Iran Israel War : ईरान की राजधानी तेहरान में हमास के नेता और फिलिस्तीन के प्रधानमंत्री रह चुके इस्माइल हानिये की मिसाइल हमले में हत्या से पश्चिम एशिया में तनाव एवं संघर्ष में बढ़ोतरी ही होगी. हालांकि इस्राइल ने अभी तक इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, पर ईरान, हमास, फिलिस्तीनी अथॉरिटी और फिलिस्तीन से सहानुभूति रखने वाले विभिन्न देश एवं समूह इस्राइल को ही दोषी ठहरा रहे हैं. हानिये और हमास के अनेक नेताओं पर पहले भी हमले हो चुके हैं. इनका नाम इस्राइल की हिट लिस्ट में था क्योंकि इस्राइल ने हमास को खत्म करने को अपना प्रमुख एजेंडा बनाया हुआ है.
पिछले साल सात अक्तूबर को जब हमास ने इस्राइल पर हमला किया था, तब उस हमले को इस्राइली इंटेलिजेंस एवं सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी सेंध माना गया था. तेहरान में जिस तरह से बिल्कुल निशाना लगाकर हमला हुआ है, उससे इस्रायली सुरक्षा व्यवस्था की साख में सुधार होगा. इस घटना से इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की राजनीतिक छवि को भी मदद मिलेगी, जिसमें कुछ समय से ह्रास आया है. इस्राइल ने हमास और हिज्बुल्लाह के कुछ बड़े कमांडरों को भी मारा है. इन कार्रवाइयों के आधार पर नेतन्याहू को राजनीतिक लाभ मिल सकता है. वे अपने देश में यह दावा कर सकते हैं कि जो लोग सात अक्तूबर और बाद में इस्राइल पर हमलों के लिए जिम्मेदार थे, उन्हें मार दिया गया है.
लेकिन इस हमले से गाजा में युद्धविराम के लिए हो रही कोशिशों को बड़ा धक्का लगा है. हमास की ओर से इस्माइल हानिये मुख्य वार्ताकार थे. इस हमले का तेहरान में होना ईरान की संप्रभुता का सीधा उल्लंघन है. इस पहलू से भी इस कार्रवाई की जटिलता बढ़ जाती है. अब ईरान इसका बदला किस तरह से लेगा, इसे लेकर अनुमान ही लगाया जा सकता है. वह कुछ समय प्रतीक्षा करेगा और फिर हमला करेगा, या फिर हमास, हिज्बुल्लाह, हूथी और इराकी समूहों के जरिये हमले करायेगा, यह कहना मुश्किल है. ईरान के सामने अनेक विकल्प हैं, जिनमें से वह कुछ का इस्तेमाल कर सकता है.
ईरान के सर्वोच्च नेता और राष्ट्रपति ने अपने बयानों में कार्रवाई की बात की है. कुछ खबरों में बताया गया है कि ऐसे हमलों के लिए शायद आदेश भी जारी कर दिया गया है. ऐसी स्थिति में मेरा मानना है कि पश्चिम एशिया में स्थिति और अधिक बिगड़ेगी. अब देखना यह है कि बड़ी वैश्विक शक्तियां- अमेरिका, चीन, रूस, यूरोपीय संघ- ऐसी स्थिति में क्या हस्तक्षेप करती हैं. अगर उन्होंने कोई कारगर कदम नहीं उठाया, तो लड़ाई बढ़ने के पूरे आसार हैं.
कुछ दिन पहले ही चीन ने हमास और फतह समेत 14 फिलिस्तीनी समूहों के बीच एक समझौता कराया है. हालांकि अमेरिका और चीन दोनों ही दो देश बनाने के समाधान का समर्थन करने का दावा करते हैं, पर उनके व्यवहार से यह इंगित होता है कि ये दोनों अलग-अलग छोर पर खड़े हैं. जब चीन में फिलिस्तीन समूहों की बैठक हो रही थी, उसी समय इस्राइली प्रधानमंत्री अमेरिका के दौरे पर थे. ये दोनों घटनाएं महत्वपूर्ण हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन चुनावी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके हैं. वे दोनों युद्धों- यूक्रेन और गाजा- पर अधिक ध्यान दे सकते हैं.
