पश्चिम बंगाल में आगामी महीने होने वाले पंचायत और जिला परिषद के चुनावों से पहले हिंसक घटनाओं की खबरें चिंताजनक हैं. राजनीतिक रूप से सजग रहे देश के इस पूर्वी राज्य में राजनीतिक हिंसा का एक इतिहास रहा है. खास तौर पर चुनावों के दौरान ऐसी घटनाएं सुर्खियां बनती हैं. दो वर्ष पहले पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव से पहले और उसके पश्चात राजनीतिक हिंसा की खबरें राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनी थीं.
अब आठ जुलाई के चुनाव से पहले फिर हिंसा के समाचार आ रहे हैं. गत शुक्रवार को नामांकन के पहले ही दिन मुर्शिदाबाद जिले में एक कांग्रेस कार्यकर्ता की एक हमले में मौत हो गयी. इसे राजनीतिक हिंसा बता रहे उसके परिवार के लोगों ने हमले में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों का हाथ होने का आरोप लगाया है. तृणमूल ने इसका खंडन करते हुए इसे निजी रंजिश बताया है.
इस घटना के एक दिन बाद, मुर्शिदाबाद के अलावा राज्य के बीरभूम, बांकुड़ा, पूर्व और पश्चिम बर्धमान जिलों से भी नामांकन के दौरान हिंसा होने की खबरें आयीं. इन घटनाओं के बाद विपक्षी दलों ने केंद्रीय बलों की नियुक्ति की मांग के साथ राज्यपाल सीवी आनंद बोस से हस्तक्षेप की मांग की है. राज्यपाल ने प्रदेश के चुनाव आयुक्त राजीव सिन्हा के साथ एक बैठक के बाद स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराये जाने का भरोसा दिया है.
चुनाव आयोग ने 13 जून को एक सर्वदलीय बैठक बुलायी है और कहा है कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की तैनाती के विषय में राज्य सरकार के साथ परामर्श के बाद फैसला लिया जायेगा. पश्चिम बंगाल में पिछली बार 2018 में पंचायत चुनाव प्रदेश पुलिस की देख-रेख में हुआ था और तब हिंसा की घटनाएं हुई थीं. तृणमूल कांग्रेस ने उस चुनाव में 24 फीसदी सीटें निर्विरोध जीत ली थीं. तृणमूल ने इस बार पंचायत चुनाव से पहले हिंसा के आरोपों को उनकी पार्टी को बदनाम करने की विपक्ष की कोशिश बताया है.
पार्टी ने कहा है कि 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती हुई थी और तब भी तृणमूल कांग्रेस ने भारी जीत दर्ज की थी. पश्चिम बंगाल में आठ जुलाई को एक ही चरण में ग्राम पंचायत, पंचायत समितियों और जिला परिषदों के चुनाव के लिए मतदान कराये जायेंगे. इनके लिए नामांकन नौ जून को शुरू हुआ, जो 15 जून तक चलेगा. विपक्ष ने 70 हजार से ज्यादा सीटों पर नामांकन के लिए सात दिनों का समय दिये जाने को भी अपर्याप्त बताया है.
पश्चिम बंगाल के इन चुनावों को आगामी लोकसभा चुनावों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण बताया जा रहा है, लेकिन चुनावी प्रतिद्वंद्विता नीतियों के बूते मतदाताओं का भरोसा जीतने के आधार पर होनी चाहिए. उसमें हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. हिंसा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक है.