भारतीय जनता पार्टी के आलोचक उसे ‘काऊ बेल्ट’ की पार्टी कहकर उपहास करते रहे हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जब नरेंद्र मोदी एक लहर के साथ केंद्रीय राजनीति में आये, तो भी देश के दक्षिणी हिस्से (कर्नाटक छोड़कर) में भाजपा लगभग अनुपस्थित थी.
साल 2019 में पार्टी दुबारा सत्ता में आयी, लेकिन उसने तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की अपनी थोड़ी सी सीटें भी गंवा दी. केरल में पार्टी का खाता पहले की ही तरह नहीं खुला. इन अनुभवों से सबक लेते हुए भाजपा ने जोरदार तैयारी शुरू कर दी. अध्यक्ष पद से हटने के बाद भी गृह मंत्री अमित शाह ने, जिन्हें संगठन का गहरा अनुभव है, दक्षिण में अपने पैर मजबूत करने शुरू कर दिये.
इस दिशा में उन्होंने तमिलनाडु में पूर्व पुलिस अधिकारी कुपुसामी अन्नामलाई को राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया. हालांकि सहयोगी पार्टी अन्ना द्रमुक ने उनका विरोध किया फिर भी गृह मंत्री झुके नहीं और उसके बाद जो हुआ, उसे सबने देखा. भाजपा ने तमिलनाडु में एक तूफान ला दिया और द्रमुक को जवाब देने पर मजबूर कर दिया.
तमिलनाडु, जहां लोकसभा की 39 सीटें हैं, में इस बार पार्टी की शक्ति साफ दिखी. रणनीति बनाने में सिद्धहस्त अमित शाह ने अन्नामलाई को पूरी आजादी दी, जिसका नतीजा था कि वहां प्रधानमंत्री मोदी का चुनावी दौरा अब तक का सबसे प्रभावशाली था. पूरे राज्य में भाजपा की उपस्थिति साफ दिखने लगी और चुनाव में इसका असर पड़ा. इसके पहले राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान जिस तरह से तमिलनाडु को महत्व दिया गया, वह वहां के लोगों को खूब भाया.
आंध्र प्रदेश में भी पार्टी ने नये सिरे से पार्टी को संगठित किया और राजनीति के पुराने खिलाड़ी चंद्रबाबू नायडू को अपने साथ ले लिया. साथ ही, जनसेना पार्टी के पवन कल्याण को भी अपना सहयोगी बनाया. यह एक रणनीतिक फैसला था, जिसके दूरगामी प्रभाव होंगे. इस गठबंधन ने मुख्यमंत्री जगन रेड्डी को हिलाकर रख दिया और उन्होंने जनता के लिए सरकारी खजाना खोल दिया. अब वहां कांटे की लड़ाई है, जिसका परिणाम न केवल इस चुनाव परिणाम में दिखाई देगा, बल्कि आने वाले समय में भी दिखाई देगा.
तेलंगाना में भी पार्टी ने बहुत जोर लगाया है, जिसे देखते हुए चुनाव विश्लेषक प्रशांत किशोर ने कहा है कि अगर पार्टी तेलंगाना में पहले या दूसरे स्थान पर रहेगी, तो उन्हें कोई आश्चर्य नहीं होगा. भाजपा उम्मीदवार माधवी लता ने हैदराबाद में सनसनी फैला दी है और ओवैसी बंधुओं की नींद उड़ा दी है.
पार्टी ने दक्षिण भारत के लिए इस बार ठोस रणनीति बनायी और उसे कार्यान्वित भी किया. हर राज्य में स्थानीय नेताओं को पूरा महत्व देकर उन्हें संसाधनों के साथ आगे बढ़ाया गया, जो कारगर रहा. केरल में भी एनडीए को बढ़िया रिस्पॉन्स मिला है. इस कारण कहा जा रहा था कि इस बार न केवल हिंदू वोटर, बल्कि ईसाई भी उसे वोट देंगे. पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी के पुत्र अनिल एंटनी के भाजपा में शामिल होने से स्थिति में बदलाव हुआ है. कांग्रेस के कमजोर पड़ने का फायदा भी उसे साफ तौर पर मिलता दिख रहा है.
