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भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती

कर संग्रह में वृद्धि, निर्यात के मोर्चे पर आयी अभूतपूर्व तेजी, कुल ऋण में विदेशी मुद्रा ऋण की हिस्सेदारी में कमी, सरकार और केंद्रीय बैंक द्वारा समय-समय पर उठाये गये समीचीन कदमों से भारतीय अर्थव्यवस्था संकट के इस दौर में भी मजबूत बनी हुई है.

रूस-यूक्रेन युद्ध और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के कारण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी विकास दर के नौ प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है, जो पूर्व में 9.5 प्रतिशत थी. वित्त वर्ष 2023 के लिए आइएमएफ ने भारत की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 8.5 प्रतिशत से बढ़ाकर नौ प्रतिशत कर दिया है.

वैसे, आइएमएफ यह अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक समेत कई देसी एवं विदेशी एजेंसियों के अनुमानों से बेहतर है. केंद्रीय बैंक ने जीडीपी वृद्धि दर अनुमान को 7.8 प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है, जबकि विश्व बैंक ने 8.7 प्रतिशत से घटाकर आठ प्रतिशत कर दिया है. विश्व बैंक के अनुसार भारत में रोजगार की स्थिति दयनीय बनी हुई है, जिससे लोगों की आय में कमी हुई है और बढ़ती महंगाई से लोगों की क्रय शक्ति में कमी आ रही है.

मार्च, 2022 में भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई या खुदरा महंगाई 6.95 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गयी, जो पिछले 17 महीनों का उच्चतम स्तर था. यह लगातार तीसरा ऐसा महीना था, जब खुदरा महंगाई मौद्रिक नीति समिति के चार प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक रही. हालांकि, बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश में भी खुदरा महंगाई उच्चतम स्तर पर है.

अमेरिका में यह 8.5 प्रतिशत है, जो 40 वर्षों का उच्चतम स्तर है, जबकि यूरो क्षेत्र में यह 7.5 प्रतिशत है. इन देशों में औसत खुदरा महंगाई पहले दो प्रतिशत से भी कम रहती थी. ब्रिक्स देश ब्राजील में यह 11.3 प्रतिशत है, जबकि रूस में 16.7 प्रतिशत. सिर्फ चीन में खुदरा महंगाई 1.5 प्रतिशत है, जो दुनिया में सबसे कम है.

एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) ने वित्त वर्ष 2023 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर के 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है. एडीबी के अनुसार भारत की मौजूदा राजकोषीय नीति से भारत में विकास को बल मिलेगा और पू्ंजीगत व्यय में वृद्धि करने की नीति पर चलने से भारत की लॉजिस्टिक्स एवं आधारभूत संरचना में बेहतरी आयेगी. देसी रेटिंग एजेंसी इक्रा ने जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को आठ प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है.

भारत की जीडीपी वृद्धि दर दुनिया में सबसे बेहतर है. वित्त वर्ष 2022 में जीडीपी वृद्धि दर के 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है, जबकि 5.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान के साथ चीन दूसरे स्थान पर है. अमेरिका में तीन प्रतिशत और यूरो क्षेत्र में यह अनुमान 3.3 प्रतिशत है. रूस में जीडीपी वृद्धि दर में 10.1 प्रतिशत तक की गिरावट आने का अनुमान है.

भारत के लिए महंगाई पर काबू पाना और जीडीपी वृद्धि दर की मौजूदा रफ्तार को कायम रखना आसान नहीं होगा. हालांकि, कर संग्रह और निर्यात के मोर्चे पर भारत ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया है. महंगाई बढ़ती रही और वैश्विक स्तर पर कारोबार धीमा रहा तो, कर संग्रह और निर्यात दोनों में भारत पिछड़ सकता है. रुपया मजबूत मुद्राओं में से एक बना हुआ है. विगत 12 महीनों में डॉलर के मुकाबले में रुपये में सिर्फ 1.4 प्रतिशत की गिरावट आयी है. फिलहाल, भारत के साथ-साथ चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया, मैक्सिको आदि की मुद्राएं डॉलर की तुलना में मजबूत बनी हुई हैं.

वैश्विक रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स के अनुसार, कच्चे तेल की कीमत 150 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचती है तो भारत, फिलीपींस और थाईलैंड का चालू खाते का घाटा 2022 में जीडीपी के पांच प्रतिशत से ऊपर जा सकता है. इन देशों में पूंजी पलायन का खतरा उत्पन्न हो सकता है. उच्च आयात बिल के कारण 2021-22 की तीसरी तिमाही में भारत का चालू खाता घाटा जीडीपी का 2.7 प्रतिशत रहा, जो सितंबर तिमाही में 1.3 प्रतिशत था.

अमेरिकी फेड द्वारा नीतिगत दरों में इजाफे की आशंका से एशिया के बाजारों से पूंजी निकासी बढ़ गयी है. फेड ने मार्च में नीतिगत दरों में 25 आधार अंकों का इजाफा किया था. इस आधार पर एसएंडपी ने फेड द्वारा 2022 में सात दफा नीतिगत दरों में वृद्धि करने का अनुमान जताया है, जबकि वर्ष 2023 में चार से पांच बार.

मौजूदा परिप्रेक्ष्य में सरकार के पास महंगाई को रोकने के लिए बहुत ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं, क्योंकि वह पहले से कोरोना महामारी की वजह से वित्तीय संकट से जूझ रही है. यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध के कारण और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में उल्लेखनीय वृद्धि से भारत की आर्थिक स्थिति और भी कमजोर हो गयी है. चीन में फिर से कोरोना महामारी के फैलने की खबर है.

भारत में भी चौथी लहर के आने की आशंका है. ये संकेत जरूर नकारात्मक हैं. फिर भी, कर संग्रह में वृद्धि, निर्यात के मोर्चे पर आयी अभूतपूर्व तेजी, कुल ऋण में विदेशी मुद्रा ऋण की हिस्सेदारी में कमी, सरकार और केंद्रीय बैंक द्वारा समय-समय पर उठाये गये समीचीन कदमों से भारतीय अर्थव्यवस्था संकट के इस दौर में भी मजबूत बनी हुई है.

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