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वायु प्रदूषण का बढ़ता जानलेवा खतरा

Air Pollution : हमें नहीं भूलना चाहिए कि वायु प्रदूषण बहुत खतरनाक है, क्योंकि हम हर क्षण इसे अपने अंदर ले रहे हैं. प्रदूषित हवा हमारे रक्त संचार का हिस्सा बन जाती है और हमारे महत्वपूर्ण अंगों तक पहुंच उन पर विपरीत प्रभाव डालती है.

Air Pollution : इस बार फिर से शुरू हो चुका है वही पुराना रोग, जो पिछले एक दशक से हम हर वर्ष इसी समय झेलते आ रहे हैं. और वह है वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर, जिसने देश के शहरों को फिर घेर लिया है. यह वही समय होता है जब पराली जलाई जा रही होती है, दीपावली का अवसर होता है, और लोग पूरे जोर के साथ अपने को ही संकट में डाल रहे होते हैं. दिवाली की मस्तीबाजी और बाजारी भीड़ आने वाले समय में हमारे जीवन में कहीं कोई बड़ा ठहराव तो नहीं ला रही है, इस बात की कल्पना हम नहीं कर पा रहे हैं.


दिल्ली को ही देखिए, जो आजकल पूरी तरह प्रदूषण की चपेट में है. सरकार ने इससे निपटने के लिए यहां कई तरह के नियम भी लागू किये हैं. इन नियमों में निर्माण कार्यों पर रोक, आवाजाही पर नियंत्रण और पराली जलाने पर सख्ती जैसे उपाय शामिल हैं. इसके बावजूद दिल्ली की हवा बेहतर नहीं हुई है. चूंकि यह राजधानी है और देश का दिल भी, ऐसे में जब राजधानी के हालात ऐसे होंगे, तो देश के अन्य हिस्सों के हालात कैसे होंगे, जहां शायद एक्यूआइ का कोई मतलब नहीं समझता, न ही वायु प्रदूषण के प्रति कोई समझ व चर्चा ही होती है, यह सोचने वाली बात है. इस बार भी जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण स्तर का आकलन होगा, तो दिल्ली और देश के अन्य महत्वपूर्ण शहर वायु प्रदूषण में ऊंचाइयां छू रहे होंगे.

अब देश का कोई भी राज्य यह दावा नहीं कर सकता कि उसके यहां वायु प्रदूषण निम्न स्तर पर है. केवल बरसात के मौसम में जब बारिश के कारण कई वायु पदार्थ आसमान से धरती पर आ जाते हैं, वायु की गुणवत्ता थोड़ी बेहतर रहती है. पर इसके अतिरिक्त, वर्षभर बढ़ती गाड़ियों की संख्या, तथाकथित ढांचा विकास, और त्योहारों के अवसर पर वायु प्रदूषण आसमान छूने लगता है. इन सबके अतिरिक्त, गर्मियों में एयर कंडीशनर का प्रयोग बढ़ता है, और सर्दियों में हीटर का उपयोग. इसमें बाजार की बड़ी भूमिका होती है. अब बाजार में गर्मियों के लिए तमाम तरह के एयर कूलर, एसी और सर्दियों के लिए कई तरह के हीटर उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग कभी आवश्यकता के लिए, तो कभी शौक के कारण बढ़ रहा है. कहने का अर्थ है कि अब हमारा कोई भी मौसम ऐसा नहीं होता जब हमें अतिरिक्त संसाधनों या ऊर्जा का उपयोग नहीं करना पड़ता.


सुविधाओं की खोज में हमने अपनी सीमाएं खत्म कर दी हैं, अब हम न तो अत्यधिक गर्मी सहना चाहते हैं, न ही ठंड. हम भूल जाते हैं कि मौसमी उतार-चढ़ाव हमारे शरीर को बनाने, ढालने तथा मजबूत करने में मदद करते हैं, पर हमने अपनी जीवनशैली को इस प्रकार सुविधाओं में डुबो दिया है कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ही कमजोर होने लगी है. उदाहरण के लिए, गर्मी के मौसम में अधिक पानी पीना, आहार और व्यवहार का बदलना, इससे शरीर में एक प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है. इसी तरह, शीतकाल में भोजन गर्म कपड़े से लेकर स्नान तक में बदलाव आता है और शरीर ढल जाता है. इसके विपरीत गर्मियों में एसी, कूलर और जाड़ों में हीटर चलाने से शरीर और वातावरण दोनो बदल जाते हैं और शरीर इसके अनुरूप ढल नहीं पाता. जिसका सीधा विपरीत असर शारीरिक क्षमताओं पर पड़ता है.

मतलब साफ है, विलासिता विनाश पैदा कर रही है. जीवनशैली का बदलाव ही वायु प्रदूषण का कारण बन गया है. एक बात और जो सभी को जाननी चाहिए, वह यह कि जब वायु प्रदूषण बढ़ता है, तो इसका तापमान पर भी असर पड़ता है. जितनी घनी वायु होगी- जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड अधिक होंगे- वह उतना ही ताप सोखेगा, जिससे वातावरण और गर्म हो जाता है. कितनी अजीब बात है कि जितनी गर्मी, ठंड बढ़ेगी, उतने ही एसी, हीटर की खपत होगी और फिर इनके उपयोग से और गर्मी, ठंड बढ़ेगी. मतलब ये ही एक-दूसरे की आपूर्ति कर रहे हैं. प्रदूषण का प्रभाव खेती-बाड़ी, शरीर और हमारे जीवन की अन्य आवश्यकताओं पर भी पड़ता है, जिसका पता बाद में ही चलता है. दिल्ली का एक्यूआइ इस समय फिर से 300-400 से ऊपर ही है. इसी तरह, देश का कोई भी बड़ा शहर ऐसा नहीं है जो आजकल 300 से नीचे हो. जहां बड़े-बड़े उद्योग हैं, वहां यह 300-400 से ज्यादा की सीमा पार कर जाता है.


हमें नहीं भूलना चाहिए कि वायु प्रदूषण बहुत खतरनाक है, क्योंकि हम हर क्षण इसे अपने अंदर ले रहे हैं. प्रदूषित हवा हमारे रक्त संचार का हिस्सा बन जाती है और हमारे महत्वपूर्ण अंगों तक पहुंच उन पर विपरीत प्रभाव डालती है. इस प्रकार के तमाम अध्ययन भी सामने आ चुके हैं और वैज्ञानिकों ने बार-बार इसे लेकर चेतावनी भी दी है. आज दुनियाभर में हर वर्ष 77 लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं, और कई अन्य गंभीर बीमारियों की चपेट में हैं, जो आने वाले समय में जानलेवा साबित हो सकती है. हम सबको इस पहलू पर विचार करना चाहिए कि जिस वायु को हम प्राण मानते हैं, यदि वही हमारे प्राण लेने पर उतारू हो जाये, तो दोष किसे दें? इस दोष का कारण हम स्वयं ही हैं. सो, अकाल मृत्यु से बचने के लिए आज से ही जागरूक होना होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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