24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बढ़ता पारिवारिक ऋण

एक ओर परिवारों का कर्ज भार बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर उनकी बचत लगभग पांच दशक में सबसे कम स्तर पर है.

परंपरागत तौर पर भारतीय परिवारों में अधिक बचत करने तथा कम कर्ज लेने की प्रवृत्ति रही है, पर अब यह परिदृश्य बदलता जा रहा है. पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर 2023) में पारिवारिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 39.1 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. यह अनुपात एक वर्ष पहले 36.7 प्रतिशत रहा था. वर्ष 2021 के जनवरी-मार्च की अवधि में पारिवारिक ऋण का अनुपात 38.6 प्रतिशत था.

इस कर्ज का 72 प्रतिशत हिस्सा गैर-आवासीय ऋण है, जो आवास के लिए हासिल किये जाने वाले कर्ज की तुलना में तेज गति से बढ़ता जा रहा है. आवास के कर्ज में वृद्धि 12.2 प्रतिशत रही, जबकि गैर-आवासीय ऋण में बढ़ोतरी 18.3 प्रतिशत हुई. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेस लिमिटेड की हालिया रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि कर्ज के आंकड़े इंगित कर रहे हैं कि लोग परिसंपत्तियां खरीदने की अपेक्षा उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद या फिजूलखर्ची पर अधिक खर्च कर रहे हैं.

कुछ अन्य अध्ययनों में पाया गया है कि ऐसे लोगों की संख्या भी बढ़ रही है, जो कर्ज चुकाने के लिए अधिक ब्याज दरों पर व्यक्तिगत ऋण ले रहे हैं. उपभोग भारतीय अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार है. हमारी अर्थव्यवस्था का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा उपभोग से संचालित होता है. यदि क्रय शक्ति बढ़ने या भविष्य को लेकर सकारात्मक विश्वास से उपभोग बढ़ता है, तो यह अच्छी बात है, लेकिन असुरक्षित ऋण बैंकों पर बोझ हो सकते है तथा वित्तीय प्रणाली के लिए जोखिम बन सकते हैं. भारतीय रिजर्व बैंक ने अनेक बार क्रेडिट कार्ड बकाया, पर्सनल लोन, उपभोक्ता ऋण में बड़ी उछाल को लेकर चिंता जतायी है तथा बैंकों को सचेत रहने की सलाह दी है. पिछले वर्ष अनेक चेतावनियों के बाद रिजर्व बैंक ने असुरक्षित कर्ज देना बैंकों के लिए महंगा बना दिया था.

कर्ज बढ़ने के साथ समय पर किस्त न भरने या डिफॉल्ट करने के मामले भी बढ़ रहे हैं, जो संभावित खतरे की ओर संकेत कर रहे हैं. मोतीलाल ओसवाल रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में पारिवारिक ऋण बहुत कम है, लेकिन परिवारों का असुरक्षित ऋण (बिना किसी गारंटी या गिरवी के) का स्तर ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बराबर है तथा अन्य कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से अधिक है.

एक ओर परिवारों का कर्ज भार बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर उनकी बचत लगभग पांच दशक में सबसे कम स्तर पर है. परिवार के पास मौजूद कुल पैसे और निवेश में से देनदारियों को घटाने के बाद जो राशि बचती है, उसे पारिवारिक बचत कहते हैं. कर्ज बढ़ने और बचत घटने का हिसाब स्पष्ट है. इसीलिए हमारे पुरखे चेता गये हैं- तेते पांव पसारिए, जेती लंबी सौर.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें