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बेतहाशा महंगी होतीं उड़ान सेवाएं

भारतीय यात्रियों पर दोहरी मार पड़ी है: बढ़ता किराया और गिरती गुणवत्ता. भारतीय आसमान एयरलाइनों की मुनाफाखोरी का अड्डा बन गया है, जिस पर सरकार और उसकी नियामक एजेंसियों का कोई नियंत्रण नहीं है.

घरेलू एयरलाइनों मनमानी हवाई जहाज के यात्रियों को रुलाने का कारण बन रही है. भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता विमानन बाजार है. इसकी आधा दर्जन एयरलाइंस लगभग 700 विमान संचालित करती हैं, जो प्रतिदिन तीन हजार उड़ानों में लगभग पांच लाख यात्रियों को ढोती हैं. लेकिन वे वस्तुतः मवेशी श्रेणी में उड़ते हैं. उन्हें टिकट से लेकर हर चीज के लिए अधिक भुगतान के लिए मजबूर किया जाता है. कथित बजट एयरलाइंस इतनी संवेदनहीन हो गयी हैं कि हैंड बैग का भार सीमा से मामूली अधिक होने पर भी यात्री को उतार देती हैं. हालांकि यात्राओं की गति बढ़ गयी है, पर यात्रियों को घटिया सेवा मिल रही है और शिकायत करने पर जहाज से उतारने की धमकी दी जाती है.

हाल ही में, भारत के सबसे सफल हास्य कलाकार कपिल शर्मा जैसे सेलिब्रिटी को भी हवाई अड्डे की बस में इंतजार करना पड़ा. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, ‘पहले आपने हमें 50 मिनट बस में इंतजार कराया, और अब आपकी टीम कह रही है कि पायलट ट्रैफिक में फंस गया है. क्या आपको लगता है कि ये 180 यात्री फिर से इंडिगो में उड़ान भरेंगे? कभी नहीं.’ अगले दिन, स्पाइसजेट से दिल्ली से पटना जाने वाले यात्रियों को सात घंटे तक दिल्ली हवाई अड्डे पर इंतजार करना पड़ा क्योंकि उनका विमान नहीं आया था. जब से टाटा ने एयर इंडिया का अधिग्रहण किया है, उसकी अन्य कंपनियों- विस्तारा और एयर एशिया ने मार्गों को निर्धारण ऐसे किया है कि यात्रियों के लिए विकल्प कम हो गये हैं. उदाहरण के लिए, एयर इंडिया ने कुछ आकर्षक गंतव्यों के लिए अपनी उड़ानों की संख्या कम कर दी है ताकि विस्तारा अधिक किराया ले सके.

भारतीय यात्रियों पर दोहरी मार पड़ी है: बढ़ता किराया और गिरती गुणवत्ता. भारतीय आसमान एयरलाइनों की मुनाफाखोरी का अड्डा बन गया है, जिस पर सरकार और उसकी नियामक एजेंसियों का कोई नियंत्रण नहीं है. हवाई सफलता को उभरते हुए नये भारत का संकेत माना जा रहा है, लेकिन गुणवत्ता और विश्वसनीयता गिरने से इंजन में दिक्कत आ गयी है. जेट और गो फर्स्ट जैसी कई एयरलाइनें नियामक विफलता और वित्तीय धोखाधड़ी के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो चुकी हैं. ऐसे में सीट की कमी से हो रहे यात्रियों के दर्द से एयरलाइनों को फायदा हो रहा है. तकनीकी कारणों से 100 से अधिक विमान खड़े हैं. फिर भी प्रति विमान यात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है.

भारत में घरेलू हवाई किराये में दुनिया में सबसे ज्यादा उछाल देखा गया है. एयरपोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल एशिया-पैसिफिक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत में हवाई किराये में 41 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात (34 प्रतिशत), सिंगापुर (30 प्रतिशत) और ऑस्ट्रेलिया (23 प्रतिशत) का स्थान है. वर्ष 1994 में एयर कॉर्पोरेशन अधिनियम के निरस्त होने के बाद सरकार ने हवाई किरायों का नियमन बंद कर दिया. तब से, उद्योग में संकट के दौरान भी, शोषणकारी मूल्य निर्धारण से एयरलाइनें फली-फूली हैं. कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इंटरग्लोब एविएशन (इंडिगो) ने 2023-24 की पहली तिमाही के लिए 3,090 करोड़ रुपये का अब तक का अपना सबसे अधिक मुनाफा घोषित किया, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 1,064 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था.

