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क्या हमारा समाज हिंसक होता जा रहा है

टीवी की बहस हो अथवा संसद की चर्चा, वहां शाब्दिक हिंसा का चलन बढ़ा है. समाज में इसकी स्वीकार्यता भी बढ़ी है. जैसे हल्के शब्दों ने अब अपना प्रभाव खो दिया है. भारी भरकम शब्द ही अब प्रभावी होते नजर आ रहे हैं. यह भी सच है कि हिंसा का निशाना कमजोर तबके के लोग ज्यादा बनते हैं.

आप गौर से देखें, तो पायेंगे कि बच्चों व युवाओं में आक्रामकता बढ़ी है. विभिन्न घटनाओं में इसका प्रकटीकरण भी हो रहा है. झारखंड के एक शहर में एक बच्चे की बर्थडे पार्टी में उसके साथियों ने ही उसका गला रेत दिया. खबर आयी कि लोगों को आदर्श जीवन व सफलता का मंत्र देने वाले एक मोटिवेशनल स्पीकर के खिलाफ अपनी पत्नी के साथ मारपीट करने का मामला दर्ज हुआ है. सोशल मीडिया पर इनके फॉलोअर्स की संख्या करोड़ों में है. टीवी की बहस हो या संसद की चर्चा, शाब्दिक हिंसा का चलन बढ़ा है. समाज में इसकी स्वीकार्यता भी बढ़ी है. जैसे हल्के शब्दों ने अब अपना प्रभाव खो दिया है, भारी भरकम शब्द ही अब प्रभावी होते नजर आ रहे हैं. यह भी सच है कि हिंसा का निशाना कमजोर तबके के लोग ज्यादा बनते हैं. मध्यम वर्ग, जो सबसे शांत व संभ्रांत माना जाता था, उसकी हिंसा के अनेक मामले सामने आये हैं. पिछले कुछ समय में अपार्टमेंट में तैनात सुरक्षा गार्डों और अन्य कामगारों के साथ मारपीट की कई घटनाएं हुई हैं. दिल्ली में एक युवा ने एक गार्ड को इसलिए बुरी तरह पीट दिया था, क्योंकि गार्ड ने उसे कार को सही स्थान पर पार्क करने को कहा था. दिल्ली से सटे नोएडा की सोसाइटियां तो बदसलूकी के मामले में बदनाम हैं. एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक गार्ड आराम कर रहा था कि अचानक उसके पास दो लोग आते हैं और मारपीट करने लगते हैं. बाद में पता चला कि सोसाइटी में एक महिला किसी गलत जगह पर कार पार्क करना चाहती थी. गार्ड ने इस पर आपत्ति की थी. तब तो महिलाएं चली गयीं, लेकिन बाद में उसने अपने साथियों को बुला कर गार्ड की पिटाई करवा दी. दिल्ली में ही एक महिला पायलट और उसके पति ने एक 10 वर्षीय नाबालिग कामगार लड़की को पीट-पीट कर घायल कर दिया. इसकी भनक पड़ोसियों को लगी, भीड़ आक्रोशित हो गयी और उसने पति-पत्नी की पिटाई कर दी. रोजाना देश के हर हिस्से में ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं. ये घटनाएं बताती हैं कि हम कितने हिंसक होते जा रहे हैं.

आप देखें, तो पायेंगे कि युवाओं में अल्फा मेल के प्रति जुनून बढ़ा है. हिंसा पर विमर्श ‘एनिमल’ फिल्म की चर्चा के बगैर अधूरा है. इस फिल्म को युवा बहुत पसंद कर रहे हैं, वहीं बुजुर्ग इसकी कड़ी आलोचना कर रहे हैं. रणबीर कपूर इसमें अल्फा मेल की भूमिका में हैं. यह एक ऐसे हिंसक पुरुष का किरदार है, जो अपने दुश्मनों को बेरहमी से खत्म कर देता है. युवा इसे पसंद कर रहे हैं. यही वजह है कि फिल्म सुपरहिट है. इस फिल्म में अल्फा मेल वाला किरदार अपने बदले के लिए अपने दुश्मनों को कभी कुल्हाड़ी से काट रहा है, तो कभी मशीन गन से भून रहा है, तो किसी का गला बड़े ही बेदर्दी से रेत रहा है. इस किरदार की हिंसा को जायज ठहराने के अनेक तर्क दिये गये हैं. टीवी को देखें, तो वहां हर सीरियल में एक महिला विलेन है, जो हर तीसरा वाक्य ‘यू शट अप’ कहती है. परिवार है, लेकिन खंडित है. साजिश और हिंसा से सीरियल भरे हुए हैं. यह गंभीर चिंता का विषय है. भारतीय सिनेमा का यह मॉडल नहीं रहा है. उसकी समस्या केवल एक रही है- शादी. एक लड़का और एक लड़की हैं, कभी अमीर, तो कभी गरीब हैं, तो कभी देशी और विदेशी, कभी अलग-अलग भाषा व संस्कृति से, तो कभी भारतीय और पाकिस्तानी और उनमें प्रेम हो जाता है. रास्ते का रोड़ा एक अदद विलेन है, जिसकी साजिशें विफल हो जाती हैं और अंत सुखद होता है, जिसमें लड़के-लड़की का मिलन हो जाता है.

