15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नये साल में कोविड पर निगाह रहे

प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय बैठकें हुई हैं तथा वायरस के बाहर, खासकर चीन, से आने से रोकने के लिए कुछ स्पष्ट कदम उठाये गये हैं.

हम नये साल में हैं, पर ऐसा लगता है कि महामारी से अभी पीछा नहीं छूटा है. चीन में कोरोना का कहर इंगित करता है कि इससे पीछा छुड़ाना आसान नहीं होगा. वर्ष 2019 के अंत में चीन से ही इसकी शुरुआत हुई थी और महामारी की सही स्थिति की जानकारियां बाकी दुनिया से साझा नहीं की गयी थीं. इटली में भी उसी समय कोरोना संक्रमण हुआ था, पर इसका पता जनवरी-फरवरी, 2020 में तब चला, जब आरटी-पीसीआर जांच की सुविधा आयी.

वायरस के उद्भव और उसके प्रसार के बारे में अभी भी हमें पता नहीं है. इस संबंध में भू-राजनीतिक चुनौती यह रही कि चीन ने जांचकर्ताओं के लिए दरवाजे बंद रखे थे. अभी फिर चीन वही खेल खेल रहा है. सरकारी आंकड़ों पर आधारित वर्ल्डओमीटर के ग्राफ के अनुसार, वहां नवंबर-दिसंबर में एक लहर आयी थी, जिसका चरम दिसंबर के दूसरे सप्ताह में आया.

उस समय रोजाना चार हजार संक्रमण का ग्राफ क्रिसमस तक तीन हजार के आसपास आ गया. अन्य स्रोत, विशेषकर विदेशी समाचार एजेंसियों के अनुसार पूरे देश में महामारी का कहर रहा. बीजिंग एवं ग्वांगदोंग सबसे अधिक प्रभावित रहे. क्रिसमस के दिन न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि चीन में वायरस जंगली आग की तरह फैल रहा है. मौजूदा फैलाव अधिकांश ओमिक्रॉन बीएफ-7 वायरस की वजह से हो रहा है, जिसके कुछ मामले पहले भारत में भी पाये गये हैं.

दुर्भाग्य से विश्व स्वास्थ्य संगठन फिर एक बार इस लहर के मामले में दुनिया का नेतृत्व करने में अक्षम है. ऐसी ही देरी जनवरी, 2020 में हुई थी, जब तीन महादेशों के कई देशों और ऑस्ट्रेलिया में वायरस से फैल रही महामारी सामने थी. संगठन ने महामारी की घोषणा मार्च, 2020 के दूसरे सप्ताह में की थी. संगठन की नयी जांच ने इसे स्वीकार किया है.

माना जाता है कि यह देरी महामारी की घोषणा नहीं करने के लिए चीनी दबाव का नतीजा थी. भारत की तैयारी और प्रतिक्रिया भी कमजोर थी. कई मौतों को दर्ज नहीं किया गया था. इसलिए यह समझा जा सकता है कि भारत अभी क्यों चिंतित है.

इस संबंध में प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय बैठकें हुई हैं तथा वायरस के बाहर, खासकर चीन, से आने से रोकने के लिए कुछ स्पष्ट कदम उठाये गये हैं. बीते वर्षों में दुनिया आगे बढ़ी है तथा वैज्ञानिक एवं महामारी विशेषज्ञ, जिसमें भारत के विशेषज्ञ भी हैं, महामारी के बारे में जानकारियों से लैस हैं. इसलिए भारत के लिए बेचैन होने का कोई कारण नहीं है.

हमें आज यह करना है कि हम संक्रमण के रोजाना की संख्या और विभिन्न राज्यों में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति पर निगरानी रखें तथा ठोस निष्कर्ष निकालें. अभी तक भारत में किसी नयी लहर के कोई संकेत नहीं हैं. भारत में कोविड-19 की तीन लहरें आयी हैं- 2020 में दस माह चला संक्रमण, 2021 में मार्च-जुलाई में तथा 2022 में जनवरी-फरवरी में. चिकित्सकीय भाषा में लहर महामारी का प्रसार है तथा वैली एक स्थानिक (इंडेमिक) प्रसार है, अगर वह लंबे समय तक रहता है. भारत में मार्च, 2022 से यही स्थिति है और संक्रमण में थोड़ी वृद्धि जून, जुलाई और अगस्त हुई थी, पर उसे लहर नहीं कहा जा सकता है.

