका समाधान होना है.
इनमें पोलावरम बांध का निर्माण और पुनर्वास का विषय अहम है, जो राज्य के लिए बड़ा सिरदर्द है. मुख्यमंत्री तीन राजधानियों के मुद्दे पर केंद्र का समर्थन भी मांग सकते हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि उच्च न्यायालय द्वारा मार्च में अमरावती पर दिये गये फैसले को राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे सकती है.
जगन रेड्डी मानते हैं कि तीन राजधानियों के मामले में वर्तमान प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना मुख्य बाधा हैं. वह सेवानिवृत्त होने वाले हैं. फिर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेगी. अगर केंद्र राज्य सरकार से सहयोग करेगा, तो जगन को हाइकोर्ट के आदेश पर स्थगन मिल सकता है. यह एक मुद्दा हो सकता है, जिस पर शायद वे प्रधानमंत्री मोदी से बात करें.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)