महामारी के मौजूदा दौर में यह पुरानी कहावत सही साबित होती दिख रही है कि मुसीबत कभी भी अकेले नहीं आती. सवा साल से चल रहे संक्रमण के सिलसिले से जहां बड़ी तादाद में लोगों की मौत हो रही है और लाखों लोग बीमार पड़ रहे हैं, वहीं हमारी अर्थव्यवस्था भी संकटग्रस्त है. छात्रों की पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं हो रही है और अन्य बीमारियों से जूझते लोगों को ठीक से उपचार नहीं मिल पा रहा है.
देश का समूचा ध्यान महामारी की रोकथाम पर है. ऐसी स्थिति में ब्लैक फंगस यानी म्युकरमाइकोसिस नाम की एक गंभीर बीमारी का फैलना बेहद चिंताजनक है. हालांकि इसके मरीजों की संख्या अभी कम है, लेकिन अनेक राज्यों में मरीजों के मिलने से स्वास्थ्य तंत्र सचेत हो गया है. कोरोना संक्रमण के दौरान या ठीक होने के बाद यह बीमारी संक्रमित के आंख को निशाना बनाती है.
इसमें आंखों और आसपास की कोशिकाएं सूख जाती हैं, जिससे खून का प्रवाह रुक जाता है. इससे आंख में घाव हो जाता है. कई बार फंगस से ग्रस्त आंख को निकालकर मरीज की जान बचायी जाती है. कुछ मामलों में ब्लैक फंगस का असर दिमाग और फेफड़ों पर भी पड़ता है. इस बीमारी का कारण लकड़ी आदि से निकलनेवाला फंगस है, जो हवा के जरिये रोगी को निशाना बनाता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के पीड़ित लोग इसका अधिक शिकार होते हैं.
ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों को देखते हुए कोविड अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है. इस बीमारी के बारे में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के साथ आम लोगों में भी जागरुकता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. फंगस से संक्रमित होने के शुरुआती लक्षण सामने आते ही इसकी सूचना चिकित्सक को दी जानी चाहिए क्योंकि किसी भी तरह की देरी रोगी के लिए खतरनाक हो सकती है.
जानकारों के अनुसार, पहले ऐसे अधिकतर मामले उन लोगों में देखे जाते थे, जो कोरोना संक्रमण से मुक्त हो चुके होते थे, किंतु अब यह संक्रमितों में भी पाया जाने लगा है. वैसे तो कोविड केंद्रों को साफ-सुथरा रखने की कोशिश होती है, लेकिन बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलने तथा अस्पतालों में अफरातफरी मचने की वजह से समय-समय पर कूड़ा-कचरा हटाना और स्वच्छता बनाये रखना मुश्किल हो रहा है. इस समस्या पर तुरंत ध्यान दिया जाना चाहिए.
ब्लैक फंगस कितना संक्रामक है, उसके उपचार की क्या पद्धति है और इससे बचाव के लिए क्या उपाय होने चाहिए, ऐसे सवालों पर शोध को बढ़ावा देना भी जरूरी है. ऐसी जानकारियां सभी स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचायी जानी चाहिए. सरकार द्वारा जारी सलाह पर अमल किया जाना चाहिए. आम तौर पर इसके लक्षण या चेतावनी संकेत कोरोना या मौसमी बुखार जैसे ही हैं, पर इनके बारे में चिकित्सक को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए. साफ-सफाई पर अतिरिक्त ध्यान देना चाहिए और निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए.