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बैंकों से धोखाधड़ी

फर्जीवाड़े की पहचान करने में 2019-20 में औसतन दो साल लगा है, लेकिन सौ करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी पकड़ने में पांच साल से भी ज्यादा वक्त लग रहा है.

कोरोना महामारी से पैदा हुईं आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों तथा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) यानी फंसे कर्जों के बोझ से दबे बैंकों को बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का भी सामना करना पड़ रहा है. रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020 में बैंकों के साथ 1.85 ट्रिलियन रुपये की धोखाधड़ी हुई है, जो पिछले साल की तुलना में दुगुने से भी अधिक है. उल्लेखनीय है कि इस हिसाब में एक लाख रुपये से ज्यादा के फर्जीवाड़े को ही गिना गया है. यदि सभी गड़बड़ियों को जोड़ लें, तो यह रकम अधिक हो जायेगी. यदि मामलों की संख्या को देखें, तो इसमें 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

धोखाधड़ी के ज्यादातर मामले कर्जों से जुड़े हुए हैं. सबसे बड़े 50 फीसदी मामले 76 फीसदी रकम से जुड़े हैं. इससे साफ जाहिर है कि तमाम नियमन और निगरानी के बावजूद बैंकों की प्रबंधन व्यवस्था इस समस्या से निकलने में नाकामयाब रही है. यह बात इससे भी पुष्ट होती है कि इस साल सामने आये बहुत से मामले बीते कुछ सालों से चल रहे थे, लेकिन उनका संज्ञान 2020 के रिपोर्ट में लिया गया है. यह जगजाहिर सच है कि बैंकों से मामूली रकम कर्ज लेने के लिए आम नागरिक को कितनी परेशानी उठानी पड़ती है तथा तमाम दस्तावेजों की पड़ताल के बाद ही कर्ज मिल पाता है. चुकौती की किस्तों को वक्त पर जमा करने का दबाव भी बैंक की तरफ से होता है.

बड़ी रकम के कर्ज की मंजूरी में तो बैंकों के शीर्ष अधिकारी भी शामिल होते हैं. ऐसे में भारी-भरकम रकम को बांटने और वसूली में नाकाम रहने का जिम्मा बैंकों के प्रबंधन का है. एक सवाल ऐसे मामलों के बारे में देर से जानकारी देने का भी है. फर्जीवाड़े में कारोबारियों के लेन-देन के हिसाब और विदेशी मुद्रा भुगतान के मामले भी हैं. इनमें भी ठोस कायदे बने हुए हैं तथा निगरानी के उपाय भी मौजूद हैं. इसके बावजूद बैंकों के पैसे लेकर हजम कर जाना अगर इस कदर आसान है, तो फिर हमारी बैंकिंग व्यवस्था को गहरे आत्ममंथन की जरूरत है. जिस प्रकार से फंसे हुए कर्ज की समस्या मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ है, उसी तरह से फर्जीवाड़े के सबसे ज्यादा शिकार भी यही बैंक हुए हैं.

धोखाधड़ी के 80 फीसदी मामले इन्हीं बैंकों के साथ हुए हैं. रिजर्व बैंक की इस रिपोर्ट में भी माना गया है कि फर्जीवाड़े की पहचान करने में बहुत देर हो रही है. साल 2019-20 में इसका औसत दो साल का है, लेकिन सौ करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी पकड़ने में बैंकों को पांच साल से भी ज्यादा वक्त लग रहा है. इस आंकड़े को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि बैंकिंग तंत्र में बड़े पैमाने पर लापरवाही बरती जा रही है, जिसे रिजर्व बैंक की रिपोर्ट ने भी रेखांकित किया है. इस संबंध में तुरंत सुधार करना जरूरी है.

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