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बढ़ते भारत-मिस्र द्विपक्षीय संबंध

अफ्रीका और अरब क्षेत्र में इस्राइल ऐतिहासिक रूप से नेतृत्व की भूमिका में रहा है. इस स्थिति में भारत और मिस्र का निकट आना, दोनों देशों के इस्राइल और खाड़ी देशों से अच्छे संबंध होना नये सहयोगों के लिए व्यापक आधार मुहैया करा सकता है.

दुनिया के अनेक देशों की तरह भारत और मिस्र के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. आधुनिक समय में गुट-निरपेक्ष आंदोलन में दोनों देशों ने स्थापना के समय से ही शीर्षस्थ भूमिका निभायी थी. मिस्र को अफ्रीका का द्वार माना जाता है और अफ्रीकी देशों से भी हमारे अच्छे रिश्ते रहे हैं. स्वेज नहर वैश्विक सामुद्रिक व्यापार के सबसे अहम रास्तों में से एक है तथा उससे होने वाला यातायात एवं वाणिज्य में भारत की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है.

चूंकि भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अपनी भागीदारी को विस्तार देने के महत्वाकांक्षी अभियान में जुटा है, तो इस लिहाज से भी दोनों देशों के संबंधों का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है. उल्लेखनीय है कि मिस्र अरब जगत में सबसे बड़ा देश है. हाल के आंकड़ों को देखें, तो 2018-19 और 2020-21 के बीच भारत और मिस्र के द्विपक्षीय व्यापार में 65 प्रतिशत से अधिक की बड़ी वृद्धि हुई है.

गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय अतिथि के रूप में भारत आने से पूर्व मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी की मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन के दौरान हुई थी. इन शीर्ष नेताओं के अलावा दोनों देशों के विभिन्न मंत्रियों एवं उच्च अधिकारियों के बीच राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर निरंतर चर्चा होती रही है.

उल्लेखनीय है कि भारत मिस्र का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और कई क्षेत्रों में वाणिज्य-व्यापार के विस्तार की संभावनाएं हैं. अनेक भारतीय कंपनियां मिस्र में निवेश के लिए इच्छुक हैं, विशेष रूप से रसायन, प्लास्टिक, मैनुफैक्चरिंग, दवा एवं मेडिकल साजो-सामान आदि के क्षेत्र में. व्यापार के अलावा यह भी आयाम अहम है कि हमारे लिए मिस्र का सामरिक एवं कूटनीतिक महत्व भी बहुत अधिक है. पश्चिम एशिया की राजनीति में मिस्र का महत्वपूर्ण स्थान है.

हालांकि पिछले कुछ वर्षों में इसमें कुछ कमी आयी थी, क्योंकि वहां एक दशक से कुछ पहले जन क्रांति हुई और सत्ता में परिवर्तन हुआ, उसके बाद कुछ समय तक राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति भी रही थी, पर स्थिति में अब सुधार होने लगा है. अगर भारत की दृष्टि से देखें, तो पिछले कुछ समय से पश्चिम एशिया के सभी देशों से हमारे संबंध प्रगाढ़ हुए हैं, विशेषकर सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात के साथ.

उस प्रक्रिया के विस्तार के रूप में भारत और मिस्र के संबंधों में आ रही गति को देखा जा सकता है. भारत की ओर से इस मामले में सक्रियता के साथ प्रयास किया जा रहा है कि पुराने दौर की तरह फिर से दोनों देशों के संबंधों में घनिष्ठता लायी जाए. भारत ने जी-20 समूह की अध्यक्षता के अपने कार्यकाल में समूचे विश्व में आपसी सहकार बढ़ाने को अपना आदर्श बनाया है. इसमें वह ग्लोबल साउथ यानी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका देखता है.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भी है कि वैश्विक मंच पर भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बन रहा है. संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और जलवायु सम्मेलनों में भारत ने विकासशील देशों को प्रभावी नेतृत्व दिया भी है. आज भारत की राय को अंतरराष्ट्रीय पटल पर बहुत गंभीरता से सुना जाता है. ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि भारत उन देशों को अपने साथ ले, जो बहुत पहले से ग्लोबल साउथ के हिमायती रहे हैं. इनमें मिस्र एक प्रमुख देश है.

