15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मौतघर में बदलते सीवर और सुप्रीम कोर्ट का आदेश

अुनमान है कि हर वर्ष देशभर के सीवरों में औसतन एक हजार लोग दम घुटने से मरते हैं. जो दम घुटने से बच जाते हैं, उनका जीवन सीवर की विषैली गंदगी के कारण नरक से भी बदतर हो जाता है. देश में दो लाख से अधिक लोग जाम सीवरों को खोलने, मेनहोल में जमा गाद, पत्थर को हटाने के काम में लगे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि यदि सीवर की सफाई के दौरान कोई श्रमिक मारा जाता है तो उसके परिवार को सरकारी अधिकारियों को 30 लाख रुपये मुआवजा देना होगा. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने यह भी कहा कि सीवर की सफाई के दौरान स्थायी विकलांगता का शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान किया जायेगा. यदि सफाई करते हुए कोई कर्मचारी अन्य किसी विकलांगता से ग्रस्त होता है तो उसे 10 लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा. आदेश में यह भी कहा गया है कि सरकारें सुनिश्चित करें कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह समाप्त हो. यह इस तरह का कोई पहला आदेश नहीं है. परंतु कम खर्च में श्रम का लोभ, पेट भरने की मजबूरी और आम मजदूरों के सरकारी कानूनों से अनभिज्ञ होने के कारण यह अमानवीय कृत्य जारी है.

संसद के 2022 के शीतकालीन सत्र में सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने बताया था कि बीते तीन वर्ष के दौरान सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय 233 लोगों की मौत हुई है. विगत बीस वर्षों में देश में सीवर सफाई के दौरान 989 लोग जान गंवा चुके हैं. राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की रिपोर्ट कहती है कि 1993 से फरवरी 2022 तक देश में सीवर सफाई के दौरान सर्वाधिक 218 लोग तमिलनाडु में मारे गये. गुजरात में 153 और दिल्ली में 97 मौतें दर्ज की गयीं. उत्तर प्रदेश में 107, हरियाणा में 84 और कर्नाटक में 86 लोगों के लिए सीवर मौतघर बना.

ऐसी हर मौत का कारण सीवर की जहरीली गैस बताया जाता है. हर बार कहा जाता है कि यह लापरवाही का मामला है. पुलिस ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है. लोग भी अपने घर के सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए अनियोजित क्षेत्र से मजदूरों को बुलाते हैं. यदि उनके साथ कोई दुर्घटना होती है, तो उनके आश्रितों को न तो कोई मुआवजा मिलता है, न ही कोताही बरतने वालों को समझाइश. शायद पुलिस को भी नहीं मालूम कि इस तरह सीवर सफाई का ठेका देना हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत है. समाज के जिम्मेदार लोगों ने कभी महसूस ही नहीं किया कि नरक कुंड की सफाई के लिए बगैर तकनीकी ज्ञान व उपकरणों के निरीह मजदूरों को सीवर में उतारना अमानवीय है.

यह विडंबना ही है कि सरकार व सफाई कर्मचारी आयोग सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा पर रोक लगाने के नारों से आगे इस तरह से हो रही मौतों पर ध्यान ही नहीं देती है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और मुंबई हाईकोर्ट ने आठ वर्ष पहले सीवर की सफाई के लिए दिशा-निर्देश जारी किये थे, जिनकी परवाह और जानकारी किसी को नहीं है. सरकार ने भी 2008 में एक अध्यादेश लाकर गहरे में सफाई का काम करने वाले मजदूरों को सुरक्षा उपकरण प्रदान करने की अनिवार्यता की बात कही थी. नरक कुंड की सफाई का जोखिम उठाने वाले लोगों की सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर कई कानून हैं और मानव अधिकार आयोग के निर्देश भी. परंतु इनके पालन की जिम्मेदारी किसी की नहीं.

कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सीवर की सफाई करने वाली एजेंसी के पास सीवर लाइन का मानचित्र, उसकी गहराई से संबंधित आंकड़े होने चाहिए. सीवर सफाई का दैनिक रिकॉर्ड, काम में लगे लोगों की नियमित स्वास्थ्य की जांच, आवश्यक सुरक्षा उपकरण मुहैया करवाना, काम में लगे कर्मचारियों की नियमित ट्रेनिंग, सीवर में गिरने वाले कचरे की हर दिन जांच जैसी आदर्श स्थिति कागजों से ऊपर कभी आ ही नहीं पायी. सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश है तो ताकतवर, परंतु समस्या यह है कि अधिकांश मामलों में मजदूरों को काम पर लगाने का कोई रिकॉर्ड ही नहीं होता. यह सिद्ध करना मुश्किल होता है कि अमुक व्यक्ति को अमुक ने इस काम के लिए बुलाया था या काम सौंपा था.

अनुमान है कि हर वर्ष देशभर के सीवरों में औसतन एक हजार लोग दम घुटने से मरते हैं. जो दम घुटने से बच जाते हैं उनका जीवन सीवर की विषैली गंदगी के कारण नरक से भी बदतर हो जाता है. देश में दो लाख से अधिक लोग जाम सीवरों को खोलने, मेनहोल में जमा गाद, पत्थर को हटाने के काम में लगे हैं. कई-कई महीनों से बंद पड़े इन गहरे नरक कुंडों में कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, मीथेन जैसी दमघोटू गैसें होती हैं. यह जानते हुए कि भीतर जानलेवा गैसें और रसायन हैं, एक इंसान दूसरे इंसान को बगैर किसी बचाव या सुरक्षा साधनों के भीतर ढकेल देता है, जो शर्मनाक है.

सीवर की सफाई करने वाला 10-12 वर्ष से अधिक काम नहीं कर पाता है, क्योंकि उसका शरीर काम करने लायक रह ही नहीं जाता है. देश में कानून है कि सीवर सफाई करने वालों को गैस टेस्टर, गंदी हवा को बाहर फेंकने के लिए ब्लोअर, टॉर्च, दास्ताने, चश्मा और कान ढकने का कैप, हेलमेट मुहैया करवाना आवश्यक है. मुंबई हाईकोर्ट का निर्देश था कि सीवर सफाई का काम ठेकेदारों के माध्यम से नहीं करवाना चाहिए. सफाई का काम करने के बाद उन्हें पीने का स्वच्छ पानी, नहाने के लिए साबुन व पानी तथा स्थान उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी भी कार्यकारी एजेंसी की है. पर इन्हें मानता कौन है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें