Ministry of Cooperatives : प्नधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा रखते है और इसके लिए सभी मंत्रालयों को सक्रिय कर चुके हैं. इसके लिए जिन क्षेत्रों की जरूरत पड़ेगी, उनमें सहकारिता एक है. यह भारतीय कृषि की रीढ़ है और इसी से हमारी कृषि और कृषक समृद्ध हो रहे हैं. दुनिया भर में जितने सहकारिता संगठन हैं, उसका 27 फीसदी अकेले भारत में है और उससे देश की कुल जनसंख्या का 20 फीसदी हिस्सा जुड़ा हुआ है. यह भी हैरान करने वाली बात है, क्योंकि दुनिया में औसतन सिर्फ 12 फीसदी लोग ही सहकारिता से जुड़े हुए हैं.
देश में इस समय कुल 8.55 लाख को-ऑपरेटिव सोसाइटीज हैं. इनमें 29 करोड़ लोग सीधे तौर से संलिप्त हैं, जिन्हें इससे रोजगार और वित्तीय सुरक्षा मिलती है. विश्व के सबसे बड़े 300 को-ऑपरेटिव में भारत के इफको, क्रिभको और अमूल हैं. इन्होंने करोड़ों भारतीयों को रोजगार दिया है और उन्हें सम्मानजनक जिंदगी दी है.
भारत बन सकता है 5 खरब डाॅलर की अर्थव्यवस्था
भारत का सहकारिता क्षेत्र कृषि ऋण देने में भी ऊंचा स्थान रखता है. देश के कुल कृषि ऋण का 20 फीसदी इस क्षेत्र के जरिये बंटता है. हमारी कुल कृषि उपज का 21 फीसदी इसी क्षेत्र से आता है. को-ऑपरेटिव सेक्टर की चीनी मिलें कुल चीनी का 31 फीसदी उत्पादित करती हैं. गेहूं और चावल की खरीद में भी इस क्षेत्र का बड़ा योगदान है. दरअसल सहकारिता क्षेत्र में वह क्षमता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच खरब डॉलर की उपलब्धि तक ले जा सकता है. इसे ही ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री ने 2021 में एक नया स्वतंत्र मंत्रालय बनाया, जिसे सहकारिता मंत्रालय का नाम दिया गया.
इस मंत्रालय का जोर कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण के अलावा उसे सशक्त बनाने पर है. यह मंत्रालय देश की दो लाख पंचायतों में अगले पांच वर्षों में बहुद्देशीय प्राथमिक क्रेडिट सोसाइटियों यानी पैक्स का गठन करने के महती कार्य में जुटा हुआ है. इनमें से अब तक 12,000 से भी ज्यादा का पंजीकरण हो चुका है. प्रधानमंत्री ने सहकार से समृद्धि का जो नजरिया रखा है, उसके लिए देश में सहकारिता आंदोलन को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि देश में यह स्थायित्व को बढ़ावा दे, जो आगे चलकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए. इन नये पैक्स, डेयरी तथा मत्स्य पालन सहकारिता सोसाइटीज का गठन हर पंचायत में किया जा रहा है.इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और तेज होगी.
सहकारिता मंत्रालय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ला रहा बदलाव
सहकारिता मंत्रालय ने नाबार्ड, एनडीडीबी और एनएफडीबी के साथ मिलकर उन पंचायतों में जो अभी इसके अंतर्गत नहीं आए हैं, करोड़ों छोटे तथा सीमांत किसानों को जोड़ना शुरू कर दिया है. इसका प्रभाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जबर्दस्त पड़ेगा. प्राथमिक कृषि क्रेडिट सोसाइटीज को 300 तरह की ई-सेवाएं देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिनमें बैंकिंग, बीमा, आधार पंजीकरण और उनके अपडेशन की व्यवस्था है. अगले पांच वर्षों में मंत्रालय 70,000 नये बहुद्देशीय पैक्स गठित करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है. इसके अलावा वह बड़े पैमाने पर नये बहुद्देशीय डेयरी को-ऑपरेटिव सोसाइटीज और 6,000 नये मत्स्य पालन को-ऑपरेटिव भी स्थापित करना चाहता है.
वर्तमान 46,500 डेयरी को-ऑपरेटिवों और लगभग 5,500 मत्स्य पालन को-ऑपरेटिवों को भी मजबूत किया जाएगा. 25,000 नये पैक्स. डेयरी और मत्स्य को-ऑपरेटिव गठित कर राज्य सरकारें भी इस दिशा में योगदान करेंगी. को-ऑपरेटिव मॉडल देश को आत्मनिर्भर बनाने और अधिकतम निर्धन लोगों को समृद्धि की ओर ले जाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है. इससे खाद्य सुरक्षा भी बढ़ेगी. वर्ष 2025 को संयुक्त राष्ट्र ने सहकारिता का वर्ष घोषित किया है. इसकी थीम होगी, ‘को-ऑपरेटिव बनाते हैं एक बेहतर दुनिया’. भारत सहकारिता को आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प है.
अन्नदाता बनेंगे ऊर्जादाता
दुनिया ने पूंजीवाद और साम्यवाद को गले लगाया है, पर भारत सहकारी समितियों को बढ़ावा देकर इन दोनों मॉडल के बीच का रास्ता तैयार करने में जुटा हुआ है. इस दिशा में काम करते हुए सहकारिता मंत्रालय को-ऑपरेटिव सेक्टर में सबसे बड़े विकेंद्रित अनाज भंडारण योजना पर काम कर रहा है, इसमें 27 राज्य और केंद्र शासित राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर के सभी बड़े को-ऑपरेटिव फेडरेशन आएंगे. इसने हरित क्रांति 2.0 को भी सभी के सामने रखा है. यह नयी श्वेत क्रांति महिलाओं का सशक्तिकरण करेगी, रोजगार बढ़ाएगी और सहकारिता का दायरा फैलाएगी. ऐसी योजना है कि पांचवें वर्ष तक डेयरी को-ऑपरेटिव अकेले 1,000 लाख किलोग्राम दूध रोज इकट्ठा करें. इससे गौपालकों की आय बढ़ेगी और रोजगार भी बढ़ेगा. इससे भारत भविष्य में दुनिया का एक तिहाई दुग्ध उत्पादित करेगा.
सहकारिता मंत्रालय की कोशिश है कि भारत दुग्ध प्रसंस्करण उपकरणों का सबसे बड़ा निर्माता भी बने. सहकारिता मंत्रालय अन्नदाताओं को ऊर्जादाता बनने के लिए प्रेरित कर रहा है. अगर किसानों को इस दिशा में प्रेरित किया जा सके, तो 10 लाख करोड़ रुपये तक का आयात बिल कम किया जा सकेगा. इसका तरीका यह होगा कि किसान कृषि अपशेषों से ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत तैयार करें. सहकारिता कृषि की हमारी तमाम समस्याओं का रामबाण इलाज है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)