वर्ष 2023 में इंटरनेट सुरक्षा दिवस सात फरवरी को लगभग 200 देशों में मनाया जा रहा है. इंटरनेट सुरक्षा दिवस पहली बार 2004 में सुरक्षित इंटरनेट कार्य योजना के तहत यूरोपीय संघ द्वारा वित्तपोषित सेफबॉर्डर्स परियोजना की एक पहल के रूप में मनाया गया था. वर्ष 2005 में सुरक्षित इंटरनेट केंद्रों के नेटवर्क इंसेफ द्वारा इंटरनेट सुरक्षा दिवस मनाया गया.
पिछले 19 वर्षों में इंटरनेट सुरक्षा दिवस अपने पारंपरिक भौगोलिक क्षेत्र से निकल कर सभी महाद्वीपों के करोड़ो इंटरनेट उपभोक्ता तक पहुंचा चुका है. साइबर बुलिंग, सोशल नेटवर्किंग से लेकर डिजिटल पहचान तक प्रत्येक वर्ष इंटरनेट सुरक्षा दिवस का उद्देश्य उभरते हुए ऑनलाइन मुद्दों और इंटरनेट संबंधित भ्रांतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है.
वर्ष 2023 के इंटरनेट सुरक्षा दिवस का विषय ‘वांट टू टॉक अबाउट इट’ है. इस वर्ष के इंटरनेट सुरक्षा दिवस का मकसद तीन ज्वलंत सवालों के उत्तर ढूंढना है. पहला, बच्चों और युवाओं के लिए वास्तव में क्या मायने रखता है? दूसरा, वे क्या बदलाव देखना चाहते हैं?
तीसरा, बच्चों और युवाओं को आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करने के लिए हम सब मिलकर कैसे काम कर सकते हैं? संक्षेप में कहें, तो बच्चों और युवा इंटरनेट उपभोक्ताओं के जीवन से जुड़े पहलुओं के बारे में बातचीत के लिए ऑनलाइन मंच बनाना.
हर आयु वर्ग के लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगे हैं, जिसमें बच्चे और नव-युवा उपभोक्ताओं का अनुपात भी बढ़ रहा है. इंटरनेट सूचना का एक समृद्ध भंडार है, जो अक्सर बच्चों और अवयस्क उपभोक्ताओं के लिये अभिशाप भी साबित होता है. छोटी उम्र के उपभोक्ताओं के खिलाफ साइबर उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.
विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, ब्रिटेन में 45 प्रतिशत से अधिक और अमेरिका में 34 प्रतिशत बच्चे कम-से-कम एक बार साइबर बुलिंग का शिकार बन चुके हैं. विकसित देशों में बच्चों को अमूमन 11वें जन्मदिन से पहले ही साइबर अपराधों का सामना करना पड़ता है. वहां बच्चों को कम उम्र में ही आधुनिक डिजिटल उपकरणों को उपयोग करने का मौका मिल जाता है.
यूनान, फ्रांस और हंगरी जैसे कई देशों में संपादित शोध 13-15 के आयु वर्ग को सबसे असुरक्षित अवधि के रूप में चिह्नित करते हैं. हमारे देश भारत में भी किशोर उपभोक्ताओं के खिलाफ साइबर अपराध बढ़ते जा रहे हैं. वर्ष 2022 में भारत में साइबर बुलिंग के सबसे ज्यादा मामले सामने आये, 38 प्रतिशत से अधिक भारतीय माता-पिता ने उनके बच्चों के खिलाफ ऑनलाइन प्रताड़ना की पुष्टि की.
किसी व्यक्ति या समूह को धमकाने, गाली देने या उस पर हावी होने के इरादे से तात्कालिक संदेशन (इंस्टेंट मैसेजिंग), सोशल मीडिया, ई-मेल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग साइबर बुलिंग है. साइबर बुलिंग और साइबर स्टॉकिंग एक तरह का ही अपराध होता है, जिनका मकसद साइबर उत्पीड़न होता है. दोनों प्रकार के अपराधों का मूल अंतर अपराध करने वाले की उम्र है.
साइबर बुलिंग या एंटी-बुलिंग जहां किशोरों द्वारा किया जाता है, वहीं साइबर स्टॉकिंग वयस्कों द्वारा किया जाता है. साइबर बुलिंग के कुछ प्रमुख स्वरूप हैं- किसी को अश्लील मैसेज भेजना, किसी के सेल फोन पर मजाक भेजना, किसी के गेमिंग या सोशल नेटवर्किंग प्रोफाइल को हैक करना, किसी ऑनलाइन गेम में किसी के साथ असभ्य या बुरा व्यवहार करना,
लोगों के रहस्य को ऑनलाइन उजागर करना या अफवाहें फैलाना, गलत या दूसरों की पहचान इस्तेमाल कर धार्मिक, सामाजिक, आपराधिक या अश्लील संदेशों को फैलाना. शोध के अनुसार, साइबर बुलिंग के शिकार किशोरों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ जाती है.
बच्चों को कम उम्र से ही जागरूक बनाना चाहिए ताकि वे सतर्क रहें. माता-पिता को अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए. साइबर बुलिंग की सूचना आधिकारिक संस्थाओं को बिना किसी देरी के दें. इंटरनेट का इस्तेमाल करते समय गोपनीयता सेटिंग्स का उपयोग करें. सामग्री को निजी रखने के लिए उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग करें. व्यक्तिगत जानकारी गोपनीय रखें. पहचान संबंधी विवरण सावधानी से साझा करें.
कई बार आस-पड़ोस के लोग भी साइबर प्रताड़ना का काम करते हैं. उनकी शिकायत करें. शिकायत करने के लिए आप पुलिस या अपने राज्य के साइबर सेल से संपर्क कर सकते हैं. आप राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल के माध्यम से भी ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं.
भारत में साइबर बुलिंग रोकने के लिये विशिष्ट कानून नहीं बने हैं, हालांकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67, आइपीसी धारा 507, आईटी अधिनियम की धारा 66ई आदि का इस्तेमाल कई बार किया जाता है. स्कूलों, विशेष रूप से बोर्डिंग स्कूलों, में साइबर बुलिंग के मामले बढ़ रहे हैं. इसलिए इंटरनेट सुरक्षा दिवस के विषय पर अमल महत्वपूर्ण है. माता-पिता, शिक्षकों, संबंधियों, सरकार, उद्योग जगत और नीति निर्माताओं को बच्चों और किशोरों की समस्याओं को सुनकर ठोस और सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है.