प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों गोवा में जी-20 देशों के ऊर्जा मंत्रियों की बैठक में कहा कि भारत में गैर-जीवाश्म स्रोतों वाले ऊर्जा की स्थापित क्षमता निर्धारित लक्ष्य से नौ वर्ष पूर्व ही हासिल कर ली गयी है, तथा वर्ष 2030 तक इन स्रोतों से बिजली की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत तक करने की योजना है. दरअसल, इसकी जरूरत इसलिए है क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का अधिकांश हिस्सा आयात से पूरी करता है.
हम 88 फीसदी तेल, 56 फीसदी प्राकृतिक गैस और थोड़ा-बहुत कोयला आयात करते हैं. साथ ही, सौर ऊर्जा के लगभग 85 फीसदी उपकरण तथा आण्विक ऊर्जा के लिए अच्छी-खासी मात्रा में यूरेनियम का भी हम आयात करते हैं. तेल-गैस-कोयला जैसे ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत हों, या सौर ऊर्जा जैसे नये स्रोत, भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता बहुत ज्यादा है. भारत सरकार इस निर्भरता को कम करना चाहती है. पहले यह काम उतना आसान नहीं था क्योंकि तब रिन्यूएबल यानी नवीकरणीय ऊर्जा का इतना विकास नहीं हुआ था. लेकिन आज पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन के संकट के कारण ऊर्जा के अन्य स्रोतों पर काफी जोर है.
यह भारत के लिए बहुत अनुकूल परिस्थिति है, क्योंकि भारत भी यही चाहता है. इससे एक ओर प्रदूषण घटेगा और दूसरी ओर आयात पर निर्भरता कम हो सकेगी. यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी देश को यदि बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है, तो उसे पहले विदेशों पर अपनी निर्भरता कम करनी पड़ती है, खास तौर पर ऊर्जा के क्षेत्र में. यदि सौर ऊर्जा क्षेत्र की बात की जाए, तो भारत ने वर्ष 2030 तक इसके विस्तार का एक लक्ष्य रखा था.
मगर भारत ने समय से पहले ही इस दिशा में काफी प्रगति कर ली है. भारत ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा था और उम्मीद है कि इसे पहले ही हासिल कर लिया जायेगा. भारत में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक तरह की क्रांति हो रही है. शहरों से लेकर गांवों-कस्बों में जगह-जगह सोलर पैनल दिखाई दे रहे हैं. सरकार के प्रयासों में अब आम लोगों की भागीदारी बढ़ रही है.
हालांकि, सोलर पैनल और सोलर सेल्स के लिए अभी भी भारत की विदेशों पर निर्भरता बहुत अधिक है. इसलिए सरकार ने अब निजी उद्यमों से विशाल गीगा फैक्टरियां लगाने का आह्वान किया है. इसके बाद अडानी, रिलायंस और जिंदल समूह तीन बड़े प्लांट बना रहे हैं. इससे न केवल हमारी आयात पर निर्भरता दूर होगी, बल्कि भारत इनका एक निर्यातक भी बन सकेगा.
ऐसे ही पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत में काफी काम हो रहा है और इसमें काफी संभावनाएं भी हैं. सरकार ने इस क्षेत्र को भी प्रोत्साहन दिया है, जिससे भारत के पश्चिमी और पूर्वी तटीय इलाकों में समुद्रे के भीतर ऑफशोर विंड फार्म्स लगायी जायेंगी जहां तेज समुद्री हवाएं आती हैं. इसके बाद विदेशों की तमाम कंपनियां भारत आने की तैयारी कर रही हैं, जो पूंजी और तकनीक लेकर आयेंगी. हालांकि भारत पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काफी हद तक आत्मनिर्भर है, क्योंकि यहां टर्बाइन बनते भी हैं और उनका निर्यात भी होता है.
