वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह मार्च में 1.24 लाख करोड़ रुपये रहा, जो अब तक का अधिकतम है. वित्तवर्ष 2020-21 में लगातार छठे महीने जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा. पिछले वित्त वर्ष में सातवें महीने में जीएसटी संग्रह ने एक लाख करोड़ रुपये का स्तर पार किया था. मार्च में जीएसटी संग्रह के 1.24 लाख करोड़ रुपये रहने से कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह 2020-21 के संशोधित अनुमान से अधिक रह सकता है.
इससे राज्यों का हिस्सा देने के बाद भी केंद्र के पास पर्याप्त रकम बचेगी, जिसके कारण राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2020-21 के संशोधित अनुमान 9.5 प्रतिशत से कम रह सकता है. सरकार द्वारा जीएसटी वसूली प्रक्रिया को सरल करने और कर से जुड़े नियमों को लेकर सख्ती बरतने से संग्रह में तेजी आयी है. नियमों के अनुपालन से जीएसटी की चोरी में कमी आयी है. मार्च, 2021 में जीएसटी संग्रह 1,23,902 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में करीब 27 प्रतिशत अधिक है.
इस साल फरवरी के 1.13 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले मार्च में जीएसटी संग्रह 9.5 प्रतिशत अधिक रहा. वित्तवर्ष 2020-21 में सकल व्यक्तिगत आयकर (रिफंड सहित) में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. आयकर संग्रह में वृद्धि तब हुई, जब वर्ष 2020 में पूरे देश में तालाबंदी थी. पिछले वित्त वर्ष में रिकॉर्ड रिफंड जारी किये गये, जिससे शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह लगभग आठ प्रतिशत घटकर 9.5 लाख करोड़ रुपये रहा.
फिर भी, चार सालों में पहली बार कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह संशोधित अनुमान से ज्यादा है. सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह 12.1 लाख करोड़ रुपये रहा, जो गत वर्ष के 12.33 लाख करोड़ रुपये के करीब है. सकल व्यक्तिगत आयकर संग्रह 2020 के 5.55 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 2021 में करीब 5.7 लाख करोड़ रुपये रहा. हालांकि, निगमित कर संग्रह 6.4 लाख करोड़ रुपये रहा, जो 2020 में 6.7 लाख करोड़ रुपये था.
शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में कमी इसलिए आयी, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर महामारी का नकारात्मक प्रभाव देखकर सरकार ने रिफंड के मामलों का एक निश्चित समय-सीमा के अंदर निपटारा किया. शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह 9.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है. साथ ही शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह संशोधित अनुमान 9.05 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा. इससे केंद्र सरकार को काफी राहत मिली है.
वित्त वर्ष 2020-21 में प्रत्यक्ष कर रिफंड पिछले साल की तुलना में 43.3 प्रतिशत अधिक है. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने 2.38 करोड़ से ज्यादा करदाताओं को 2.62 लाख करोड़ रुपये के रिफंड जारी किये हैं. 2.34 करोड़ करदाताओं को करीब 87,749 करोड़ रुपये आयकर रिफंड किये गये, जबकि निगमित कर के मामलों में 1.74 लाख करोड़ रुपये वापस किये गये.
बजट में अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रभाव को देखते हुए 2021 के लिए प्रत्यक्ष कर संग्रह का लक्ष्य कम कर 13.19 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था. बजट में अनुमान लगाया गया था कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 9.5 प्रतिशत के बराबर रहेगा.
इधर, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) का अग्रणी भुगतान प्लेटफार्म यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) की मदद से लेन-देन करने की संख्या और राशि में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. मार्च महीने में यूपीआई के जरिये लेनदेन की राशि पांच लाख करोड़ रुपये की सीमा का पार कर गयी और लेन-देन की संख्या हर महीने लगभग तीन अरब के आसपास पहुंच रही है.
एनपीसीआई के अनुसार मार्च महीने में यूपीआई के जरिये 2.73 अरब लेनदेन किये गये, जो राशि में 5.04 लाख करोड़ रुपये थे. यह आंकड़ा मूल्य और संख्या दोनों दृष्टिकोण से पिछले महीने से 19 प्रतिशत अधिक है. फरवरी महीने में यूपीआई के माध्यम से 2.3 अरब लेनदेन किये गये थे, जिसकी राशि 4.25 लाख करोड़ रुपये थी. वहीं, पिछले वर्ष मार्च की तुलना में यूपीआई के जरिये किये जाने वाले लेनदेनों की संख्या और मूल्य में क्रमश: 120 और 144 प्रतिशत का उछाल आया है.
वित्त वर्ष 2021 में यूपीआई के जरिये 22 अरब से अधिक लेनदेन हुए, जिसकी राशि 34.19 लाख करोड़ रुपये है. वर्ष 2016 में अपने आगाज के बाद अक्तूबर 2019 में यूपीआई ने पहली बार एक अरब लेनदेन का आंकड़ा पार किया था.
एक महीने में एक अरब लेन-देन के स्तर पर पहुंचने में यूपीआई को तीन साल लगे थे, लेकिन यूपीआई के जरिये किये जानेवाले लेनदेन के दो अरब तक पहुंचने में महज एक साल का समय लगा, जिससे उपभोक्ताओं द्वारा पीयर-टू-पीयर (पी2पी) भुगतानों और पीयर टू मर्चेंट (पी-टू-एम) लेनदेनों में यूपीआई को तरजीह देने का संकेत मिलता है. डिजिटल भुगतानों में और खास करके यूपीआई के इस्तेमाल में वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के कारण जबरदस्त उछाल आया है.
मार्च में जीएसटी के संग्रह के शानदार आंकड़े और सकल व्यक्तिगत आयकर (रिफंड सहित) में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि होना देश में आर्थिक गतिविधियों के रफ्तार पकड़ने के प्रमाण हैं. मार्च 2020 में देशव्यापी तालाबंदी करने की वजह से देश में आर्थिक गतिविधियां लगभग रुक सी गयी थीं.
हालांकि, कोरोना महामारी की दूसरी लहर देशभर में तेजी से फैल रही है, लेकिन सरकार का मानना है कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि टीकाकरण की प्रक्रिया देश में तेजी से चल रही है. कोरोनाकाल में डिजिटल भुगतान में भी जबरदस्त उछाल आया है. डिजिटल भुगतान के बढ़ने से भ्रष्टाचार और नकदी लेनदेन में होनेवाले नुकसान में भारी कमी आने की संभावना है.