केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) काउंसिल की 53वीं बैठक के दौरान कुछ अहम घोषणाएं की हैं, जिससे लोगों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है. इस काउंसिल की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा की जाती है तथा इसमें सभी राज्यों के वित्त मंत्री सदस्य होते हैं. तकनीक के इस्तेमाल और सरल प्रक्रिया से जीएसटी संग्रहण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, पर फर्जी दावे कर इनपुट टैक्स की चोरी भी की जाती है. इसे रोकने के लिए आधार संख्या आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन की प्रक्रिया अपनायी जायेगी. किसी भी धातु से निर्मित दूध के बर्तनों पर अब 12 प्रतिशत की एक ही कर दर लागू होगी. प्लेटफॉर्म टिकटों को जीएसटी से मुक्त कर दिया गया है. सामानों की पैकिंग के लिए इस्तेमाल में आने वाले गत्ते के कार्टन पर लगने वाले कर को 18 से घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया है.
हमारे देश के शैक्षणिक संस्थानों में समुचित मात्रा में आवासीय सुविधाएं नहीं हैं. इस कारण बड़ी संख्या में छात्रों को संस्थान से बाहर किराये पर रहना पड़ता है. ऐसे आवास पर प्रति व्यक्ति 20 हजार रुपये तक की कर छूट दी गयी है. इसका सीधा मतलब है कि एक प्रकार से इसे करमुक्त कर दिया गया है. जिन मामलों में फर्जीवाड़े की शिकायत नहीं है, उन्हें ब्याज एवं अर्थदंड के दायरे से हटा दिया गया है. छोटे करदाताओं के लिए जीएसटीआर फॉर्म-4 भरने की अंतिम तिथि को 30 अप्रैल से बढ़ाकर 30 जून कर दिया गया है. इन उपायों से व्यवसायियों और ग्राहकों को निश्चित ही लाभ होगा तथा मुद्रास्फीति घटाने में भी मदद मिलेगी, जो लंबे समय से सरकार एवं रिजर्व बैंक की प्राथमिकता है. केंद्र सरकार पहले से ही कहती आयी है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाया जाना चाहिए.
इस बैठक में भी सीतारमण ने सरकार की मंशा को काउंसिल के समक्ष रखा. इन पदार्थों पर केंद्र सरकार भी कर लगाती है और राज्य सरकारें भी. चूंकि ये प्रमुख ईंधन हैं, तो सरकारों को बड़ी मात्रा में राजस्व भी हासिल होता है. जीएसटी के तहत पेट्रोल और डीजल को लाने के लिए एक दर और उससे आने वाले राजस्व के उचित वितरण पर सभी राज्यों की सहमति आवश्यक है. ऐसा माना जा रहा है कि सहमति बनाने के लिए आगामी दिनों में केंद्र अपने प्रयास तेज कर सकता है. वित्त मंत्री ने अपने संबोधन में यह भी रेखांकित किया कि केंद्र सरकार समय से करों के वितरण सुनिश्चित करने तथा राज्यों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि अधिकांश ऋण को राज्य अपनी इच्छा से खर्च करने के लिए स्वतंत्र होते हैं, पर उसका एक हिस्सा विशेष प्रयोजनों के लिए निर्धारित होता है. राज्यों को शर्तों को स्वीकार कर ऐसे ऋण हासिल करने चाहिए.