राष्ट्रपति अल-सिसी का गणतंत्र दिवस पर भारत आना इस दिशा में बड़ा कदम है. इससे दोनों देशों के आपसी रिश्तों को तो नयी दिशा मिलेगी ही, साथ ही भविष्य में बहुपक्षीय भागीदारी का भी एक आधार तैयार होगा. उदाहरण के तौर पर हम ब्रिक्स समूह के बैंक- न्यू डेवलपमेंट बैंक- को ले सकते हैं. इस बैंक ने मिस्र की परियोजनाओं को वित्तीय सहयोग मुहैया कराया है. हाल में मिस्र की संसद ने मिस्र के एक बैंक का सदस्य बनने के प्रस्ताव को भी हरी झंडी दे दी है. मिस्र ने यह भी कहा है कि ब्रिक्स में भी जुड़ने की उसकी आकांक्षा है.

पश्चिम एशिया के हवाले से भारत और मिस्र के अच्छे संबंधों के कुछ अन्य अहम आयाम भी हैं. पाकिस्तान लंबे समय से भारत विरोध के लिए अरब देशों को अपने पाले में लाने की कोशिश करता रहा है, पर जैसे-जैसे हमारे संबंध उन देशों के साथ अच्छे होते जा रहे हैं, पाकिस्तान अलग-थलग पड़ता जा रहा है. उन देशों ने पाकिस्तान को भले सहयोग देने के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया हो, पर वे भारत के साथ संबंधों पर उसका प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहते हैं.

भारत ने भी पश्चिम एशिया की आंतरिक राजनीति से अपने को दूर रखा है. भीषण भूकंप से प्रभावित तुर्की और सीरिया को तुरंत मानवीय सहयोग भेजकर भारत ने फिर यह संकेत दिया है कि वह साझा सहयोग और विकास के सिद्धांत पर अग्रसर है. पश्चिम एशिया में इजरायल के साथ भी भारत के गहरे संबंध हैं. पहले अरब देशों के साथ संबंध इजरायल के कारक से प्रभावित होते थे, पर हालिया वर्षों में कई अरब देशों के इजरायल से रिश्ते बेहतर हुए हैं. इसमें तुर्की को भी जोड़ा जा सकता है, जिसका असर पश्चिम एशिया की घटनाओं पर रहता है. मिस्र के संबंध एक ओर सऊदी अरब से अच्छे हैं, तो कतर से भी हैं और इजरायल से भी.

अफ्रीका और अरब क्षेत्र में इस्राइल ऐतिहासिक रूप से नेतृत्व की भूमिका में रहा है. इस स्थिति में भारत और मिस्र का निकट आना, दोनों देशों के इस्राइल और खाड़ी देशों से अच्छे संबंध होना नये सहयोगों के लिए व्यापक आधार मुहैया करा सकता है. इस संबंधों के पूरे विकास क्रम को हम भारत की कूटनीतिक सफलता के रूप में भी देख सकते हैं, क्योंकि तमाम भू-राजनीतिक आयामों के बीच इन सभी देशों को एक साथ साधना आसान काम नहीं है.

यह विश्व राजनीति में भारत के बढ़ते प्रभाव को भी इंगित करता है. जैसे-जैसे हमारी अर्थव्यवस्था का विस्तार होता जायेगा, बहुत सारे देशों के साथ भागीदारी बढ़ाने के अवसर बनते जायेंगे. इसके साथ कूटनीतिक प्रयास भी असरदार साबित हो रहे हैं. यह सब सामरिक दृष्टि से भी सकारात्मक हैं.

अब तो पाकिस्तान में भी कहा जाने लगा है कि भारत के साथ हुए युद्धों का कोई अर्थ नहीं था तथा वैसी स्थितियां फिर से पैदा नहीं होनी चाहिए. उसे वास्तविकता का अहसास होने लगा है. इसमें पश्चिम एशिया में भारत का बढ़ता प्रभाव भी एक कारक है. मिस्र एवं अन्य अरब देशों के साथ अच्छे संबंध उस क्षेत्र में चीन के विस्तारवाद को संतुलित करने में भी मददगार साबित होंगे. (बातचीत पर आधारित).

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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