यह भी है कि युवाओं में वे ही ऑनलाइन गेम लोकप्रिय हैं, जिनमें हिंसा है, मारधाड़ है. ऐसे गेम युवाओं में आक्रामकता को जन्म दे रहे हैं और समाज में इसका प्रकटीकरण भी हो रहा है, लेकिन हम इस सबसे अनजान है. इस पर कोई विमर्श नहीं हो रहा है. समस्या जब विकराल रूप ले लेगी, तब हम जागेंगे. भारतीय दृष्टिकोण से देखें, तो चीन किसी भी क्षेत्र में हमारा आदर्श नहीं है, लेकिन हाल में उसने जो कदम उठाया है, हम उससे जरूर कुछ सीख सकते हैं. चीन दुनिया के सबसे बड़े ऑनलाइन गेमिंग बाजारों में से एक है. पर ऐसे गेम के दुष्प्रभावों के मद्देनजर वहां एक कानून लागू किया है. अब चीन में 16 साल से कम उम्र के बच्चे दिन में डेढ़ घंटे से ज्यादा ऑनलाइन वीडियो गेम नहीं खेल सकते हैं. यह 90 मिनट इस्तेमाल करने का समय भी सुबह आठ से रात दस बजे तक है. शेष समय ऑनलाइन वीडियो गेम खेलने पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा. गेमिंग पर खर्च की भी सीमा तय की गयी है. बच्चे हर माह लगभग दो हजार रुपये तक ही गेमिंग पर खर्च कर सकते हैं, जबकि 16 से 18 आयु वर्ग के किशोरों के लिए यह राशि हर महीने लगभग चार हजार रुपये है. नये कानून के मुताबिक बच्चों को चीनी सोशल मीडिया वीचैट पर अपने अकाउंट, फोन नंबर और पहचान पत्र की पूरी जानकारी दर्ज करनी होगी. सरकार ने गेमिंग कंपनियों को भी अपने कंटेंट और नियमों में सुधार करने के निर्देश जारी किये हैं. चीनी अधिकारियों का दावा है कि ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्चों के स्वास्थ्य व व्यवहार पर सीधा असर डाल रही है.

ऑनलाइन गेमिंग की बढ़ती लत और हिंसा हमारे देश में भी चिंता का विषय है. युवाओं के बीच पबजी बहुत लोकप्रिय है. हालांकि इस पर प्रतिबंध है, लेकिन इंटरनेट की दुनिया में प्रतिबंध बहुत प्रभावी नहीं हो पाते हैं. यदि आप पबजी से नावाकिफ हों, तो बता दूं कि यह ऑनलाइन गेम है. इसमें हिस्सा लेने वाले खिलाड़ी को खुद को जीवित रखने और गेम जीतने के लिए दूसरों को मारना पड़ता है. यह गेम आपको एक ऐसी आभासी दुनिया में ले जाता है, जहां गोलियों की बौछार के बीच आपको अपने खिलाड़ी को जिंदा रखना होता है. यह सही है कि टेक्नोलॉजी की ताकत इतनी है कि उसके प्रभाव से कोई भी मुक्त नहीं रह सकता है. युवाओं को तो छोड़िए, हम आप भी इससे मुक्त नहीं रह सकते हैं. तकनीक के असर से अब बच्चे किशोर, नवयुवक जैसी उम्र की सीढ़ियां चढ़ने के बजाय सीधे वयस्क बन जा रहे हैं, शारीरिक रूप से नहीं, मानसिक रूप से. उनकी बातचीत व आचार-व्यवहार में यह बात साफ झलकती है. एक गंभीर स्थिति निर्मित होती जा रही है, जिसे लेकर कोई विमर्श नहीं हो रहा है.

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