भाजपा के केरल इकाई के अध्यक्ष के सुरेंद्रन अमित शाह की बनायी हुई रणनीति को लागू करने में सफल रहे हैं. सभी विशेषज्ञ मान रहे हैं कि भाजपा केरल में तीसरी शक्ति बन गयी है और उसका वोट प्रतिशत दहाई अंकों में होगा. अगर यह बात सच साबित हो जाती है कि पार्टी इस राज्य में पांच सीटें तक ला सकती है, तो यह उसके हिंदी भाषी राज्यों की पार्टी होने का ठप्पा सदा के लिए मिटा देगी.
भाजपा ने बंगाल में पिछले लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीती थी, जिसकी काफी चर्चा हुई थी, लेकिन इस बार पार्टी ने जबरदस्त तैयारी की है. गृह मंत्री अमित शाह ने पिछली बार भी चुनाव की कमान संभाली थी और इस बार भी वे काफी सक्रिय रहे हैं. बंगाल के हर मुद्दे पर उन्होंने ध्यान रखा और केंद्रीय एजेंसियों की सहायता से वहां के अपराधी मिजाज के तृणमूल कांग्रेस के पदाधिकारियों को धूल चटा दी.
संदेशखाली कांड में जिस शाहजहां शेख नाम के डॉन का नाम आ रहा था, वह अब सीबीआई और ईडी की गिरफ्त में है. इस घटना पर भाजपा ने जिस तरह की सक्रियता दिखायी, उससे वहां के वोटरों को हिम्मत मिली. अब ऐसा दिखता है कि वहां पासा पलट गया है.
भ्रष्टाचार के आरोप में तृणमूल के कई नेता जेल जा चुके हैं. इससे पार्टी के प्रति जनता में पहले जैसा जुड़ाव नहीं दिख रहा है. ऐसे में प्रशांत किशोर की बात में दम लगता है कि बंगाल में भाजपा दूसरे नंबर पर तो रहेगी ही, पहले स्थान पर भी आ सकती है. कभी देश का सबसे औद्योगिक राज्य रहा बंगाल, जो व्यापार-कारोबार में अव्वल था, कम्युनिस्टों के 30 साल के शासनकाल में बर्बाद हो गया.
ममता बनर्जी के आने के बाद उम्मीद बंधी थी, पर उन्होंने अपनी हिंदू विरोधी नीतियों और बांग्लादेशियों को बढ़ावा देने के रवैये से उसे फिर बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया. इस बार अमित शाह ने पूरी तैयारी की है और पार्टी कार्यकर्ता उनके मार्गदर्शन में काम कर रहे हैं. पार्टी ने वहां सोनार बांग्ला का नारा दिया है, जिसके तहत विकास, रोजगार तथा विनिर्माण को बढ़ावा देने का वादा किया है. इसका असर मतदान के दिन दिख रहा है.
ओडिशा भगवान जगन्नाथ की धरती है और वहां बीजू जनता दल (बीजेडी) के नवीन बाबू 2000 से ही सत्ता पर काबिज हैं. उल्लेखनीय है कि इसकी शुरुआत उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर की थी, लेकिन बाद में दोनों एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हो गये. साल 2009 में नवीन बाबू की पार्टी भाजपा से दूर हो गयी और दोनों परस्पर विरोधी हो गये. ओडिशा एक ऐसा राज्य है, जहां विधानसभा और लोकसभा दोनों के चुनाव साथ-साथ होते हैं.
इस बार भाजपा की नजरें विधानसभा पर भी हैं. पार्टी के शीर्ष रणनीतिकार अमित शाह ने पूरा जोर लगाया हुआ है कि दक्षिण का द्वार समझा जाने वाला यह राज्य पार्टी के हाथ में आ जाए. इसके लिए उन्होंने पूरी रणनीति बनायी है. यह देखते हुए कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक अब 77 साल के हो गये हैं और पहले की तरह गतिशील नहीं रहे हैं, भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. इस कारण कुछ विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के परिणामों में भाजपा पहले स्थान पर रहेगी. लेकिन जब तक परिणाम न आ जाएं, हमें इंतजार करना होगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)