डॉ अमित सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर
राष्ट्रीय सुरक्षा विशिष्ट अध्ययन केंद्र, जेएनयू
भारत के रक्षा निर्यात में अभूतपूर्व वृद्धि बहुत उत्साहजनक है. स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार भारत का रक्षा निर्यात बीते वित्त वर्ष (2023-24) में 21,083 करोड़ का हुआ है, जिसमें सिर्फ एक ही वित्त वर्ष में 32.5 प्रतिशत का उछाल आया है. भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्वाभाविक रूप से इसे देश की एक बहुत बड़ी उपलब्धि बताया है और कहा है कि भारत ने 84 देशों, जिनमें रूस, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी-अरब, इजरायल, इटली आदि शामिल हैं, को अपने रक्षा उत्पाद बेचकर यह चमत्कारिक लक्ष्य प्राप्त किया है. भारत की रक्षा नीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के अंतर्गत बीते एक दशक में काफी बदलाव हुआ है.
भारत 2014 से पहले भी रक्षा उत्पादों का निर्यात किया करता था, लेकिन पिछले दस सालों में मोदी सरकार की कई सकारात्मक नीतियों की वजह से भारत के रक्षा उद्योग को उल्लेखनीय मजबूती मिली है एवं उसके माध्यम से भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति में भी सुधार को बड़ा आधार मिला है, भारत की आर्थिक स्थिति को भी बल मिला है तथा देश में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि हुई है. पिछली सरकारों की तुलना में मोदी सरकार ने रक्षा निर्यात बढ़ाने के लिए न सिर्फ रक्षा निर्माण क्षेत्र को प्रेरित किया है, बल्कि तकनीकी रूप से आधुनिक बनाने की सुविधाएं भी बढ़ायी गयी हैं. साथ ही साथ, सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए उत्साहजनक वातावरण बनाया गया है. इसी सकारात्मक वातावरण की वजह से इन कंपनियों ने अन्वेषण को अधिक प्रभावशाली बनाया एवं गुणवत्ता का विशेष ख्याल रखते हुए भारत के रक्षा उपकरणों को तकनीकी विश्ववसनीयता प्रदान की, जिसके माध्यम आज भारत एक सक्षम रक्षा निर्यातक देश के रूप में विश्व पटल पर स्थापित हो गया है.
कुछ साल पहले तक भारत सिर्फ हथियार खरीदता था यानी आयात पर बड़ी निर्भरता थी, लेकिन भारत अब खुद भी हथियारों का निर्माण कर रहा है और बेच भी रहा है. इस क्षमता संवर्द्धन के साथ रूस के साथ-साथ अमेरिका और अन्य बड़े देशों को भारत ने यह चुनौती प्रस्तुत की है कि अब आप रक्षा क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय बाजार में अकेले खिलाड़ी नहीं है, अब भारत भी यहां उपस्थित है, जिसके पास कई गुणवत्तापूर्ण अत्याधुनिक हथियार और संबंधित साजो-सामान हैं, जिन्हें वह विभिन्न देशों को उपलब्ध करा सकता है. भारत का रक्षा निर्यात अब धीरे-धीरे विश्व के कोने-कोने तक अपनी पहुंच बना रहा है.
निर्यात हो रहे देश में निर्मित उत्पाद इटली, मालदीव, श्रीलंका, रूस, संयुक्त अरब अमीरात, पोलैंड, फिलीपींस, सऊदी अरब, मिस्र, इजरायल, स्पेन, चिली समेत कई अन्य देशों तक पहुंच रहे हैं. भारतीय रक्षा उत्पादों की मांग वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है. यह भारतीय रक्षा उत्पादों की क्षमता एवं गुणवत्ता में बढ़ते भरोसे को इंगित करता है. उल्लेखनीय है कि जब से प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया है तथा स्वदेशी उत्पादन एवं उपभोग को बढ़ावा देने पर ध्यान दिया है, तब से निर्यात में लगीं रक्षा कंपनियों व उपक्रमों का मुनाफा लगातार बढ़ता गया है. साथ ही साथ, भारत में विकसित हथियारों की साख भी बढ़ी है.
