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कोरोना से परास्त होता अमेरिका

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान सामान्य नहीं है कि मैंने फोन पर प्रधानमंत्री मोदी से बात कर उनसे हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा भेजने की गुजारिश की है, ताकि हम कोविड-19 संक्रमितों का बेहतर इलाज कर सकें. उन्होंने कहा कि भारत बड़ी मात्रा में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन बनाता है और मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि अगर भारत हमें दवा भेजेगा, तो हम उन्हें धन्यवाद देंगे.

अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

awadheshkum@gmail.com

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान सामान्य नहीं है कि मैंने फोन पर प्रधानमंत्री मोदी से बात कर उनसे हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा भेजने की गुजारिश की है, ताकि हम कोविड-19 संक्रमितों का बेहतर इलाज कर सकें. उन्होंने कहा कि भारत बड़ी मात्रा में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन बनाता है और मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि अगर भारत हमें दवा भेजेगा, तो हम उन्हें धन्यवाद देंगे.

इस दवा के निर्यात और उसके फॉर्मूले को किसी अन्य देश को देने पर फिलहाल भारत सरकार द्वारा रोक है. इससे पता चलता है कि कोरोना के प्रकोप से अमेरिका किस दशा में गुजर रहा है. वैसे तो, इस वायरस ने पूरे विश्व में तबाही मचा दी है, लेकिन अमेरिका जैसी महाशक्ति जिस तरह परास्त हो रही है, वह सबसे ज्यादा डरावनी स्थिति है.

संक्रमण से तीन अप्रैल को वहां 1,480 लोगों की मौत हो गयी. इस वायरस से किसी भी देश में एक दिन के भीतर मौत का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है. इससे बाद पांच अप्रैल को 1469 लोगों की मौत हुई. अमेरिका में मरनेवालों की संख्या 9600 को पार कर चुकी है. संक्रमित लोगों की संख्या सवा तीन लाख से अधिक है, जो विश्व में सबसे अधिक है.

अभी तक इटली में मृतकों की संख्या सर्वाधिक है. अब आशंका है कि आनेवाले दिनों में अमेरिका सबसे अधिक मौतों वाला देश भी बन सकता है. व्हॉइट हाउस ने कोरोना से निबटने के लिए टास्क फोर्स गठित किया. इसके एक सदस्य और ट्रंप के करीबी डॉक्टर फौची ने कहा है कि यह वायरस एक से दो लाख अमेरिकियों की जान ले सकता है. राष्ट्रपति ट्रंप ने स्वयं कहा कि मैं हर अमेरिकी से कहना चाहता हूं कि वे मुश्किल दिनों के लिए तैयार रहें. व्हाइट हाउस के टास्क फोर्स के कई सदस्यों ने संभावना जतायी है कि यह बीमारी अगले दस दिनों में चरम पर होगी. अकेले न्यूयॉर्क में संक्रमित लोगों की संख्या कई देशों से अधिक है. मौत के आंकड़े भी उतने ही भयावह हैं.

यह 11 सितंबर, 2001 के आतंकवादी हमले में मारे गये लोगों की संख्या को पार कर चुका है. उस हमले में 2,996 लोगों की जान गयी थी. न्यूयॉर्क के मेयर ने ट्रंप की तैयारी पर नाखुशी जता रहे हैं. उन्होंने 1000 नर्स, 150 डॉक्टर और 130 रेस्पायरेटरी थेरेपिस्ट के साथ 3000 वेंटिलेटर की मांग की है. उन्होंने सेना के मेडिकल कर्मियों को तैनात करने की मांग भी की है. इसका अर्थ है कि वहां स्वास्थ्यकर्मियों और संसाधनों की भारी कमी है. अस्पतालों की कमी को देखते हुए सेना को लगाया गया है.

जैसा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने बताया है, आर्मी कोर ऑफ इंजीनियर्स ने अमेरिका के सभी 50 राज्यों में 100 ज्यादा सुविधा केंद्रों को अस्पताल के लिए निर्धारित किया है. सेना की जिम्मेदारी बढ़ा दी गयी है. अब तक सेना सिर्फ मेकशिफ्ट अस्पतालों को बनाने और मेडिकल आपूर्ति के काम में लगी हुई थी. ट्रंप ने कहा है कि हम एक अदृश्य दुश्मन से लड़ रहे हैं. इस स्थिति से लड़ने के लिए कोई भी बेहतर तरीके से तैयार नहीं है. सेना स्थिति कितना संभाल पाती है, इसे अभी देखना होगा. कारण, यह ऐसा वायरस है, जिसके बारे में अभी तक जानकारी कम है. चीन ने जरूर इस महामारी पर काबू पाया, इसके बावजूद उसका सूत्र काम नहीं आ रहा है.