ये युद्ध नयी विश्व व्यवस्था को परिभाषित करने की क्षमता रखते हैं, अगर ऐसी कोई विश्व व्यवस्था बनती है तो. फिलिस्तीन के लिए संघर्ष में एक बड़ी बाधा फिलिस्तीनी समूहों की आपसी प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता रही है, जिसका फायदा इस्राइल ने भी उठाया है. नेतन्याहू पर भी हमास को समर्थन देने के आरोप लगते रहे हैं. सात अक्तूबर के हमले के बाद ही उन्होंने हमास को पूरी तरह खत्म करने की बात कही है. चीन की इस कोशिश का स्वागत अरब के देशों समेत कई देशों ने किया है. नेतन्याहू का कहना है कि वे गाजा को हमास या फतह के हाथ में नहीं जाने देंगे. अब देखना है कि फिलिस्तीनी समूहों की एकता का भविष्य कैसा होता है.
हानिये की हत्या से हमास के मनोबल पर कुछ असर पड़ सकता है और शायद फतह के लिए प्रतिस्पर्धा कुछ आसान हो सकती है, पर मुझे नहीं लगता है कि इस घटना से समूहों की एकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. यदि वे चाहते हैं कि फिलिस्तीन स्वतंत्र राष्ट्र बने, तो उन्हें एकजुट रहना ही होगा क्योंकि उनकी आपसी फूट का फायदा इस्राइल उठाता रहा है. हानिये की जगह खालेद मशाल या कोई और नेता आ जायेगा. फिलहाल सबसे बड़ी चिंता पश्चिम एशिया में अशांति बढ़ने को लेकर है. बीते मार्च-अप्रैल में हमने देखा है कि ईरान और इस्राइल युद्ध के कितने करीब आ गये थे.
सीरिया में ईरानी दूतावास पर हुए हमले के कुछ दिन बाद जवाबी कार्रवाई में ईरान ने इस्राइल पर बड़ी तादाद में मिसाइलें दागी थीं. उस हमले की जानकारी अमेरिका और अन्य देशों को पहले से थी क्योंकि दोनों देश पड़ोसी नहीं हैं. जब इतनी दूर से मिसाइल या ड्रोन भेजे जायेंगे, तो जाहिर है कि वे दूसरे देशों के ऊपर से जायेंगे. लेकिन मुझे नहीं लगता है कि इस समय ईरान कोई बड़ा युद्ध चाहता है. ऐसे में बहुत संभव है कि वह हिज्बुल्लाह और अन्य समूहों को माध्यम बनाये. जैसे हानिये को विशेष रूप से निशाना बनाया गया है, वैसी ही कार्रवाई हमास कर सकता है.
जैसा कि पहले मैंने कहा है, अभी तक इस्राइल ने हानिये पर हुए हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है. अगर वह जिम्मेदारी ले लेता है, तो स्थिति दूसरी हो जायेगी. तुर्की, कतर, इंडोनेशिया आदि समेत बहुत से देशों ने हमले की निंदा की है. ये सब बयान फिलिस्तीन के समर्थन में हैं. फिलिस्तीन के पक्ष में बहुत से देश हैं. ऐसे में हानिये की हत्या एक अनावश्यक कारवाई है और इससे संकट बहुत गंभीर हो सकता है. अनेक स्तरों पर युद्धविराम करने के लिए बातचीत चल रही थी. नेतन्याहू ने भी अमेरिका दौरे में कुछ प्रस्ताव दिये थे. पर अब समझौते की बात संभव नहीं है क्योंकि हमास के नेता को ही मार दिया गया. अब यह भी देखना है कि हमास के भीतर क्या स्थिति है और वे किस हद तक बढ़ना चाहते हैं या नहीं. इस्राइल से ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि वह लड़ाई रोकने का इच्छुक है. इस तरह के हमले के पीछे तो यही इरादा है कि ईरान और अन्यों को मजबूर किया जाए प्रतिक्रिया के लिए. इस तरह हमले और जवाबी हमले का सिलसिला कभी थमेगा ही नहीं, और कभी भी बड़ी क्षेत्रीय लड़ाई बन सकता है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)