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रद्द नहीं हो बारहवीं की परीक्षा

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय भी खुले मन से इस दिशा में सोचे और विद्यार्थियों के भविष्य को देखते हुए ज्यादा दखल न दे.

उमेश चतुर्वेदी

वरिष्ठ पत्रकार

uchaturvedi@gmail.com

कोरोना महामारी की डराती अनगिनत कहानियों के बीच केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने संकेत दिया है कि दसवीं की तरह वह बारहवीं की परीक्षा भी रद्द कर सकता है. बारहवीं की परीक्षा को लेकर अभिभावकों और विद्यार्थियों के अलग-अलग विचार सामने आ रहे हैं. कुछ छात्र सोशल मीडिया मंचों पर परीक्षा के खिलाफ मीम्स बना रहे हैं. उनकी ख्वाहिश है कि दसवीं की तरह बारहवीं की भी परीक्षा रद्द कर दी जाये. जबकि, अभिभावक चाहते हैं कि बोर्ड परीक्षा के लिए दूसरे विकल्पों पर विचार करे. अभिभावक बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता तो कर रहे हैं, लेकिन वे परीक्षा को रद्द करने के पक्ष में भी नहीं हैं. अभिभावकों की इस सोच के साथ मेहनती और मेधावी छात्र भी हैं, जिन्होंने दो साल तक बारहवीं की परीक्षा की तैयारी की है.

इन छात्रों की सेहत की चिंता करना अभिभावकों का ही नहीं, बल्कि समाज और सरकार का भी काम है. परीक्षा रद्द होने की स्थिति में छात्रों के मूल्यांकन के लिए चाहे जो भी वैकल्पिक इंतजाम किया जाये, लेकिन यह तय है कि उसका नतीजा जनरल मार्किंग ही होगी. इसका खामियाजा प्रतिभाशाली और मेहनती छात्रों को उठाना पड़ेगा. जिस तरह का शैक्षिक ढांचा और परीक्षा प्रणाली हमने अपनायी है, उसमें छात्रों के उचित मूल्यांकन की राह परीक्षा की मौजूदा व्यवस्था से ही होकर गुजरती है. अभिभावक चूंकि अनुभवी हैं, जीवन पथ के तमाम थपेड़े झेल चुके हैं. लिहाजा उन्हें पता है कि अगर बारहवीं की परीक्षा में बच्चे को उसकी मेहनत और प्रतिभा के लिहाज से नंबर नहीं मिले तो भावी जिंदगी में उसकी चुनौतियां बढ़ जायेंगी. इसीलिए वे चाहते हैं कि बोर्ड परीक्षाओं के लिए वैकल्पिक इंतजाम करे.

परीक्षाओं की अपनी पवित्रता रही है. इनके ही दम पर करीब डेढ़ सौ साल से जिंदगी की रपटीली राह की मंजिलें तय की जा रही हैं. रटंत परंपरा को स्थापित करने को लेकर परीक्षाओं के मौजूदा ढर्रे की चाहे जितनी भी आलोचना होती रही हो, लेकिन हकीकत यही है कि मौजूदा वक्त की यह सच्चाई है. ऐसा नहीं कि कोरोना खत्म नहीं होगा और इसके बाद परीक्षाओं को मौजूदा ढर्रे से एकाएक बदल दिया जायेगा. यही वजह है कि कोरोना संकट के बावजूद अब भी परीक्षाओं को लेकर खास तरह पवित्रता बोध बना हुआ है. अनुभवी लोग इसीलिए नहीं चाहते कि परीक्षाओं को रद्द कर दिया जाये. अगर विद्यार्थी के ज्ञान को जांचने का ढांचा बदला जाना हो तो परीक्षाओं को रद्द किये जाने का चौतरफा स्वागत ही होगा. लेकिन यह अभी संभव होता नहीं दिख रहा. आज की मौजूदा शिक्षा व्यवस्था, जिसमें निजी क्षेत्रों का हस्तक्षेप और भागीदारी बढ़ गयी है, वह परीक्षाओं के मौजूदा पैटर्न के आधार पर ही अपनी या अपने संस्थान की मार्केटिंग करते हैं. इसलिए वे भी नहीं चाहेंगे कि परीक्षाओं का मौजूदा पैटर्न खत्म हो. उनकी लॉबी इतनी मजबूत है कि वे बड़े से बड़े तंत्र को भी झुका देते हैं, इसलिए भी परीक्षाओं को रद्द करने को बेहतर विकल्प नहीं माना जा रहा.

शिक्षा तंत्र के जानकार और शिक्षा शास्त्री इसीलिए बार-बार कह रहे हैं कि परीक्षाओं की पवित्रता को बचाये रखना जरूरी है. अब सवाल यह है कि कोरोना के चुनौतीपूर्ण समय में परीक्षा के पारंपरिक पैटर्न के अलावा क्या विकल्प हो सकता है? इसका जवाब डीयू जैसे तमाम विश्वविद्यालय इसी कोरोना काल में दे चुके हैं. उन्होंने अंतिम वर्ष वाले विद्यार्थियों की न सिर्फ परीक्षा ली, बल्कि थोड़ी देर के बावजूद परीक्षाफल भी दे दिया. यह सच है कि इसके लिए छात्रों को कुछ दिक्कतें उठानी पड़ीं. विश्वविद्यालय के तंत्र से भी गलतियां हुईं. लेकिन उन्होंने इसी संकट काल में राह निकाली और आगे बढ़ गये.

ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सीबीएसई अपनी तरफ से ऐसा कोई वैकल्पिक इंतजाम नहीं कर सकता? वह ऑनलाइन परीक्षाएं क्यों नहीं ले सकता. इसके लिए विद्यार्थियों को तीन की बजाय हर पेपर में चार घंटे का समय दिया जा सकता है. इस व्यवस्था में एक संकट हो सकता है कि विद्यार्थी अपने घरों पर किताब खोलकर सवालों के जवाब देख सकते हैं. लेकिन इन जवाबों को वही ढूंढ़ पायेंगे, जिन्होंने पढ़ाई की होगी. इसी बहाने पाठों का वे एक बार फिर रिवीजन भी कर सकेंगे. इस विकल्प के खिलाफ तर्क दिया जा सकता है कि बहुत विद्यार्थी ऐसे भी होंगे, जिनके पास एंड्रायड फोन या लैपटॉप नहीं होंगे. इसके लिए बोर्ड जिला स्तर पर इंतजाम कर सकता है. वहां सफाई और शारीरिक दूरी का ध्यान रखते हुए परीक्षा ली जा सकती है. बोर्ड परीक्षा के निर्धारित समय में परीक्षा की कॉपी की फोटोकॉपी को इंटरनेट के जरिये अपने मेल पर मंगा भी सकता है. हो सकता है कि बोर्ड की ओर से तर्क आये कि इसके लिए उसे ज्यादा मानव श्रम की जरूरत होगी तो इसका भी जवाब हो सकता है कि संकटपूर्ण समय में वह इसका इंतजाम कर सकता है. इसके जरिये वह कुछ लोगों को दस-पंद्रह दिन ही सही, रोजगार भी दे सकता है.

ऐसा तभी हो सकता है कि बोर्ड के पास मजबूत इच्छा शक्ति हो. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय भी खुले मन से इस दिशा में सोचे और विद्यार्थियों के भविष्य को देखते हुए ज्यादा दखल न दे. हां, वह कोरोना को देखते हुए शारीरिक दूरी समेत हिफाजत के तमाम उपायों पर कड़ी नजर रख सकता है और यह जरूरी भी होगा.

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