एयर इंडिया को उबारने की कोशिश
सतीश सिंह
मुख्य प्रबंधक, आर्थिक अनुसंधान विभाग, भारतीय स्टेट बैंक
एयर इंडिया को खरीदने के लिए एयरलाइंस के कर्मचारियों के साथ अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म ‘इंटरप्स इंक’ ने भी बोली लगायी है. बोली की अंतिम तारीख 14 दिसंबर थी. निविदा दाखिल करने की तारीख 29 दिसंबर है. तदुपरांत, एयर इंडिया को बेचने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जायेगा. कंपनी का कहना है कि अगर वह एयर इंडिया को खरीदने में सफल होती है, तो 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी एयर इंडिया के कर्मचारियों को देगी और 49 प्रतिशत अपने पास रखेगी.
अमेरिकी कंपनी एयर इंडिया में 13,500 करोड़ रुपये तुरंत निवेश करने के लिए तैयार है और जरूरत पड़ने पर और भी निवेश कर सकती है. एयर इंडिया के 14,000 कर्मचारियों में से 200 से अधिक अपनी कंपनी खरीदना चाहते हैं. इसके लिए एक कर्मचारी एक लाख रुपये का निवेश करेगा. ‘इंटरप्स इंक’ अमेरिका के ओवर द काउंटर एसक्चेंज (यूएस-ओटीसी) में सूचीबद्ध है और इसका एम-कैप 28 मिलियन डॉलर का है.
एयर इंडिया की खरीद में ‘इंटरप्स इंक’ के अतिरिक्त, टाटा समूह, अडानी और हिंदुजा समूह भी रुचि ले रहे हैं. टाटा समूह ने एयर इंडिया को खरीदने के लिए अभिरुचि पत्र जमा कर दिया है. एयर इंडिया को 1932 में जेआरडी टाटा ने टाटा एयरलाइंस के नाम से शुरू किया था. वर्ष 1946 में इसे एयर इंडिया नाम दिया गया और 1947 में भारत सरकार इसमें निवेश कर सबसे बड़ी हिस्सेदार बन गयी. वर्ष 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ.
एयर इंडिया को बेचने की कोशिश पहले भी हो चुकी है. पूर्व में, खरीदने की इच्छुक कंपनियों के लिये अभिरुचि पत्र जमा करने की अंतिम तिथि 31 अगस्त, 2020 थी. वर्ष 2018 में भी सरकार एयर इंडिया को बेचना चाहती थी, लेकिन तब इसे खरीदने के लिये कोई कंपनी तैयार नहीं हुई, क्योंकि सरकार इसमें 24 प्रतिशत हिस्सेदारी चाहती थी और इस पर भारी-भरकम कर्ज भी था. केंद्र सरकार एक बार फिर एयर इंडिया की सौ प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की कोशिश कर रही है.
एयर इंडिया एक्सप्रेस लिमिटेड में भी सरकार सौ प्रतिशत हिस्सेदारी बेचेगी, जबकि एयर इंडिया एसटीएस एयरपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड में 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी बेची जायेगी. वर्तमान में एयर इंडिया पर 60,074 करोड़ रुपये का कर्ज है, लेकिन अधिग्रहण के बाद खरीदार को सिर्फ 23,286.5 करोड़ ही चुकाने होंगे. शेष एयर इंडिया एसेट होल्डिंग्स लिमिटेड को स्थानांतरित कर दिया जायेगा, जिसका भार केंद्र सरकार वहन करेगी. एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय के समय एयर इंडिया 100 करोड़ के मुनाफे में थी, लेकिन अनियमितता, गलत प्रबंधन, राजनीतिक हस्तक्षेप और अंदरूनी गड़बड़ियों ने इसकी स्थिति खस्ताहाल कर दी.
अदालत में दायर एक जनहित याचिका के अनुसार, 2004 से 2008 के दौरान विदेशी विनिर्माताओं को फायदा पहुंचाने के लिए 67,000 करोड़ रुपये में 111 विमान खरीदे गये, करोड़ों रुपये खर्च कर विमानों को पट्टे पर लिया गया. निजी विमानन कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए लाभ वाले हवाई मार्गों पर एयर इंडिया के उड़ानों को जानबूझकर बंद किया गया. इसकी पुष्टि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) अपनी रिपोर्ट में कर चुका है.
ड्रीमलाइनर’ को सितंबर, 2012 में खरीदा गया. दो सौ छप्पन सीटों वाला ड्रीमलाइनर 10 से 13 घंटे बिना किसी परेशानी के उड़ान भर सकता है. सीटों की डिजाइनिंग और ईंधन क्षमता के मामले में यह बोइंग 777-200 एलआर से बेहतर है. एयर इंडिया ड्रीमलाइनर की बेहतर क्षमता का उपयोग करके ज्यादा लाभ अर्जित कर सकती है.
बड़े विमानों में एयर इंडिया के पास 777-200 एलआर के आठ, 777-300 इआर के 12 और बी 747-400 के तीन विमान हैं. छोटे विमानों में ए 320 के 12, ए 319 के 19 और ए 321 के 20 विमान हैं. वर्तमान में एयर इंडिया के पास कुल 169 विमान हैं और कई को इसने लीज पर ले रखा है. एयर इंडिया के पास लगभग 1700 पायलट और 4000 एयर होस्टेस हैं.
कोरोना महामारी से पहले इससे हर दिन लगभग 60,000 यात्री विदेश यात्रा करते थे. पिछले वर्ष एयर इंडिया ने नौ नयी अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई शहरों को जोड़नेवाली उड़ानें शुरू की थीं.
सभी संसाधनों से युक्त होने के कारण एयर इंडिया विमानों का बुद्धिमतापूर्ण उपयोग कर राजस्व में वृद्धि कर सकती है. जैसे, जिन मार्गों पर यात्रियों का आवागमन अधिक है वहां विमानों के फेरे बढ़ाकर, कम ईंधन खपत करनेवाले विमानों का ज्यादा उपयोग कर. फ्रैंकफर्ट, पेरिस, हांगकांग, शंघाई जैसे शहरों, जहां पहुंचने में 10 घंटे का समय लगता है, उड़ानों में यदि ड्रीमलाइनर का प्रयोग किया जाये, तो यात्रा की लागत प्रति किलोमीटर 25 प्रतिशत तक कम हो सकती है.
यात्री किराया में कटौती की जा सकती है. स्टार अलायंस के साथ एयर इंडिया की साझेदारी 2014 में हुई थी. स्टार अलायंस के पास 192 देशों के 1300 हवाई अड्डों में उड़ान भरने वाले 18,500 विमानों का बड़ा नेटवर्क है. एयर इंडिया इसका फायदा उठा सकती है. एयर इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अश्विनी लोहानी की अगुवाई में एयर इंडिया को घाटे से उबारने की कोशिश हुई थी. हालांकि, एयर इंडिया आठ वर्षों बाद परिचालन लाभ अर्जित करने में सफल रही थी.
लेकिन वह प्रदर्शन में निरंतरता नहीं रख सकी. अंतरराष्ट्रीय यात्री बाजार में अभी भी एयर इंडिया की 17 प्रतिशत भागीदारी है. जेट एयरवेज के बंद होने के बाद अमेरिका में एयर इंडिया का दबदबा बढ़ा है. कुशल प्रबंधन के जरिये एयर इंडिया को लाभ में लाया जा सकता है.
Posted By : Sameer Oraon