विश्व के महानतम भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन की आज जयंती है, तो द्वंद्वात्मक भौतिकवाद व वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स की पुण्यतिथि. आइंस्टीन 14 मार्च, 1879 को जर्मनी के वुर्टेमबर्ग स्थित उल्म में पैदा हुए थे, जबकि मार्क्स पांच मई, 1818 को जर्मनी के ही ट्रियर में. दुनिया को बनाने और बदलने के बहुविध संघर्षों के बाद मार्क्स ने 1883 में 14 मार्च को लंदन में अंतिम सांस ली थी और आइंस्टीन ने 18 अप्रैल, 1955 को अमेरिका के न्यूजर्सी स्थित प्रिंस्टन में. इन दोनों महान विभूतियों में इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ साझा है कि एक की पुण्यतिथि दूसरे की जयंती है और जर्मनी दोनों की साझा जन्मभूमि. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि साम्यवाद व समाजवाद और उनकी मंजिल व मकसद को लेकर दोनों का नजरिया लगभग एक जैसा प्रगतिशील व वैज्ञानिक है.
मार्क्स जहां कह गये हैं कि विचारकों ने दुनिया की अपने तई अलग-अलग अनेक व्याख्याएं की हैं, परंतु असल काम जो उसे बदलने का है, अभी बाकी है. वहीं आइंस्टीन का मानना है कि बिना हमारी सोच बदले दुनिया को कतई नहीं बदला जा सकता, क्योंकि वह हमारी सोच की प्रक्रिया के तहत ही अपने इस रूप में निर्मित हुई है. आज हम जानते हैं कि आइंस्टीन ने अपने सापेक्षता के सिद्धांत से ब्रह्मांड के नियमों को जिस तरह समझाया, उसने कम से कम विज्ञान की दुनिया को तो एकदम से ही बदल डाला. इतना ही नहीं, 1949 में न्यूयॉर्क से प्रकाशित ‘मंथली रिव्यू’ के प्रवेशांक में ‘व्हाई सोशलिज्म’ शीर्षक लेख लिखकर उन्होंने शोषण मुक्त दुनिया के लिए समाजवाद की अपरिहार्यता भी ‘सिद्ध’ की. दुनिया के सबसे मेधावी (तेज दिमाग) वैज्ञानिकों में शुमार किये जाने के बावजूद वे स्वयं को ‘बहुत होशियार’ नहीं मानते थे. कहते थे कि बात केवल इतनी है कि मैं लंबे समय तक समस्याओं से जूझता रहता हूं. उनका मानना था कि दुनिया में केवल दो चीजें असीम व अनंत हो सकती हैं. एक मनुष्य की मूर्खता, दूसरा ब्रह्मांड.
बहरहाल, आइंस्टीन महत्वपूर्ण द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण और प्रकाश विद्युत उत्सर्जन की खोज समेत अपनी कई वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए समादृत हैं. वर्ष 1921 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जबकि 1999 में ‘फिजिक्स वर्ल्ड’ नामक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल ने दुनियाभर में कराये गये सर्वेक्षण के बाद उनको सर्वकालिक महान भौतिक विज्ञानी घोषित किया था. भारत में उनको महात्मा गांधी के मुक्तकंठ प्रशंसक के रूप में भी याद किया जाता है. विशेषकर उनके इस कथन के लिए कि भविष्य की पीढ़ियों को विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना गांधी जैसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था.
दूसरे पहलू पर जाएं, तो आइंस्टीन व मार्क्स से बहुत पहले गौतम बुद्ध व ईसा मसीह आदि ने शोषकों के हृदय परिवर्तन के रास्ते दुनिया को बदलने व शोषण विहीन करने का सपना देखा था. तदुपरांत, मार्क्स ने अपनी बारी पर उसे सिर के बल खड़ी करने और वर्ग संघर्ष की ओर ले जाने का रास्ता सुझाया. तब दुनिया ने उन्हें उनकी बहुचर्चित कृति ‘दास कैपिटल’ और ‘कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र’ के साथ उनके पूंजीवाद विरोधी सतत संघर्षों के लिए भी जाना. वे चेतावनी दे गये हैं कि पूंजी जैसी निर्जीव वस्तु सजीवों (खासकर मनुष्यों) को संचालित करेगी तो उन्हें हृदयहीन बना देगी. यह भी चेता गये हैं कि ‘पूंजीवादी समाज में पूंजी स्वतंत्र और व्यक्तिगत होती है, जबकि जीवित व्यक्ति उस पर आश्रित होता है और उसकी कोई वैयक्तिकता नहीं होती.’
मार्क्स का यह भी मानना था कि जीवन एक लगातार चलते रहने वाला संघर्ष है और सबसे अधिक प्रसन्नता उसी को मिलती है, जो सबसे अधिक लोगों की प्रसन्नता के लिए काम करता है? उनके अनुसार, जरूरत तब तक अंधी होती है, जब तक उसे होश न आ जाए और आजादी जरूरत की चेतना होती है. वे लोगों के विचारों को उनकी भौतिक स्थिति के सबसे प्रत्यक्ष उद्भव बताते हैं, जबकि लोकतंत्र को समाजवाद तक जाने का रास्ता मानते हैं. यह भी कि किसी समाज की प्रगति महिलाओं की सामाजिक स्थिति देखकर ही मापी जा सकती है. इसके साथ ही, उनकी दो टूक मान्यता है कि गरीबों के लिए अमीर और कुछ भी कर सकते हैं, परंतु उनके ऊपर से हट नहीं सकते. इसलिए, दुनिया से गरीबों के शोषण के खात्मे के लिए जरूरी है कि सारी निजी संपत्ति को खत्म किया जाए. हर किसी से उसकी क्षमता के अनुसार काम लिया जाए और हर किसी को उसकी जरूरत के अनुसार ‘दाम’ दिया जाए.
अंत में, यहां उन स्टीफन विलियम हॉकिंग के लिए भी दो शब्द कहना जरूरी है, ब्लैकहोल और बिगबैंग थ्यौरी को समझाने में योगदान के लिए जिन्हें आइंस्टीन के बाद का सबसे बड़ा भौतिक विज्ञानी माना जाता है. उन्होंने भी 2018 में आज के ही दिन कैंब्रिज में इस संसार को अलविदा कहा था.