इसी तरह से इथेनॉल ब्लेंडिंग जैसे जैविक ईंधन को लेकर भी काफी काम हो रहा है. अभी तक पेट्रोल में 10 फीसदी इथेनॉल का मिश्रण किया जा रहा था, जिसे अब बढ़ाकर 20 फीसदी करने का लक्ष्य है. इसे बढ़ावा देने से प्रदूषण भी कम होगा और आयात पर निर्भरता भी कम होगी. साथ ही, किसानों की भी कमाई बढ़ सकती है. परंतु इसमें खाद्य सुरक्षा का ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी है ताकि किसान दूसरी फसलों को छोड़ केवल गन्ने पर ही ध्यान न देने लगें.
इनके अलावा, हाइड्रोजन से ऊर्जा उत्पादन की भी कोशिश हो रही है. इसे भविष्य की ऊर्जा कहा जाता है. सरकार ने इसे लेकर नीति और प्रोत्साहन की घोषणा कर दी है. अब इस दिशा में तकनीक और सहयोग को लेकर काम चल रहा है. हाइड्रोजन ऊर्जा के उपकरणों के निर्माण के लिए भी गीगा फैक्ट्रियां लग रही हैं. इनमें सबसे अहम उपकरण इलेक्ट्रोलाइजर्स हैं, जिनका अभी आयात करना पड़ता है. साथ ही, भारत ग्रीन हाइड्रोजन से ऊर्जा बनाना चाह रहा है.
यानी, इसमें हाइड्रोजन का निर्माण इस तरह से किया जायेगा कि उसके लिए जिस ऊर्जा की जरूरत होती है, वह भी सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों से पैदा की जाए. इसके विकास में समय लगेगा, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण ऊर्जा है. आने वाले समय में हाइड्रोजन से ट्रक, बस, कार, बाइक चल सकेंगे. इनके अतिरिक्त, आण्विक ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत काफी समय से काम कर रहा है. हालांकि, देश के कुल ऊर्जा उत्पादन में इसका योगदान मात्र तीन प्रतिशत है. इस क्षेत्र में काफी पूंजी लगती है. इसलिए इसके विकास में अमेरिका, फ्रांस, रूस के साथ साझा परियोजनाएं चल रही हैं. भारत का प्रयास है कि आने वाले समय में आण्विक हिस्सेदारी को बढ़ा कर 10 प्रतिशत किया जाए.
अंत में, ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों में जिस ऊर्जा की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वह है इलेक्ट्रिक वाहन. भारत अब बिजली के युग में प्रवेश कर रहा है. गैस, पेट्रोल, कोयले की जगह अब पूरी कोशिश है कि देश में बाइक, कार, बस, ट्रक जैसे वाहन और ट्रेन बिजली से ही चलें, ऐसे ही घर में खाना बनाने से लेकर कल-कारखाने तक के काम बिजली से हों, ताकि उनसे धुआं निकलना बंद हो जाए. भारत का प्रयास है कि वर्ष 2070 तक जीरो एमिशन, यानी कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाए.
हालांकि, यह इतना आसान नहीं है. अभी देश में 65 फीसदी से ज्यादा बिजली का निर्माण कोयले से होता है. वहीं अपार्टमेंट, मॉल, सिनेमा हॉल आदि में इस्तेमाल होने वाली बिजली डीजल से चलने वाले जेनरेटरों से पैदा होती है. आगे चलकर ऊर्जा के दूसरे स्रोतों के विकास के साथ इनका उपयोग कम होता जायेगा. भारत अभी सोच के स्तर पर, नीति के स्तर पर और क्रियान्वयन के स्तर पर बिजली युग और नवीकरणीय ऊर्जा के युग में प्रवेश कर चुका है. पुरानी ऊर्जा से नयी ऊर्जा के इस्तेमाल की यह यात्रा थोड़ी लंबी होगी.
कुछ विकसित देशों की यह यात्रा शायद पांच-सात साल में तय हो जायेगी. लेकिन, भारत को आर्थिक विकास से समझौता किये बिना बदलाव की यह यात्रा पूरी करनी है. भारत ने इस दिशा में उठाये गये कदमों से साबित कर दिया है कि वह इस यात्रा को न केवल पूरी कर सकता है, बल्कि इसमें महारत भी हासिल कर सकता है. (बातचीत पर आधारित)