सतीश सिंह
मुख्य प्रबंधक
आर्थिक अनुसंधान विभाग भारतीय स्टेट बैंक, मंंुबई
देश के अग्रणी 30 शेयरों के प्रदर्शन का पैमाना यानी बाॅम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का संवेदी सूचकांक पहली बार बीते 21 जनवरी को 50 हजार अंक के स्तर को पार कर गया. छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव को छोड़ दें, तो पिछले साल 23 मार्च को 25,881 अंक तक लुढ़कने के बाद एक साल से कम समय में ही सूचकांक दोगुने स्तर को पार कर गया. यह सूचकांक 30 सर्वोच्च कंपनियों के शेयरों पर आधारित है, जिसमें समय-समय पर बदलाव होता रहता है, पर सूचकांक में हमेशा कुल कंपनियों की संख्या 30 होती है. इसमें सूचीबद्ध कंपनियां भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं. साल 1875 में स्थापित बीएसई भारत और एशिया का सबसे पुराना संवेदी सूचकांक है.
अब भारतीय अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे महामारी से पहले की स्थिति में लौट रही है. कोरोना वायरस का टीका आ चुका है तथा देशभर में टीकाकरण अभियान 16 जनवरी से शुरू हो गया है. अब लोगों के मन-मस्तिष्क से कोरोना का खौफ बाहर निकल रहा है. साल के अंत तक आर्थिक गतिविधियों के सामान्य स्तर पर पहुंचने की उम्मीद बढ़ी है. आगामी बजट में आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाने की उम्मीद है. विदेशी निवेशक मई से हर महीने औसतन चार अरब डॉलर का निवेश कर रहे हैं.
बाइडन प्रशासन द्वारा अमेरिका में राहत के उपायों की उम्मीद से नवंबर से ही विदेशी निवेशकों की लिवाली बढ़ी हुई है. दुनियाभर में मौद्रिक और आर्थिक राहत पैकेजों की घोषणा से भारत सहित सभी उभरते बाजारों में लिवाली का रुख बना हुआ है. इसकी वजह से शेयरों का मूल्यांकन भी काफी ज्यादा बढ़ गया है. सूचकांक में आये उछाल को आम लोग भारतीय अर्थव्यवस्था की ताजा स्थिति से जोड़ कर देख रहे हैं, लेकिन ऐसे उतार-चढ़ाव का अर्थव्यवस्था से कोई सीधा संबंध नहीं होता है.
सेंसेक्स शब्द को अंग्रेजी के शब्द सेंसेटिव इंडेक्स से लिया गया है. हिंदी में इसे संवेदी सूचकांक कहते हैं, क्योंकि यह बहुत ही ज्यादा संवेदनशील होता है. यह बहुत छोटी-छोटी घटनाओं या गतिविधियों, जैसे, मानसून के सामान्य रहने का अनुमान, सरकार की प्रस्तावित नीतियां, बजट के संभावित प्रावधान आदि से ऊपर-नीचे होता रहता है.
ताजा उछाल को समझने के लिये शेयर और शेयर बाजार के परिचालन को समझना जरूरी है. शेयर का अर्थ होता है हिस्सा. शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों को शेयर ब्रोकर की मदद से खरीदा व बेचा जाता है यानी कंपनियों के हिस्सों की खरीद-बिक्री की जाती है. भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) नाम के दो प्रमुख शेयर बाजार हैं. शेयर बाजार में बांड, म्युचुअल फंड और डेरिवेटिव भी खरीदे एवं बेचे जाते हैं. कोई भी सूचीबद्ध कंपनी पूंजी उगाहने के लिए शेयर जारी करती है. जितना निवेशक शेयर खरीदते हैं, उतना उसका कंपनी पर मालिकाना हक बढ़ जाता है. निवेशक अपने शेयर को कभी भी बेच सकते हैं.
शेयर बाजार में खुद को सूचीबद्ध कराने के लिए कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज से लिखित करारनामा करना होता है. इसके बाद कंपनी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास वांछित दस्तावेज जमा करती है. जांच के बाद कंपनी को बीएसई या एनएसई में सूचीबद्ध कर लिया जाता है. कंपनी को समय-समय पर अपनी आर्थिक गतिविधियों के बारे में सेबी को जानकारी देनी होती है, ताकि निवेशकों का हित प्रभावित नहीं हो. किसी कंपनी के कामकाज का मूल्यांकन ऑर्डर मिलने या नहीं मिलने, नतीजे बेहतर रहने, मुनाफा बढ़ने या घटने, आयत या निर्यात होने या नहीं होने, कारखाने या फैक्ट्री में कामकाज ठप पड़ने, उत्पादन घटने या बढ़ने, तैयार माल का विपणन होने या नहीं होने आदि जानकारियों के आधार पर किया जाता है.
इसलिए कंपनी पर पड़नेवाले सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव के आधार पर शेयरों की कीमतों में रोज उतार-चढाव आता है. इसके अलावा, शेयर की मांग, बिक्री के लिए उपलब्ध शेयर, भविष्य के अनुमान, कंपनी के वित्तीय नतीजे आदि कारणों से भी शेयरों की कीमत में उतार-चढ़ाव होता है. शेयर बाजार का नियामक सेबी है, जो सूचीबद्ध कंपनियों की गतिविधियों पर नजर रखता है. अगर कोई कंपनी करारनामा से इतर काम करती है, तो सेबी उसे बीएसई या एनएसई से अलग कर देती है.
इसका काम कृत्रिम तरीके से शेयरों की कीमतों को बढ़ाने या नीचे गिरानेवाले दलालों पर भी लगाम लगाना होता है. अर्थव्यवस्था में सुधार, सरकारी नीतियों, सकारात्मक उम्मीदों, विदेशी निवेश आने की और भी ज्यादा उम्मीद और विकसित देशों द्वारा भारी-भरकम प्रोत्साहन पैकजों की घोषणा से शेयर बाजार में लगातार तेजी का रुख है, जिसके बने रहने की संभावना है.
अर्थतंत्र की समझ नहीं होने से निवेशकों को अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए, अगर कोई निवेशक शेयर में निवेश करना चाहता है, तो उसे सतर्क रहने की जरूरत है. वैसे, उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. विदेशी निवेशकों द्वारा बिकवाली करने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में कमी आती है, जबकि लिवाली करने से उसमें वृद्धि होती है. भारत के आर्थिक विकास के लिए एफडीआई काफी अहम है. एफडीआई कम आने पर रोजगार सृजन में भी कमी आती है तथा आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है.
Posted By : Sameer Oraon