रक्षा निर्यात में भारत अगर अब नौसेना से संबंधित साजो-सामान एवं उनके रख-रखाव, मरम्मत इत्यादि को भी शामिल करे एवं ऐसे उद्यमों को अधिक प्रोत्साहित करे, तो रक्षा निर्यात में और नये कीर्तिमान स्थापित किये जा सकते हैं. इसका प्रमुख कारण यह है कि कई देश हिंद महासागर के साथ-साथ दक्षिण एवं पूर्वी चीन सागर में चीन की आक्रामक चुनौती को देखते हुए अपनी-अपनी नौसैनिक शक्ति को बढ़ाने में जुट गये हैं. भारत भी अपनी नौसेना को शक्तिशाली बनाने का प्रयास कर रहा है. वर्तमान में भारत विभिन्न प्रकार के युद्धपोतों के अलावा दो-तीन एयरक्राफ्ट कैरियर भी बना रहा है, जो पूरी तरह से स्वदेशी हैं. यहां तक कि परमाणु ऊर्जा से लैस पनडुब्बियों का निर्माण भी हो रहा है, जिन्हें जल्द ही नौसेना के बेड़े में शामिल कर लिया जायेगा.
यह क्षमता गिने-चुने देशों के पास है, पर ऐसे उत्पादों की आवश्यकता बहुत सारे देशों को है, इसलिए भारत को अब ये साजो-सामान दूसरे देशों के लिए भी बनाने चाहिए ताकि वह चीन के विस्तारवाद पर लगाम लगाने के साथ-साथ अपना रक्षा निर्यात भी अधिक बढ़ा पाये. निर्यात के आंकड़े स्पष्ट रूप से यह इंगित कर रहे हैं कि रक्षा के क्षेत्र में अब भारत की क्षमताओं को वैश्विक स्वीकृति मिल चुकी है. जिन भारतीय रक्षा उत्पादों का अधिकाधिक निर्यात किया जा रहा है, उनमें निजी सुरक्षा उपकरण, तटीय निगरानी वाहन, एएलएच हेलीकॉप्टर, एसयू एवियॉनिक्स, तटीय निगरानी प्रणाली, लाइट इंजीनियरिंग मैकेनिकल पार्ट्स, कवच एमओडी अन्य कई रक्षा उपकरण शामिल हैं. इन अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों और तकनीकों के चलते अंतरराष्ट्रीय खरीदारों की भारतीय उत्पादों में विशेष रुचि है.
भारत ने ब्रह्मोस के साथ कई अत्याधुनिक मिसाइलें भी बनायी हैं, जिसका नौसेना वर्जन भी है और उनको तैनात भी किया जा रहा है. अब भारत द्वारा अलग-अलग प्रकार के मिसाइलों को वियतनाम, फिलीपींस एवं अन्य देशों को भी बेचा जा रहा है. इस खरीद की अहम वजह यह है कि वियतनाम, थाईलैंड, फिलीपींस जैसे दक्षिण-पूर्व एशिया के देश चीन की आक्रामकता से खतरा महसूस कर रहे हैं. हाल ही में पूरी तरह से देश में विकसित बहुआयामी हमले करने की क्षमता से लैस अग्नि-5 का भी सफल परीक्षण भारत ने किया है. यह तकनीक भी गिने-चुने देशों के पास उपलब्ध है. भारत को चाहिए कि अपने मित्र देशों के साथ भी इस तरह की तकनीकी विशेषज्ञता को साझा करे.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत के पास विशेषज्ञता है और वह इस आधार पर वैश्विक परिदृश्य में एक दीर्घ एवं विश्वसनीय भूमिका निभा सकता है. अब भारत ने रक्षा स्वावलंबन में अपने को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक बड़ी शक्ति के रूप स्थापित कर दिया है और आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत का प्रभाव भी बढ़ेगा. अगर भारत लगातार अपनी रक्षा निर्यात की नीति पर ऐसे ही तवज्जो देता रहा, तो अर्थव्यवस्था को विस्तार देने में सहायता तो मिलेगी ही, रणनीतिक स्तर पर भी इसके अनेक लाभ होंगे. रक्षा क्षेत्र में निजी भागीदारी तथा निवेश को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ सरकार की स्वदेशी वस्तुओं को खरीदने पर जोर देने की नीति से भी रक्षा उद्योग को बड़ी गति मिली है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)