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भारत-अमेरिका संबंधों में चीन

भारत-अमेरिका संबंधों में चीन

पिछले दिनों जो कुछ भी अमेरिका में हुआ, वह लोकतंत्र के लिए कलंक से कम नहीं था. बीस जनवरी को राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन के शपथ के बाद अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव अपेक्षित है. भारत के नजरिये से देखें, तो चीन, ईरान और अफगानिस्तान महत्वपूर्ण विषय हैं. चीन और भारत के बीच तनातनी अभी भी बनी हुई है. पिछले दिनों चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पसंदीदा अधिकारी की तैनाती भारत-चीन सीमा पर की गयी है.

चीन के आधिकारिक पत्र ग्लोबल टाइम्स में पुनः युद्ध की बातें कही जा रही हैं. भारत-अमेरिका संबंध के हवाले से यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या बाइडेन भारत की बात को चीन के सामने रखेंगे. क्या वे ट्रंप की भांति चीन पर निरंतर दबाव बनाने की कोशिश करेंगे? या फिर, यहां से अमेरिका और चीन के बीच मित्रता की नयी शुरुआत होगी? चीन की मूलतः दुश्मनी अमेरिका से है, लेकिन चीन शातिर है. उसे मालूम है कि पिछले कुछ सालों में अमेरिका के बरक्स उसकी सामरिक शक्ति कमजोर हुई है.

अमेरिका ने अपने मित्र राष्ट्रों की टोली बनाकर उसकी सैनिक घेरांबंदी का चक्रव्यूह रचा है. अगर अमेरिका और नाराज होता है, तो यह फंदा चीन के लिए दमघोंटू बन सकता है. इसलिए चीन की चाल होगी अमेरिकी तल्खी को शांत करने की और बदले में भारत को घेरने की.

साल 1988 में जब भारत और चीन के बीच लंबे अंतराल के बाद बातचीत शुरू हुई थी, तब चीन ने एशिया शताब्दी की बात कही थी और यह माना था कि एशिया के दो बड़े देश- भारत और चीन- मिलकर विश्व व्यवस्था की नीव रखेंगे. लेकिन 2000 आते-आते चीन की नियत बदल गयी. जब उसे लगने लगा कि उसका आर्थिक ढांचा भारत से पांच गुणा बड़ा है और वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सैनिक ताकत बन गया है, तो भारत के साथ वह कैसे शक्ति समीकरण की साझेदारी कर सकता है?

शायद चीन विश्व राजनीति और अपनी क्षमता का सही मूल्यांकन नहीं कर पाया. इसके कई उदाहरण है. पहला, चीन की सैनिक क्षमता अभी भी बहुत छोटी है, अगर इसकी तुलना अमेरिका के साथ करें. उसके सैनिक मित्र देशों की कोई शृंखला नहीं है. केवल उत्तर कोरिया, पाकिस्तान और कुछ हद तक ईरान उसके साथ हैं.

पाकिस्तान और उत्तर कोरिया की बिसात अंतराष्ट्रीय राजनीति में सभी को मालूम है. तीसरा, चीन की आबादी बुढ़ापे की ओर है. जब पूर्व राष्ट्रपति देंग ने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की थी, तब वह युवा देश था और उसका लाभ भी उसे मिला. साल 2035 तक दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश होने की उसकी आकांक्षा पूरी होती नहीं दिखती है.

चौथा, चीन ने अपने आक्रामक स्वभाव के कारण अपने पड़ोसी देशों को दुश्मन बना लिया है. चीन का हिमायती देश रूस भी उसे शक के नजरिये से देखता है. चीन इस मिजाज के साथ अपनी विस्तारवादी नीति को दुनिया के सामने रखना चाहता है. पिछले कुछ वर्षो में चीन में एक नयी कूटनीति की खूब चर्चा होती है, जिसे ‘वुल्फ वारियर’ कूटनीति के नाम से जाना जाता है. यह चीन के एक लोकप्रिय फिल्म का हिस्सा है, जिसमें चीनी आक्रामकता को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है.

पिछले दिनों अफगानिस्तान में भी खूब आतंकी घटनाएं हुई हैं. वहां से अमेरिकी सेना की वापसी के उपरांत अमेरिका के नये राष्ट्रपति की क्या सोच होगी, वह मायने रखता है, विशेषकर भारत के लिए. चीन, पाकिस्तान और ईरान एक नये समीकरण की तैयारी में हैं. इस नये घरौंदे की सीमा महज अफगानिस्तान तक खत्म नहीं होती, बल्कि पूरे मध्य एशिया को भी अपने घेरे में लेने की योजना है. पिछले दिनों अरब देशों के बीच एक सामंजस्य बना है, जो भारत और अमेरिका के सोच से मेल खाता है.

यह ईरान को कबूल नहीं, इसलिए उसने पिछले साल रेल निर्माण में चीन की कंपनी को ठेकेदारी दे दी, जबकि समझौते के अनुसार यह काम भारत को करना था. पाकिस्तान की मध्य-पूर्व नीति पूरी तरह से कश्मीर प्रेरित है. चूंकि पाकिस्तान की सीमा ईरान और अफगानिस्तान से मिलती है और पाकिस्तान चीन का पिछलग्गू बन चुका है, इसलिए शतरंज की बिसात चीन से शुरू होती हुई अफगानिस्तान और ईरान तक पहुंचती है.

इन परिघटनाओं का उल्लेख भारत और अमेरिका के संबंध में इसलिए किया गया है कि क्या अमेरिका भारत के साथ सामरिक मित्रता की शाख को मजबूत बनाते हुए चीन पर निरंतर दबाव डालेगा या चीन के साथ नये दौर की शुरुआत कर भारत के लिए नयी समस्या पैदा करेगा? हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक का क्षेत्र भारत की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. चीन ने पहले हिमालय के देशों को अपने कब्जे में लेने की कवायद की.

पहले तिब्बत पर कब्जा, फिर नेपाल पर प्रभाव और बीच-बीच में भूटान को डराने की वह साजिश करता रहा है. ठीक उसी तरह हिंदुकुश देशों में भी चीन ने जाल बिछा दिया है. उसके बाद वह भारत के समुद्री इलाको में भी फैलने लगा है. अगर अमेरिका नयी विश्व व्यवस्था की बात करता है और चीन की शक्ति को रोकना चाहता है, तो उसे भारत के माध्यम की निश्चित जरूरत होगी. भारत-अमेरिका संबंध की जांच-परख इसी सिद्धांत पर होगी.

Posted By : Sameer Oraon

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