Gandhi trinity vs solo Modi : अब अगर प्रियंका गांधी दक्षिण भारत से लोकसभा में चुन कर आती हैं, तो कांग्रेस के पास तिहरी शक्ति होगी. संसदीय इतिहास में पहली बार कांग्रेस की त्रिमूर्ति यानी मातृसत्तात्मक प्रमुख सोनिया गांधी और उनकी संतानें राहुल और प्रियंका गांधी, अपने विश्वस्तों पर राज करेगी. पूरे परिवार का बीच-बीच में सत्ता में अपनी भूमिकाएं निभाना या तो राजतंत्र में संभव है या फिर तानाशाही में. इस बार इस अनोखी त्रिमूर्ति का एक ही काम होगा- संसद में नरेंद्र मोदी की भाजपा से टकराना. अपनी पार्टी के राजनीतिक चेहरे और वैचारिक आत्मा के तौर पर गांधी परिवार वस्तुत: विरासती संस्था है. कांग्रेस का सांगठनिक पदानुक्रम सांकेतिक है, असल में तीनों गांधियों का कहा हुआ ही अलिखित कानून है.
शांत स्वभाव सोनिया : व्यक्तिगत त्रासदी के अलावा लंबे समय तक पार्टी में पेशेवर दायित्व निभाने के कारण मौन उनका सबसे प्रभावी हथियार है. वह संसद में रोज के काम से मुक्त रहेंगी. यह 77 वर्षीया नेतृत्वकारी महिला पिछले 26 साल से राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं और खुद को भाजपा तथा मोदी के विरुद्ध ‘जॉन ऑफ आर्क’ के रूप में पेश करती हैं. गैर-भाजपाई दलों के नेताओं पर व्यक्तिगत आक्रमण किये बगैर वह उन्हें एकजुट रखती हैं, जबकि पश्चिम बंगाल, दिल्ली और केरल में उनकी पार्टी के कुछ नेता ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और पिनरायी विजन पर जब-तब हमला बोलते हैं. व्यक्तिगत रूप से कीचड़ उछालना सोनिया गांधी के स्वभाव में नहीं है.
सोनिया ने विपक्ष को एकजुट बनाए रखा
अपनी निष्पक्षता और शालीनता के कारण यूपीए और कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख के रूप में सोनिया गांधी की स्वीकार्यता सर्वाधिक है. अपनी संत जैसी छवि के जरिये, जो दरअसल 2004 में प्रधानमंत्री बनने से इनकार करने के कारण बनी, उन्होंने न सिर्फ विपक्ष को एकजुट बनाये रखा है, बल्कि 16 पार्टियों के यूपीए गठबंधन के सहारे एक दशक तक केंद्र की सरकार भी चलाई है. नरेंद्र मोदी को बहुमत मिलने के बाद सोनिया गांधी ने खुद को सुविधा प्रदान करने वाली और समस्याओं का समाधान करने वाली राजनेता के रूप में सीमित कर लिया है.
लोकसभा के एक सत्र में उनका मानवीय पक्ष तब दिखाई पड़ा, जब उनके गुस्सैल सहयोगी दल अध्यक्ष की आसंदी की तरफ दौड़ पड़े थे, लेकिन कांग्रेस सांसद शशि थरूर और कार्ति चिदंबरम अपनी जगह पर बैठे हुए थे. उनसे नाराज द्रमुक नेता ने इस बारे में जब सोनिया गांधी से शिकायत की, तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, ‘मैं अध्यक्ष की आसंदी तक जाऊंगी’. वह पहली बार ऐसा कर रही थीं और थरूर व चिदंबरम उनके पीछे-पीछे चल रहे थे.
शांतिरक्षक होने के साथ संत योद्धा भी होते हैं. संसद के पिछले सत्र में पार्टी की एक बैठक में उन्होंने कहा, ‘संसद को अब उस तुच्छ भाव से नहीं चलाया जा सकेगा, जैसा कि पिछले एक दशक से चलाया जा रहा था. न ही सत्ता पक्ष के सांसदों को संसद को बाधित करने दिया जायेगा, न विपक्षी सांसदों से बदसलूकी करने दिया जायेगा और न ही बहस के बिना विधेयक पारित करने दिया जायेगा.’ वर्ष 1998 में सक्रिय राजनीति से जुड़ने की शुरुआत उन्होंने धमाकेदार तरीके से की थी- तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को पद से हटा कर अध्यक्ष पद पर वह काबिज हो गयी थीं. संसद में उनकी सक्रियता नहीं दिखेगी, पर पार्टी के मेंटोर और अपनी संतानों की मां के रूप में उनकी मौजूदगी सुस्पष्ट रहेगी.
