सुशांत सरीन, सामरिक विशेषज्ञ
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सीमा पर शांति बनाये रखने के लिए दोनों देशों के बीच हुए पहले के समझौते इस घटनाक्रम के बाद एक प्रकार से खत्म हो गये हैं. सीमा पर हिंसा रोकने के लिए 1993 से ये समझौते प्रभावी थे. लेकिन, 15 और 16 जून की रात हुए हादसे के बाद इन समझौतों का कोई मतलब नहीं रह जाता. सीमा पर तनाव की स्थिति में भी एक प्रोटोकॉल होता था कि बातचीत के दौरान हथियार वर्जित होंगे. समझौते को चीन ने खत्म कर दिया है. जिस तरह चीन की तरफ से हमला किया गया है, यह पूर्वनियोजित था. भारतीय सैनिकों का जान-बूझकर कत्ल किया गया है. सभी चीनी सैनिक एक अजीब किस्म के हथियारों के साथ लैस होकर आये थे. उनका मकसद भारत को बड़ा नुकसान पहुंचाना था.
अब सवाल है कि क्या यह केवल स्थानीय स्तर की झड़प थी या सीनियर अधिकारियों के स्तर पर लिया गया कोई निर्णय था. मुझे लगता है कि इन बातों का कोई अब ज्यादा मतलब नहीं रह गया है. अगर खूनी हिंसा में एक-दो सैनिकों के मारे जाने की बात होती, तो इसे गलती मानकर मामले को बातचीत से सुलझाने की कोशिश होती. लेकिन, हमले में 20 से 30 लोग मारे गये, पता नहीं कि कितने लोग जख्मी हैं और कितनों के बारे में अभी जानकारी नहीं मिली है. इसका मतलब है कि यह साजिशन किया गया हमला है. ये नहीं कहा जा सकता है कि किसी का दिमाग फिर गया था या बात-बात में मामला बढ़ गया था.
अब भारत सरकार के सामने चुनौती होगी कि इस घटना के बाद आगे का फैसला क्या होगा. हालांकि, सरकार ने एक संदेश जरूर दिया है. कुछ दिन बाद भारत, चीन और रूस के बीच एक बातचीत होनी थी. उसे अब टाल दिया गया है. मुझे नहीं लगता यह काफी होगा. अब भारत सरकार को संजीदगी के साथ लोकल लेवल पर, सामरिक, आर्थिक और सैन्य स्तर पर विचार करना पड़ेगा कि चीन के साथ अब आगे कैसे बढ़ना है. इस घटना के बाद एक बात स्पष्ट हो गयी है कि चीन अब भारत के साथ अच्छे रिश्ते तो नहीं चाहता. दूसरी बात, यह तय हो गयी कि हम जो अटकलें लगाते रहते हैं कि चीन हमसे युद्ध नहीं चाहता.
इन सब धारणाओं पर हमें फिर से गौर करना पड़ेगा. हमें रणनीतिक स्तर पर अपना पक्ष बिल्कुल भी स्पष्ट रखना होगा. दो घोड़ों पर एक साथ सवारी कैसे हो सकती है? हम चीन के साथ भी बनाकर रखें और अमेरिका के साथ भी रखेंगे, थोड़ा अमेरिका के साथ ज्यादा बनायेंगे, क्योंकि चीन को सही रखना है, लेकिन चीन के साथ अपना रिश्ता बिगाड़ेंगे नहीं. यह रवैया बदलना पड़ेगा. अब तय करना है कि अमेरिका के साथ जाना है कि नहीं. जाना है, तो पूरा जाना होगा. यह नहीं हो सकता है कि जायेंगे, लेकिन, इससे आगे नहीं जायेंगे.