विश्व में अमेरिका के स्वास्थ्य ढांचे का लोहा माना जाता था, लेकिन इस प्रकोप ने इसे ध्वस्त कर दिया है. वहां की कमियां और कमजोरियां उजागर हुई हैं. इलाज के दौरान कोविड-19 ने अनेक डॉक्टरों और नर्सों को भी चपेट में ले लिया है. हालांकि, स्वास्थ्यकर्मी इन बाधाओं के बीच भी काम कर रहे हैं, पर वे असंतोष भी व्यक्त कर रहे हैं.

स्वास्थ्यकर्मी कैलिफोर्निया और न्यूयॉर्क में प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि सुरक्षा उपकरणों की कमी के कारण उनकी जान को खतरा है. उनका आरोप है कि उनके मास्क पारंपरिक किस्म के हैं और वे कोविड-19 से लड़ने में सक्षम नहीं हैं. राजनीति का चरित्र वहां भी धीरे-धीरे भारत की तरह हो रहा है, जहां विपक्ष सरकार की आलोचना तक सीमित है.

हाउस स्पीकर नैंसी पलोसी ने ट्रंप को गैर-जिम्मेदार और लापरवाह तक कह दिया. विरोधी कह रहे हैं कि पहले ट्रंप इसे सामान्य फ्लू ही मान रहे थे, अब उनके स्वर बदल गये. मिनेसोटा से डेमोक्रैट सांसद इल्हान उमर ने कहा है कि हम दुनिया के सबसे अमीर देश हैं और हर तरह की सुविधा है, फिर भी लाखों लोग इस कुप्रबंधन और ट्रंप की अयोग्यता के कारण मर सकते हैं. न्यूयॉर्क के मेयर बिल डे ब्लासियो कहते हैं कि मुझे लगता है कि वॉशिंगटन यह मानकर बैठा था कि तैयारी के लिए कई सप्ताह हैं. अमेरिका को यह उम्मीद नहीं थी कि उसके देश में कोविड-19 का इतना भयानक प्रकोप होगा. इस कारण प्रशासन ने निपटने की पूर्व तैयारी नहीं की. उन्हें लगा कि चीन तो काफी दूर है. हालांकि, वो भूल गये कि वुहान से उनके कई शहरों में सीधी हवाई सेवा है, अरब से है और यूरोप के प्रभावित देशों से भी.

बहरहाल, प्रकोप के बाद भी जिस तरह का निर्णय होना चाहिए, उसमें कमी दिख रही है. वहां अनिश्चितता की स्थिति है. वहां अभी मास्क पहनने और नहीं पहनने को लेकर ही बहस छिड़ी हुई है.

अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) ने लोगों से कहा है कि वे घर से निकलने से पहले मास्क जरूर पहनें. राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि मास्क को लेकर सीडीसी ने सिर्फ सुझाव दिया है. यह स्वैच्छिक होगा. मैं ऐसा नहीं करूंगा. मैं राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, तानाशाहों, राजाओं और रानियों से मिलता हूं.

ऐसे में मास्क पहनना, मुझे नहीं लगता कि यह ठीक होगा. जरा सोचिए, सीडीसी के अधिकारी लगातार ट्रंप से कह रहे हैं कि वे लोगों को इसे लगाने की सलाह दें. ट्रंप स्वयं ही ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इनफेक्शियस डिजीजेज की डायरेक्टर डॉ फौची ने ट्रंप से देशभर में घर पर रहने का आदेश जारी करने को कहा था. ट्रंप ने यह सुझाव भी नहीं माना. उन्होंने कहा था कि वे इसका फैसला राज्यों के गवर्नर पर छोड़ते हैं. अमेरिका का कोरोना परिदृश्य क्या होगा, अभी एकदम निश्चित तस्वीर नहीं खींची जा सकती, पर अभी संक्रमितों व मृतकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए इसकी भयावहता को लेकर कोई संदेह नहीं रह जाता.

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