अप्रैल और जून के बीच मुनाफा 236 प्रतिशत तक बढ़ गया. इंडिगो का 320 विमानों का बेड़ा 110 से अधिक गंतव्यों को जोड़ने वाली 1,900 उड़ानों में प्रतिदिन हर दस यात्रियों में से छह को ढोता है. पिछले एक दशक में इसने 60 प्रतिशत की बाजार हिस्सेदारी हासिल कर ली है. साल 2021-22 में इससे 4.67 करोड़ यात्री उड़े. यह संख्या 2022-23 में बढ़कर 8.52 करोड़ हो गयी. जाहिर तौर पर, लगभग 50 जहाज खड़े होने के बाद भी इसने अपने सिकुड़ते बेड़े का दोहन किया है तथा यात्रियों से अतिरिक्त शुल्क वसूला है. अंतिम क्षण में समय बदलने, बुक किये गये भोजन से इनकार करने और यात्रियों को लंबे समय तक इंतजार कराने के लिए इंडिगो के विरुद्ध कई शिकायतें दर्ज की गयी हैं. इसने असहाय यात्रियों को घटिया सैंडविच बेचकर लगभग 500 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है. फिर भी सबसे बड़े विमान का ऑर्डर देने के बाद इसकी विश्वसनीयता सातवें आसमान पर है.

यदि इंडिगो शर्तें तय करती है, तो टाटा के स्वामित्व वाली विस्तारा छवि से ध्यान भटकाती है. अपने 63 विमानों (चार उड़ान के लायक नहीं हैं) के साथ यह खुद को एक लक्जरी एयरलाइन के रूप में पेश करती है. जेट एयरवेज के बंद होने के बाद यह अमीर और प्रसिद्ध लोगों का पसंदीदा विकल्प है. हालांकि इसकी सेवाएं उच्च स्तर की हैं, लेकिन इसका ट्रैक रिकॉर्ड दागदार है. यह अपने विशिष्ट एकाधिकार का फायदा उठा रहा है, जिसके कारण कम लाभदायक मार्गों पर सीटों की कमी हो गयी है. यह एक तरफ की 100 मिनट की उड़ान के लिए 45,000 रुपये तक का शुल्क लेता है. इसके आकर्षक ऑफर दिखावा हैं, क्योंकि जब भी यात्री अपने उड़ान प्वाइंट को भुनाने की कोशिश करते हैं, तो एयरलाइन उन्हें लंबा इंतजार कराती है. फिर भी हर दस में से एक यात्री इसमें उड़ता है. स्पाइस जेट 63 विमानों (वर्तमान में 32 निष्क्रिय) और नौ प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी के साथ शायद पतन के कगार पर है. फिर भी इसने 2023 की पहली तिमाही में 204.56 करोड़ रुपये का बड़ा मुनाफा कमाया, जबकि एक साल पहले इसे 788.83 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था.

एयर इंडिया की सरकारी विरासत वर्तमान विमानन दुःस्वप्न के लिए जिम्मेदार है. कभी क्लास और विलासिता का प्रतीक रहा यह एयरलाइन अपने यात्रियों के साथ शाही व्यवहार करता था. सरकारी कंपनी बनने से इसका आकर्षण खत्म हो गया. जब यह भ्रष्टाचार और अक्षमता के कारण लड़खड़ा गया, तो निजी एयरलाइनों ने इसका स्थान छीन लिया. अब 18 साल पुरानी इंडिगो के पास एयर इंडिया के 128 विमानों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक विमान हैं. टाटा के अधिग्रहण के बाद से इसमें सुधार हुआ है और इसका राजस्व बढ़ा है. इसने 500 से अधिक नये विमानों का ऑर्डर दिया है. लेकिन निकट भविष्य में भारतीय यात्रियों की सहूलियत बढ़ने की संभावना नहीं है क्योंकि आपूर्ति की तुलना में मांग तेजी से बढ़ेगी. कॉर्पोरेट लालच के रनवे पर फंसे यात्रियों को एहसास होना चाहिए कि उन्होंने नर्क का एकतरफा टिकट खरीदा है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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