ओमिक्रॉन वैरिएंट ने भविष्यवाणियों को गलत साबित किया है और इसके अनेक रूप निकले हैं. इन पर टीके की दोनों या तीनों खुराक या संक्रमण से मिली प्रतिरोधक क्षमता का असर भी नहीं हुआ. तो, अब भारत को क्या करना चाहिए? सही है कि कोरोना वायरस ने विशेषज्ञों के बनाये नियमों का पालन नहीं है, सो हमें सचेत रहना होगा. किसी भी तरह के पैनिक का कोई मतलब नहीं है.

पूरी तरह से तथ्यों को जानने में अभी समय लगेगा. लेकिन हम यह जानते हैं कि चीन के वुहान में 2020 में बहुत कड़ा लॉकडाउन लगा था. इसका मतलब था कि वहां हाहाकारी लहर आयी थी. लॉकडाउन की तैयारी में उन्होंने विदेशियों को निकल जाने दिया और जो मेडिकल छात्र केरल वापस आये, उनके साथ वायरस भी आया.

उस लॉकडाउन की तर्ज पर भारत में मार्च में लॉकडाउन लगाया गया, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी की घोषणा की, लेकिन तब वायरस उस तरह से फैलना शुरू नहीं हुआ था. वायरस के प्रसार को रोकने के लिए चीन लगातार कठोर रहा, पर उसने यह जताया कि देश में सब कुछ अच्छा चल रहा है. वहां 2021 में शीतकालीन ओलिंपिक भी आयोजित हुए. फिर वे लोग ‘जीरो कोविड’ नीति लेकर आये, जो नवंबर, 2022 तक जारी रहा.

कुल मिलाकर, 2020 में और 2022 की अंतिम तिमाही में बहुत से चीनियों को संक्रमण और बीमारी से बचाया गया, लेकिन बीएफ-7 वायरस को रोका नहीं जा सका. उनका स्थानीय टीका कारगर साबित नहीं हुआ है. मृत वायरस से बने उस वैक्सीन में अलम्यूनियम साल्ट, लेकिन भारत में ऐसे वैक्सीन में विशेष मोलिक्यूल भी है, जो अधिक प्रतिरोधी है. ऐसे टीके से फिर से संक्रमित होने के बावजूद गंभीर बीमारी नहीं होती है.

चीन की जीरो कोविड नीति के चलते बड़ी संख्या में चीनी लोगों में प्रतिरोधी क्षमता विकसित नहीं हुई. अभी लाखों चीनी पहली बार संक्रमित हो रहे हैं. यही कारण है कि लोग गंभीर रूप से बीमार हो रहे हैं. प्रतिरोधक क्षमता वाली आबादी, बुजुर्गों को छोड़कर, के लिए ओमिक्रॉन से होने वाली बीमारी जानलेवा नहीं है. वर्तमान समय में यह भविष्यवाणी करना तार्किक है कि भारत के सामने चीन की तरह का कोई जोखिम दूर दूर तक नहीं है.

हमारे यहां जो मौतें होनी थीं, वे 2020-21 के दौरान हो चुकी हैं, भले ही उनसे संबंधित तथ्यों पर विवाद हो. यह स्पष्ट तथ्य है कि हमारे देश में जीरो कोविड नीति नहीं थी, बल्कि वायरस को उसकी गति से बढ़ने दिया गया. हमने फिर से संक्रमण को भी होने दिया है. साथ ही, हमारे पास बहुत अधिक कारगर वैक्सीन भी है.

ओमिक्रॉन और उसके ज्ञात वैरिएंट 2023 में भारत में कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं. विशेषज्ञों की सलाह है- सचेत रहें, चिंतित नहीं. सतर्क रहें, बेचैन नहीं. रोज के संक्रमणों पर नजर रखें और रूझानों को देखें. यह नये साल के लिए बहुत अच्छा है. भीड़ भरे इलाकों में मास्क लगाना सही रहेगा. इससे अन्य तरह के संक्रमणों से भी बचाव में मदद मिलेगी. ऐसा करने से एक सामान्य अनुशासन बनता है तथा आसान सुरक्षा मिलती है. अगर स्थिति बिगड़ती है, तब इसे अनिवार्य बनाया जा सकता है.

(ये लेखकद्वय के निजी विचार हैं)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें