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इस्राइल-फिलीस्तीन संघर्ष और भारत

प्रधानमंत्री मोदी पहले कार्यकाल में इस्राइल की यात्रा करना चाहते थे, लेकिन विदेश मंत्रालय मध्य पूर्व के देशों की प्रतिक्रिया को लेकर सशंकित था. काफी विमर्श के बाद यह तय हुआ कि तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पहले यात्रा करेंगे और इससे प्रतिक्रिया का अंदाजा लगेगा.

हमास के आतंकवादी हमले और इस्राइल की जवाबी कार्रवाई ने इस्राइली-फिलीस्तीनी संघर्ष के विमर्श को केंद्र में ला दिया है. इस्राइल पर हमास के हमले के बाद इस्राइल ने गाजा पट्टी में जो कार्रवाई की है, उससे दुनिया दो खेमों में बंट गयी है. विशेषज्ञों की राय में यह एक ऐसी घटना है, जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ने वाला है. भारत के सामने बड़ी चुनौती है, जो हमेशा से फिलीस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर मान्यता देने की वकालत करता आया है, लेकिन दूसरी ओर भारत किसी भी आतंकवादी कार्रवाई के खिलाफ खड़ा रहा है. दशकों से हम खुद पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का शिकार रहे हैं. इस विषय में कोई दो राय नहीं हो सकती कि हमास ने जिस तरह से इस्राइल में आम लोगों व बच्चों को निशाना बनाया, वह आतंकवादी और बर्बर कार्रवाई थी. दूसरी ओर यह भी समझने की जरूरत है कि इस्राइल की जवाबी सैन्य कार्रवाई से गाजा में रह रहे अनेक फिलीस्तीनी आम नागरिकों और बच्चों को जान गंवानी पड़ी है और गाजा पट्टी की पूरी आबादी संकट में फंस गयी है. इन दोनों की स्थितियों को तर्क के किसी भी पैमाने पर उचित नहीं ठहराया जा सकता. मेरा मानना है कि जो लोग और देश ऐसा कर रहे हैं, वे दरअसल, पूरे मसले को कमजोर कर रहे हैं.

मैंने पाया है कि अपने देश में किसी भी मसले को समझने से पहले राय पहले बना लेने की प्रवृत्ति बढ़ी है. हमें इस्राइल-फिलीस्तीनी संघर्ष को समझने की जरूरत है. गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक एक ही जगह नहीं हैं. ये दोनों अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्र हैं, जहां फिलीस्तीनी अरब लोग रहते हैं. गाजा इस्राइल और भूमध्य सागर के बीच स्थित एक जमीनी हिस्सा है. यह दो भागों में बंटे फिलीस्तीन क्षेत्र में से एक है. फिलीस्तीन का दूसरा हिस्सा वेस्ट बैंक अथवा पश्चिमी तट कहलाता है. गाजा भूमध्य सागर के तट पर स्थित 41 किलोमीटर लंबी और 10 किलोमीटर चौड़ी पट्टी है. इसकी सीमाएं मिस्र और इस्राइल से लगती हैं. इसकी भौगोलिक आकृति पट्टी नुमा होने की वजह से इसे गाजा पट्टी कहा जाता है. गाजा पट्टी पर 2007 के बाद से आतंकवादी संगठन हमास का नियंत्रण है. दूसरी ओर वेस्ट बैंक पर फिलीस्तीन अथॉरिटी का नियंत्रण है. किसी वक्त यासिर अराफात इसका नेतृत्व करते थे और अब लंबे अरसे से महमूद अब्बास इसके राष्ट्रपति हैं.

मुझे फिलीस्तीन क्षेत्र रमल्ला और इस्राइल के तेल अवीव व यरुशलम की यात्रा करने का अवसर मिला है. उस अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि इस विषय में भारत सरकार की राय सुस्पष्ट है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत दृढ़ता से आतंकवाद की निंदा करता है और वह इस मसले पर इस्राइल के साथ खड़ा है. दूसरी ओर विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया है कि हमास के इस्राइल पर हमले को भारत आतंकवादी हमले के रूप में देखता है. दूसरे, भारत समस्या का समाधान दो राष्ट्र के रूप में देखता है. यह सही है कि फिलीस्तीनियों को भारत के समर्थन में कमी आयी है और प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में इस्राइल के साथ रिश्तों का एक नया अध्याय खुला है. मौजूदा सच्चाई यह है कि भारत अब इस्राइल का एक भरोसेमंद सहयोगी है. वह इस्राइल से सैन्य साज-सामग्री खरीदने वाला सबसे बड़ा देश है. इस्राइल डेयरी, सिंचाई, ऊर्जा और बहुत से तकनीकी क्षेत्रों में भी भारत के साथ साझेदारी कर रहा है.

पुरानी घटना की चर्चा करना चाहता हूं. प्रधानमंत्री मोदी पहले कार्यकाल में इस्राइल की यात्रा करना चाहते थे, लेकिन विदेश मंत्रालय मध्य पूर्व के देशों की प्रतिक्रिया को लेकर सशंकित था. काफी विमर्श के बाद यह तय हुआ कि तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पहले यात्रा करेंगे और इससे प्रतिक्रिया का अंदाजा लगेगा, लेकिन प्रणब बाबू फिलीस्तीनी लोगों का साथ छोड़ने के पक्ष में नहीं थे. उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वह इस्राइल जायेंगे, लेकिन साथ ही फिलीस्तीन क्षेत्र रमल्ला में भी जायेंगे. विदेश मंत्रालय ने काफी माथापच्ची के बाद जॉर्डन, फिलीस्तीन और इस्राइल का कार्यक्रम बनाया. यात्रा में मध्य पूर्व के एक देश जॉर्डन को भी डाला गया, ताकि यात्रा सभी पक्षों की नजर आए. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ पत्रकारों का एक दल गया था, जिसमें मैं भी शामिल था. जॉर्डन से चल कर हम लोग तेल अवीव, इस्राइल होते हुए रमल्ला, फिलीस्तीन क्षेत्र पहुंचे. यह पूरा क्षेत्र अशांत है और आये दिन यहां गोलीबारी होती रहती है, लेकिन प्रणब दा तो ठहरे प्रणब दा. उन्होंने एक रात फिलीस्तीन क्षेत्र में गुजारने का कार्यक्रम बनाया था. उनके साथ हम सब पत्रकार भी थे. इस्राइली सीमा क्षेत्र और फिलीस्तीनी क्षेत्र में जगह-जगह सैनिक भारी अस्त्र शस्त्रों के साथ तैनात नजर आ रहे थे.

फिलीस्तीन में हम लोग फिलीस्तीनी नेता और राष्ट्रपति महमूद अब्बास के मेहमान थे. कोई भी बड़े देश का राष्ट्राध्यक्ष पहली बार फिलीस्तीन क्षेत्र में रात गुजार रहा था. हमें बताया गया कि नेता हेलीकॉप्टर से आते हैं और बातचीत कर कुछेक घंटों में तुरंत निकल जाते हैं. कोई नेता इस अशांत क्षेत्र में रात गुजारने का जोखिम नहीं उठाता है. यहां होटल आदि भी कोई खास नहीं थे. हम लोगों को एक सामान्य से दो मंजिला होटल में ठहराया गया, जिसमें ऊपर की मंजिल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और उनकी टीम ठहरी हुई थी और नीचे की मंजिल में मेरे जैसे कई पत्रकार ठहरे हुए थे. फिलीस्तीन क्षेत्र में प्रणब बाबू गार्ड ऑफ ऑनर में भी शामिल हुए. उनके सम्मान में आयोजित रात्रि भोज में भी उन्होंने शिरकत की, जिसमें फिलीस्तीन आंदोलन के चुनिंदा नेता शामिल हुए थे. अगले दिन फिलीस्तीन के अल कुद्स विश्वविद्यालय में उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया.

उसके बाद उनका भाषण था, लेकिन एक फिलस्तीनी छात्र की इसराइली सैनिकों की गोलीबारी में मौत के बाद वहां हंगामा हो गया. किसी तरह बचते बचाते हम सभी लोग यरुशलम, इस्राइल पहुंचे. प्रणब मुखर्जी ने इस्राइल की संसद को भी संबोधित किया. सब जगह प्रणब मुखर्जी ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी थी. मेरा मानना है कि प्रणब मुखर्जी ने ही एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी की इस्राइल यात्रा की नींव रखी थी. अनेक राजनयिकों की राय में इस विवाद का एक पक्ष यह भी है कि एक देश के साथ गहरे रिश्तों की कीमत लगभग 50 मुल्कों की नाराजगी के रूप में उठाना बहुत महंगा सौदा है. सामान्य मामलों में स्थिति यह है कि यदि आपके पासपोर्ट पर इस्राइल का वीजा लगता है, तो अनेक अरब देशों के वीजा के दरवाजे बंद हो जाते हैं. साथ ही मध्य-पूर्व में लाखों भारतीय काम करते हैं और भारत तेल आयात के लिए भी उन पर निर्भर है. इसलिए कोई भी राय बनाने से पहले सभी पहलुओं पर गौर अवश्य करें.

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