गर्मी के मौसम की शुरुआत से ही देश के अनेक हिस्सों में पानी की कमी की समस्या है. दिल्ली और बेंगलुरु में तो यह समस्या संकट का रूप धारण कर चुकी है. भारत में विश्व की 18 प्रतिशत जनसंख्या रहती है, लेकिन स्वच्छ जल का केवल चार प्रतिशत ही हमारे हिस्से है. साल-दर-साल पानी की मांग बढ़ती जा रही है. तापमान के लगातार बढ़ते जाने से भी उपलब्धता पर असर पड़ रहा है. इस वर्ष तो उत्तर, पश्चिम एवं पूर्वी भारत में हीटवेव की अवधि अधिक रही है. अगर हम नदियों, जलाशयों, भूजल और वर्षा जल का समुचित संरक्षण करते रहते तथा पानी का नियंत्रित उपभोग करते, तो वर्तमान चुनौती पैदा ही नहीं हो पाती. जल स्रोतों के अत्यधिक दोहन से दूषित जल की मात्रा भी बढ़ रही है. दूषित पेयजल के मामले में भारत 180 देशों की सूची में 141वें स्थान पर हैं.
हमें जो पानी उपलब्ध है, उसका लगभग 70 प्रतिशत पानी प्रदूषित है. देश के सैकड़ों जिलों में भूजल में आर्सेनिक तत्वों की मौजूदगी है. जल संकट की स्थिति में सुधार नहीं आया, तो इसके विभिन्न प्रभावों के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था का भी नुकसान हो सकता है. प्रमुख वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने इस जोखिम को रेखांकित करते हुए यह भी कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार बड़ा है तथा उसका तेज विस्तार भी हो रहा है, जिससे पानी की जरूरत भी बढ़ती जा रही है. मांग बढ़ने का एक कारक जनसंख्या वृद्धि भी है. वैसे तो पानी की खपत सभी औद्योगिक क्षेत्रों में है, पर पानी की कमी कोयले से चलने वाले बिजली उत्पादक संयंत्रों तथा इस्पात उद्योग के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकती है. हमें विकास के लिए इन उद्योगों की बड़ी जरूरत है.
जल शक्ति मंत्रालय के आकलन के अनुसार, 2031 तक औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता घटकर 1,367 घन मीटर हो जायेगी, जो 2021 में 1,486 घन मीटर थी. यदि यह उपलब्धता 1,700 घन मीटर से नीचे आ जाती है, तो वह दबाव की स्थिति होती है और जब यह एक हजार घन मीटर के स्तर पर आ जाती है, तो जल अभाव माना जाता है. देश के कई हिस्सों में ऐसी स्थिति पैदा हो चुकी है. औद्योगिक गतिविधियों के लिए कम उपलब्धता के जोखिम के साथ-साथ लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ने और पानी का इंतजाम करने में समय की बर्बादी से भी आर्थिक नुकसान होता है. भारत सरकार ने जल संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने तथा स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को अपनी प्रमुख प्राथमिकताओं में शामिल किया है. विभिन्न राज्य सरकारें भी इस दिशा में अग्रसर हैं. हमें जल प्रबंधन के लिए अधिक निवेश जुटाने की आवश्यकता है. साथ ही, जल संरक्षण पर ठोस ध्यान दिया जाना चाहिए.