राहुल का विश्वास-सरकारों को जनता को प्रति जवाबदेह होना चाहिए
मौलिक राहुल : पांच बार से सांसद और अब लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की छवि भीड़ को आलोड़ित करने वाले की है, जो देश के लिए मौलिक आर्थिक व सामाजिक मॉडल की बात कर रहे हैं. वह जाति आधारित नीति निर्माण पर टिके हैं और व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने के विरुद्ध हैं. दो मैराथन पदयात्राएं करने वाले वह इकलौते कांग्रेस नेता हैं. नेहरू और इंदिरा गांधी पर टाटा-बिड़ला राज को मजबूत करने का आरोप था, लेकिन मोदी सरकार पर अंबानी-अडानी को संरक्षण देने का आरोप लगाकर राहुल गांधी ने इतिहास के उस आरोप को विपरीत दिशा में मोड़ दिया है. हाल ही में अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में उन्होंने कहा, ‘भारत में जो शीर्ष 200 व्यापारिक घराने हैं, उनमें 90 प्रतिशत देशवासियों का स्वामित्व नहीं है. देश की शीर्ष अदालतों में 90 फीसदी भारतीयों की हिस्सेदारी नहीं है. मीडिया में निचली जातियों, ओबीसी और दलितों की शून्य भागीदारी है.’
कांग्रेस की वेबसाइट राहुल के नजरिये को विज्ञापित करते हुए कहती है – ‘राहुल गांधी दृढ़ता से विश्वास करते हैं कि सरकारों को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए. वह मानते हैं कि नीति निर्माण में संसाधनों के समान वितरण पर जोर देना चाहिए, इसे आर्थिक खाई को पाटने का काम करना चाहिए, इसे देश के किसानों, युवाओं, कामगारों, महिलाओं और हाशिये के समुदायों का संरक्षण करना चाहिए.’ जब तक राहुल गांधी की मां यूपीए की प्रमुख हैं, तब तक वह गठबंधन बनाने की जिम्मेदारी से दूर रहेंगे. अलबत्ता उनके विचार और दर्शन के अनुयायी बढ़ रहे हैं. विपक्ष के नेता के तौर पर प्रधानमंत्री के विरुद्ध अपने राजनीतिक भाषणों से वह ज्यादा प्रभावी साबित होने वाले हैं. राहुल के सलाहकारों ने नेता विपक्ष के रूप में उनके चार साल का रोडमैप पहले ही तैयार कर दिया है.
पार्टी का नर्म चेहरा बनेंगी प्रियंका
आक्रामक प्रियंका : केरल के वायनाड से चुने जाने के बाद 52 साल की यह मां और विपश्यना करने वाली लोकसभा में पहली बार प्रवेश करेंगी. राजनीतिक रूप से अपनी मां की ‘अंतरात्मा की रक्षक’ के रूप में पहचानी जाने वाली प्रियंका पार्टी का नर्म चेहरा होंगी. सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस इन्हें अपने महिला चेहरे के रूप में पेश करेगी. अभी तक प्रियंका ने खुद की निरपेक्ष छवि बनाये रखी है. अब तक उनका प्रमुख काम मोदी पर राहुल के हमले को ज्यादा धारदार बनाना था, क्योंकि उनका आक्रमक स्वभाव अपने भाई को बचाने और मोदी को निशाना बनाने के अनकूल है. गुजरात की एक चुनावी रैली में उन्होंने मोदी पर हमला बोलते हुए कहा था, ‘वे मेरे भाई को शहजादा बोलते हैं. मैं उन्हें कहना चाहती हूं कि किस तरह इस शहजादे ने आपकी समस्याएं सुनने के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक 4,000 किलोमीटर की पदयात्रा की. दूसरी तरफ आपके शहंशाह नरेंद्र मोदी महल में रहते हैं….आपकी समस्या वह भला कैसे समझ सकते हैं?’
मोदी इन तीनों पर हमले बोलते रहते हैं. अब ये तीनों संसद में सिर्फ और सिर्फ मोदी पर हमलावर होंगे. विचारधारा और वैकल्पिक विचारधारा की लड़ाई चलन से बाहर हो चुकी है. अब तीन बनाम एक की बारी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं. )