India-Kuwait Strategic Relations: पश्चिम एशिया के तेल समृद्ध देश कुवैत में नरेंद्र मोदी की यात्रा 43 वर्षों बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा है. श्रीमती इंदिरा गांधी बतौर प्रधानमंत्री 1981 में कुवैत गयी थीं. उसके बाद 2009 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कुवैत का दौरा किया था. हालांकि तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पहले दोनों देशों के विदेश मंत्री एक दूसरे के यहां पहुंच कर इस यात्रा की पृष्ठभूमि पहले ही तैयार कर चुके थे. जहां तक कुवैत की बात है, तो 2006 में कुवैत के अमीर भारत के दौरे पर आये थे. उसके बाद 2013 में कुवैत के प्रधानमंत्री ने भारत की यात्रा की थी. दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों या शासन प्रमुखों के दौरे भले ही सीमित रहे हैं, लेकिन दोनों देशों के बीच मजबूत कारोबारी और सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं.
कुवैत पहुंचते ही प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत के पास नये कुवैत के लिए जरूरी मानव संसाधन, कौशल और तकनीक है. उनकी यह टिप्पणी दरअसल कुवैत के साथ भारत के संबंधों की गहराई के बारे में बताती है. उन्होंने कुवैत में एक श्रमिक शिविर का दौरा किया, जहां 90 प्रतिशत से अधिक भारतीय कामगार हैं. विदेश मंत्रालय ने इस कार्यक्रम को विदेश में भारतीय श्रमिकों को सरकार द्वारा महत्व दिए जाने के रूप में पेश किया. सच यह है कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने विदेश में भारतीय श्रमिकों के कल्याण के लिए इ-माइग्रेट पोर्टल, मदद पोर्टल और उन्नत प्रवासी भारतीय बीमा योजना जैसे कई कदम उठाये हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने कुवैत में रह रहे भारतीय कामगारों को 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने की मुहिम में योगदान करने की अपील की. फिर वह जाबेर अल-अहमद अंतराष्ट्रीय स्टेडियम में 26वें अरब खाड़ी कप के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. वहां कुवैत के अमीर से भी उनकी मुलाकात हुई. रविवार को कुवैत के अमीर के साथ प्रधानमंत्री मोदी की व्यापार, निवेश और ऊर्जा के क्षेत्रों में दोतरफा संबंधों को और आगे बढ़ाने के बारे में व्यापक वार्ता हुई. प्रधानमंत्री मोदी ने इस महीने की शुरुआत में जीसीसी शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए कुवैत के अमीर को बधाई दी, तो अमीर ने कुवैत और खाड़ी क्षेत्र में एक मूल्यवान भागीदार के रूप में भारत की भूमिका की सराहना की.
कुवैत ने प्रधानमंत्री मोदी को अपना सर्वोच्च सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ प्रदान किया, जो इससे पहले बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश और प्रिंस चार्ल्स जैसों को प्रदान किया जा चुका है. भले ही प्रधानमंत्री के रूप में एक दशक के अपने कार्यकाल में मोदी का यह पहला कुवैत दौरा हो, लेकिन उन्होंने अपनी विदेश नीति में पश्चिम एशिया को बहुत अधिक महत्व दिया है. इसका पता इससे भी चलता है कि अपने 10 साल के कार्यकाल में पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम एशिया में अरब देशों के दौरे पर मात्र तीन बार गये थे. जबकि अपने 10 साल के प्रधानमंत्री काल में नरेंद्र मोदी का अरब देशों का यह 14वां दौरा है. भारत की ईंधन जरूरतें पश्चिम एशिया के देशों से ही पूरी होती हैं. पश्चिम एशिया में भारतीय कामगारों की बड़ी आबादी भी रहती है.
कुवैत की आबादी में भारतीयों की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत (10 लाख) है, जबकि उसके श्रमबल में भारतीयों की हिस्सेदारी 30 फीसदी है. कुवैत में रहने वाले भारतीय सालाना लगभग 4.7 अरब डॉलर भारत भेजते हैं, जो विदेश से भारतीय समुदायों द्वारा देश में भेजी जाने वाली कुल सालाना धनराशि का 6.7 प्रतिशत है.
भारत और कुवैत के रिश्तों के महत्व का पता इसी से चलता है कि जब कुवैत के विदेश मंत्री इस महीने भारत आये थे, तब साझा सहयोग कमीशन (जेसीसी) का गठन किया गया था. वित्त वर्ष 2023-24 दोनों देशों के बीच सालाना लगभग 10.47 अरब डॉलर का कारोबार हुआ. हालांकि इस कारोबार का ज्यादातर हिस्सा कुवैत से भारत आने वाला तेल और अन्य ऊर्जा उत्पाद थे, जबकि भारत ने पहली बार सर्वाधिक करीब दो अरब डॉलर का निर्यात कुवैत को किया. कुवैत भारत का छठा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश है.
भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का तीन प्रतिशत कुवैत से आयात करता है. देखने में यह हिस्सेदारी मामूली लगती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए भारत कुवैत समेत पश्चिम एशिया के देशों पर निर्भर है. भारत ने कुवैत में करीब 10 अरब डॉलर का निवेश भी किया है. सच तो यह है कि प्रधानमंत्री मोदी का कुवैत दौरा बहुत समय से विभिन्न कारणों से टल रहा था. संयुक्त अरब अमीरात को छोड़कर पश्चिम एशिया के ज्यादातर देश छोटे हैं. लेकिन इस समय कुवैत दो कारणों से रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है. एक तो यह कि वह पूरे खाड़ी क्षेत्र में मध्यस्थ का काम करता है. दूसरा यह कि इस समय वह जीसीसी यानी गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल का अध्यक्ष है.
भारत ने कुवैत के साथ अपने रिश्ते को रणनीतिक साझेदारी में बदल लिया है. इसका मतलब यह है कि उसके साथ सिर्फ कच्चा तेल लेने और उसके यहां अपने कामगारों को भेजने का रिश्ता नहीं है. दोतरफा रिश्ता इससे आगे विभिन्न मुद्दों पर सहयोग और तालमेल तक जाता है. इसके तहत जहां दोनों देश एक दूसरे के यहां व्यापार और निवेश बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं, वहीं खाड़ी देशों में अपने हितों के लिए भारत कुवैत पर निर्भर है. कुवैत चूंकि जीसीसी का अध्यक्ष है, ऐसे में इस संगठन के साथ अपना रिश्ता मजबूत करने के लिए भी भारत को कुवैत की मदद की आवश्यकता है.
मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति भी इस समय पश्चिम एशिया से भारत के संबंध मजबूत करने के अनुकूल है. अभी तक खाड़ी देशों में भारत के लिए सबसे बड़ी बाधा हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान था, जो लगातार दुष्प्रचार कर भारत को कमजोर करने की कोशिशों में लगा रहता था. पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर कमजोर पड़ा है और भारत-विरोधी योजनाओं पर अमल करने में सक्षम नहीं है. ऐसे में, खाड़ी क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए भारत के पास सुनहरा अवसर है. वैसे भी हाल के वर्षों में भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जैसी मजबूत छवि बनायी है, उसे देखते हुए खाड़ी देश अब पाकिस्तान के दुष्प्रचारों के आधार पर भारत के बारे में राय नहीं बनाने वाले. कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुवैत दौरे ने भारत के साथ खाड़ी के इस देश को मजबूत रिश्तों में बांध दिया है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)