यह एक कमी रही है, अगर इसको लेकर हम स्पष्ट हो जायें, तो बहुत अच्छा है. लेकिन, मुझे अभी भी स्पष्टता को लेकर शक है. भारत उन्हें पड़ोसी मानता है, वे तो ऐसा नहीं मानते. चीन हो, पाकिस्तान हो या नेपाल हो, सभी के साथ हम जिम्मेदार पड़ोसी के रूप में पेश आते हैं और वे बदले में हरकतें करते हैं. हमें अपनी धारणाएं बदलनी होंगी, आखिर कब तक हम जान-बूझकर धोखा खाते रहेंगे.
हमें हकीकत को परखते हुए अपनी सामरिक तैयारी को मजबूत करना होगा. हमें ढुलमुल रवैया छोड़कर एक स्पष्टता के साथ चीजों को स्वीकार करना होगा. हमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे तमाम देशों के साथ मिलकर काम करना पड़ेगा. हमें आर्थिक तौर पर भी चीन के खिलाफ कुछ कदम उठाने होंगे. क्या कारण है कि हमारे 500 करोड़, हजार करोड़ के प्रोजेक्ट चीनी कंपनियों को आसानी से मिल जाते हैं. हमारे अधिकारी इन सब मामलों में चीनी कंपनियों को क्यों सहूलियत देते हैं. यह सब बंद करना पड़ेगा. उनकी वस्तुओं के आयात को रोकना होगा. हमें भी उसका थोड़ा नुकसान होगा. हो सकता है कि कहीं और से सामान लेने पर हमें ज्यादा कीमतें अदा करनी पड़ें. लेकिन, अगर आप यह सब नहीं करना चाहते हैं, तो किस आधार पर आप चीन का विरोध करेंगे.
दूसरी तरफ, हमें रणनीतिक तौर पर भी तैयार रहना होगा. पिछले दो दशक से हमारी सेनाओं का आधुनिकीकरण नहीं हुआ. हम सेनाओं को आधुनिक और प्रभावी हथियारों से लैस करने में बिल्कुल भी विफल रहे हैं. यह बात तो ठीक है कि भारत की फौज 1962 वाली नहीं है, लेकिन यह भी तो सच है कि चीन की फौज भी 1962 की नहीं है. हमें ध्यान रखना होगा कि दुनिया बदल गयी, उसी के मुताबिक हमें भी बदलना होगा. हम अभी भी सोचते हैं कि दो टुकड़ियां और भर्ती कर लो, आपकी फौज मजबूत हो जायेगी. ऐसा नहीं होता है, अब नये सिस्टम और नयी तकनीकें आ गयी हैं. हमारे यहां एक जहाज का सौदा पूरा करने में 25 साल लग जाते हैं. ये सारी चीजें हमें बदलनी पड़ेंगी. आज के दौर में एफ-16 सबसे अच्छा जहाज है.
अगर अमेरिकी हमारे यहां आकर इसे बनाते हैं, तो इससे हमें क्या दिक्कत होनी चाहिए. हमें इसे नहीं लेना है, क्योंकि यह 20 साल पुराना है, लेकिन 50 साल पुराना मिग-21 उड़ाते हैं, वह हमें मंजूर है. लेकिन, 20 साल पुराना एफ-16 नहीं लेंगे, यह क्या बात हुई. हमें पूरी प्रणाली को बदलना पड़ेगा. आपको चीन के साथ दुश्मनी करनी है, तो जमकर करनी पड़ेगी. प्रधानमंत्री मोदी ने तो चीन के साथ रिश्ते बेहतर करने की पूरी कोशिश कर ली. आज तक चीन ने ऐसा कौन सा कदम उठाया है, जिससे आपको लगता है कि वह रिश्ते को बेहतर करना चाहता है. हमें अपनी ताकत और क्षमता को बढ़ाना होगा. हम अपने सीमा क्षेत्र के अंदर निर्माण कर रहे हैं, तो इससे चीन को क्यों दिक्कत होनी चाहिए. उसने भी तो निर्माण किया है. अगर वह हम पर जंग थोप रहा है, तो उसके लिए हमें अपने तरफ से भी पूरा तैयार रहना होगा.
(बातचीत पर आधारित)