भारत समेत दुनियाभर में नयी पीढ़ी को ऐसे संसाधन मिले हैं, वे पहले की पीढ़ियों को उपलब्ध नहीं थे. पर किशोरों और युवाओं को ऐसी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है, जो बिल्कुल नयी हैं. जलवायु परिवर्तन एक ऐसी ही गंभीर समस्या है. इसके अलावा शिक्षा एवं कौशल, रोजगार, यौन शोषण, स्वास्थ्य एवं मानसिक स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति से संबंधित चिंताएं भी हैं, जिनसे हर पीढ़ी को जूझना पड़ता है. संतोषजनक बात यह है कि नयी पीढ़ी समस्याओं से परिचित भी है और उनके समाधान के लिए प्रेरित भी. डेलॉयट के जेन-जी और मिलेनियल पीढ़ी के ताजा सर्वेक्षण से यही संकेत निकलते हैं. आम तौर पर 1981 और 1996 के बीच जन्मे लोगों को मिलेनियल या जेन-वाई तथा उसके बाद की पीढ़ी को जेन-जी (जेड) की संज्ञा दी जाती है. इन दो पीढ़ियों के अंतर्गत वर्तमान के सभी किशोर और युवा आ जाते हैं.
इस सर्वेक्षण में 44 देशों के लगभग 23 हजार लोगों की राय ली गयी, जिनमें से करीब आठ सौ भारतीय हैं. आबादी के अनुपात में सर्वेक्षण का यह आंकड़ा बहुत कम है, पर इससे नयी पीढ़ी के सोच का एक आकलन अवश्य मिलता है. अक्सर ऐसे सर्वेक्षण शहरी क्षेत्र के उच्च और उच्च मध्यम आय वर्ग तक सीमित रहते हैं. इस पहलू का ध्यान रखते हुए आज के सोशल मीडिया, सूचना तंत्र तथा आकांक्षाओं के व्यापक विस्तार के दौर में इस सर्वेक्षण को नयी पीढ़ी की राय का समुचित प्रतिबिंब माना जा सकता है. भारतीय जेन-जी पीढ़ी की चिंताओं के केंद्र में शिक्षा, कौशल एवं प्रशिक्षण, रोजगार, जलवायु परिवर्तन, यौन शोषण और मानसिक स्वास्थ्य जैसे विषय हैं. मिलेनियल पीढ़ी भी कमोबेश इन्हीं विषयों को महत्वपूर्ण मानती है.
एक उत्साहजनक तथ्य यह सामने आया है कि दोनों पीढ़ियों में अधिकतर लोगों को उम्मीद है कि आगामी एक वर्ष में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य बेहतर होगा. युवा पीढ़ी अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ियों की तरह रोजगार को केवल आमदनी का जरिया नहीं मानती है, बल्कि उसके लिए अपने काम से संतोष मिलना और काम का उद्देश्यपरक होना भी महत्वपूर्ण है. यह पीढ़ी यह भी चाहती है कि उसके काम से पर्यावरण पर कम-से-कम नकारात्मक असर पड़े. हालांकि वैश्विक स्तर पर इन दोनों पीढ़ियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर हिचक का भाव है, पर भारतीय युवा इस तकनीकी विशिष्टता को अपनाने के लिए उत्सुक है. हमारी सरकारों, उद्योग जगत, शिक्षण संस्थानों तथा समाज को नयी पीढ़ी द्वारा इस सर्वेक्षण में अभिव्यक्त आकांक्षाओं एवं आशंकाओं का समुचित संज्ञान लेना चाहिए.