हमारे विधान के विधाता, ‘समतापुरुष’, भारतरत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर के बारे में सोचते हुए मुझे अक्सर ‘धम्मपद’ में उल्लिखित महात्मा बुद्ध की एक पंक्ति याद आती है, जिसमें वे कहते हैं कि मनुष्य जो भी कुछ है वह पूर्व के अपने विचारों के कारण है. यह बात केवल व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र पर भी लागू होती है. आज अगर हम समतावादी, बहु-सांस्कृतिक और सबसे बड़े लोकतांत्रिक समाज और राष्ट्र हैं, तो इसके पीछे हमारे मनीषियों और महापुरुषों की दूरदृष्टि है. उनके दर्शन और विचार हैं. डॉ आंबेडकर भी उन्हीं महापुरुषों में से एक हैं.
डॉ आंबेडकर का जीवन संघर्षमय रहा, लेकिन राष्ट्र और भारतीयता के प्रति उनकी अटूट निष्ठा रही. जब राष्ट्र निर्माण की बारी आती है, तो वे एक ‘संतुलित’, ‘समन्वित’ और ‘समावेशी’ भारतीय समाज की परिकल्पना करते हैं. वे अतीत के अध्ययन, अनुभव और भविष्य की दूरगामी दृष्टि के समुच्चय थे. उनका कहना था कि जो व्यक्ति और समाज, अतीत को नहीं समझता, वह नये इतिहास का निर्माण नहीं कर सकता है.
मनुष्य और मानवता के प्रति समर्पण और संकल्प की साक्षात प्रतिमूर्ति थे डॉक्टर आंबेडकर. समष्टि के लिए व्यष्टि या समाज के लिए अपने विचारों और हितों को किनारे भी रखना पड़े, तो उसके लिए भी हमें कभी हिचकिचाना नहीं चाहिए. आजादी मिलनी जब तय हो गयी, तो डॉ आंबेडकर ने संविधान सभा को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें उन्होंने संविधान में ‘समाजवाद’ को शामिल करने की मांग की. तब तक वे संविधान के मसौदा समिति के अध्यक्ष मनोनीत नहीं हुए थे.
उस समय वे जिस आदर्श समाज की परिकल्पना करते थे, उसमें ‘धर्म’, ‘व्यक्ति’, ‘सामाजिक प्रजातंत्र’, ‘राजनीतिक प्रजातंत्र’ के साथ-साथ ‘राज्य समाजवाद’ से मिल कर बना था. हालांकि, धर्म की उनकी व्याख्या मजहब अथवा रिलीजन से अलग थी और जिसे वह मानव इतिहास की सबसे शक्तिशाली चालक शक्तियों में एक मानते हुए इसे सामाजिक आदर्श की दृष्टि से देखते थे. उनका मानना था कि समाजवाद को संविधान के माध्यम से लागू किया जाये, जिसके लिए उन्होंने बाकायदा संविधान सभा को ज्ञापन सौंपा था.
आगे चल कर, जब उन्हें संविधान की मसौदा समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया, तो उन्होंने समाजवाद को संविधान में शामिल करने पर जोर नहीं दिया. संविधान की ‘प्रस्तावना’ में जब इसे शामिल करने की बात आयी, तो समर्थन तो बहुत दूर, उन्होंने विरोध किया कि आर्थिक और सामाजिक विषय समाज के क्षेत्र में आते हैं. इन्हें समय और परिस्थिति के आधार पर निर्णय लेने के लिए लोगों पर छोड़ देना चाहिए. यह ऊंचाई थी डॉ आंबेडकर के विचारों में.
वे चाहते तो संविधान में ‘राज्य समाजवाद’ को रखवा सकते थे, जो कि वह पहले चाहते भी थे. पर, उन्होंने समाज के व्यापक हित को देखा और उसके अनुसार चले. जब ‘राष्ट्र’ हमारे विचारों के केंद्र में होता है, तो विरोधों की कोई परवाह नहीं होती. जब ‘विरोध’ हमारे केंद्र में आ जाते हैं, तो ‘राष्ट्र’ कहीं पीछे छूट जाता है.
डॉ आंबेडकर के मूल्य, उनका दर्शन, उनके विचार प्रकाश स्तंभ की तरह कार्य कर रहे हैं. उन्होंने शिक्षा, संस्कृति और नैतिकता की पुरजोर वकालत की थी, जिसे मोदी सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनइपी)-2020 के रूप में साकार कर रही है. इसका निर्माण ही न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया से हुआ है, बल्कि सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय भी है.
दुनिया के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि शिक्षा नीति बनाने के लिए देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6600 ब्लॉक और 676 जिलों के लोगों से सलाह ली गयी. देश के चारों दिशाओं से शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, अध्यापकों, जनप्रतिनिधियों, उद्योगपतियों, अभिभावकों, यहां तक कि छात्रों तक के सवा दो लाख सुझावों पर मंथन कर जनआकांक्षाओं के अनुरूप यह एनइपी साकार हुई है.
सबको शिक्षा और सबको काम मिले, इसके लिए अनेक प्रावधान किये गये हैं. खास तौर से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी के विद्यार्थियों के लिए विशेष उपाय किये जायेंगे. इसी तरह मजदूरों और किसानों की स्थिति बेहतर बनाने, छोटी जोतों को मिला कर संयुक्त खेती करके किसानों को लाभ दिलाने का उनका पुराना सपना था, जिसे सरकार श्रम कानूनों और कृषि क्षेत्र में नये-नये सुधारों और तकनीकों के माध्यम से पूरा कर रही है.
औद्योगीकरण पर उनका विशेष जोर था. मोदी सरकार ने न केवल औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया है, बल्कि आत्मनिर्भरता अभियान के माध्यम से स्वदेशीकरण और घरेलू सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को सशक्त बनाने की दिशा में बड़े कदम बढ़ाये हैं. विदेश मामलों में भी उनके विचार बहुत दूरगामी थे. चीन को लेकर आज से लगभग 70 साल पहले उन्होंने चिंता व्यक्त की थी कि चीन यदि आज हमारा मित्र है, तो जरूरी नहीं कि भविष्य में भी वह ऐसा ही रहे, इसलिए उससे सावधानी बरतने की बात उन्होंने की थी.
बाबासाहेब के विचारों के प्रति नरेंद्र मोदी सरकार पूर्ण प्रतिबद्ध है और उनका अधिकाधिक प्रचार-प्रसार करने के लिए कटिबद्ध भी. यह अनायास नहीं कि मोदी सरकार ने आंबेडकर को सामान्य जन-जीवन से जोड़ने के लिए उनसे जुड़े स्थलों को, ‘प्रेरणा स्थल’ के रूप में जनता को समर्पित करने का एक अभिनव प्रयास किया है.
उनके जन्म से लेकर निर्वाण स्थल तक यानी मध्यप्रदेश के महू, मुंबई के इंदु मिल, लंदन में उनका पूर्व आवास, नागपुर की दीक्षाभूमि और दिल्ली के अलीपुर के आवास को सरकार समता और प्रेरणा स्थल के रूप में विकसित कर भाजपा सरकार ने बाबासाहेब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि व्यक्त की है. लंदन स्थित उनके आवास को म्यूजियम में परिवर्तित करने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है. मोदी सरकार विभिन्न युवा संगठनों के माध्यम से भी जनता के बीच आंबेडकर और सांविधानिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है.
मोदी सरकार जिस ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ के पथ पर चल रही है, वह एक तरह से बाबासाहेब आंबेडकर का ही रास्ता था. आज ‘हम, भारत के लोग’ इसी मार्ग पर चलें, उन महापुरुष के प्रति हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी’.