प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब कल्याण अन्न योजना को पांच साल तक बढ़ाने की घोषणा की है. आशा है कि जल्दी ही इस योजना के विस्तार पर आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी की मुहर लग जायेगी. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की वर्तमान अवधि इस वर्ष दिसंबर तक है. इसके तहत 81.3 करोड़ लोगों को हर महीने पांच किलो राशन मुफ्त दिया जाता है. आकलन है कि इसे पांच वर्षों के लिए बढ़ाने पर सरकारी कोष से लगभग 11 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. हर साल भारतीय खाद्य निगम राज्यों के सहयोग से इस योजना में 5.5 करोड़ टन से अधिक गेहूं और चावल का वितरण करता है. मुफ्त राशन योजना को सभी 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया है.
उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी से उत्पन्न अप्रत्याशित स्थितियों में सरकार ने अप्रैल 2020 में गरीब कल्याण अन्न योजना को शुरू किया था. तब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मामूली भुगतान पर राशन पा रहे लाभार्थियों को अतिरिक्त पांच किलो अनाज और एक किलो दाल देने का कार्यक्रम प्रारंभ किया था. उस समय इस अधिनियम के अंतर्गत लाभार्थी तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल तथा दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं खरीद सकते थे. पिछले वर्ष दिसंबर में खाद्य सुरक्षा योजना और गरीब कल्याण योजना का विलय कर दिया गया. साथ ही, राशन के लिए मामूली रकम देने का नियम भी हटा दिया गया.
केंद्र सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना पर अब तक लगभग चार लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है. वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केंद्रीय बजट में मुफ्त राशन योजना के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. कोविड महामारी की वजह से जो अर्थव्यवस्था को झटका लगा था, उससे हम लगभग उबर चुके हैं और अर्थव्यवस्था पटरी पर आ चुकी है. लेकिन वर्तमान आर्थिक वृद्धि की दर नुकसान की तुरंत भरपाई और विकास की आकांक्षाओं को देखते हुए समुचित नहीं है. महामारी से सबसे अधिक नुकसान असंगठित क्षेत्र तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों को हुआ था. हालांकि सरकार ने उद्यमों को फिर से खड़ा करने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए अनेक राहत तथा योजनाओं को चलाया है तथा उनके सकारात्मक परिणाम भी आ रहे हैं, लेकिन अभी भी असंगठित क्षेत्र और छोटे उद्यमों के क्षेत्र में वह स्थिति नहीं बन सकी है, जैसी महामारी से पहले थी. यही कारण है कि बड़ी संख्या में गरीब आबादी को काम के मौके नहीं मिल पा रहे हैं. इसके अलावा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कमजोरी को पूरा ठीक नहीं किया जा सका है.
इस पृष्ठभूमि में मुफ्त राशन योजना की अवधि बढ़ाने की आवश्यकता थी और ऐसा कर प्रधानमंत्री मोदी ने सराहनीय कदम उठाया है. अवधि बढ़ाने के साथ-साथ इस योजना के लाभार्थियों की संख्या में भी बढ़ोतरी की जानी चाहिए. चाहे खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत चलने वाली राशन योजना हो या गरीब कल्याण अन्न योजना, अन्न वितरण का आधार राशन कार्ड होता है. राज्य सरकारें जनगणना के आंकड़ों के आधार पर राशन कार्ड जारी करती हैं. चूंकि 2021 में होने वाली जनगणना अभी तक नहीं हो पायी है, इसलिए 2011 के बाद बढ़ी आबादी का हमारे पास लेखा-जोखा नहीं है. इसके अलावा, यह भी जगजाहिर है कि राशन कार्ड बनाने की प्रक्रिया में अनेक खामियां हैं.
कोरोना काल में सभी जरूरतमंदों को अनाज देने की घोषणा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा हुई थीं, पर अब वह दौर बीत चुका है. आधार कार्ड से संबंधित कई शिकायतें भी हैं, जिनमें कहा गया है कि लाभार्थी की ठीक से पहचान नहीं हो रही है या खोया हुआ आधार कार्ड दुबारा बनाना मुश्किल हो रहा है. इस तरह की शिकायतें ग्रामीण रोजगार योजना में भी आयी हैं. मुफ्त राशन योजना में कहा गया है कि इसके तहत 75 फीसदी ग्रामीण तथा 50 फीसदी शहरी आबादी को लाभ पहुंचाना है. इस आधार पर जो अभी 81 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है, उस गिनती का आधार 2011 की जनगणना है. अगर वर्तमान के 140 करोड़ से अधिक आबादी के आकलन को माना जाए, तो लाभार्थियों की संख्या लगभग 95 करोड़ होनी चाहिए. जुलाई 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से कहा था कि जनगणना के अभाव में उसे आकलनों के आधार पर कार्यक्रम बनाने चाहिए. तो, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी गरीबों की पहचान ठीक से हो और उन्हें योजना का लाभ मिले.
जैसा कि पहले उल्लिखित किया गया है, मुफ्त राशन योजना को पांच साल के लिए बढ़ाने से सरकार के कोष से 11 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे. निश्चित रूप से इसका असर वित्तीय घाटा पर होगा. उसे किस तरह कम किया जा सकता है, इस पर विचार किया जाना चाहिए ताकि विकास परियोजनाओं और अन्य कल्याण कार्यक्रमों को भी सुचारु रूप से चलाया जा सके. हालांकि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के संग्रहण में लगातार वृद्धि हो रही है, पर दूसरी ओर सरकारी कर्ज भी बढ़ रहा है. इस चर्चा में यह भी जोड़ा जाना चाहिए कि अनेक सरकारों ने अपने स्तर पर अन्न योजना के तहत दिये जा रहे अनाज की मात्रा में वृद्धि की है. स्वाभाविक है कि उसका खर्च राज्यों को देना होता है. कई राज्य ऐसे हैं, जिनके वित्तीय स्वास्थ्य के बारे में सवाल उठे हैं.
आबादी के एक बड़े हिस्से की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए तथा मुफ्त राशन योजना जैसे कार्यक्रमों की जरूरत है, लेकिन हमें इसके वित्तीय प्रभाव को अनदेखा नहीं करना चाहिए. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को देखते हुए सरकार ने गेहूं और चावल के निर्यात पर रोक लगायी है. जलवायु परिवर्तन का असर खेती पर पड़ रहा है. कुछ आंतरिक कारणों और कुछ पदार्थों के महंगे आयात के कारण खाद्य मुद्रास्फीति भी एक चिंताजनक मसला है. संतोषजनक है कि देश में अनाज उत्पादन समुचित है तथा उसे बढ़ाने और मोटे अनाजों को प्रोत्साहित करने के प्रयास हो रहे हैं.
मुफ्त राशन योजना से बड़ी आबादी को पोषण भी मिल रहा है. इन सब पहलुओं को देखते हुए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को पांच साल के लिए बढ़ाया जाना स्वागतयोग्य है. योजना के लिए अनाज की उपलब्धता पर्याप्त है. सरकार किसानों से समर्थन मूल्य पर इस अनाज की खरीद करती है, जिससे किसान भी लाभान्वित होते हैं. ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में भी आवंटन बढ़ाने की चर्चा है. विभिन्न योजनाओं से हासिल नतीजों तथा अर्थव्यवस्था में बेहतरी से गरीब आबादी के लिए अवसर पैदा होने की उम्मीद की जानी चाहिए. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)