विभिन्न संचार माध्यमों जैसे रेडियो, टेलीविजन, रडार, रिमोट सेंसिंग सहित माइक्रोवेव ओवन की कार्यप्रणाली में बोस का उल्लेखनीय योगदान है. लेकिन उनके इस काम को उस समय दुनिया ने नहीं जाना. बाद में मार्कोनी ने जब रेडियो को लेकर काम किया, तो उन्हें इसके लिए नोबेल पुरस्कार मिला. पर बाद में अमेरिकी संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स ने स्पष्ट किया कि रेडियो के असली आविष्कारक मार्कोनी नहीं बोस थे. बोस सच्चे अर्थों में राष्ट्र प्रेमी थे. उन्हें विदेश से कई बार प्रलोभन मिला, पर वे भारत को ही अपनी कर्मस्थली बनाना चाहते थे.
उन्होंने खोज किया था कि हमारी तरह पेड़-पौधों को भी दर्द होता है. अगर पौधों को काटा जाए या उनमें जहर डाला जाए, तो उन्हें भी तकलीफ होती है और वे मर जाते हैं. उनकी इस खोज से जुड़ा एक किस्सा बहुत प्रसिद्ध है. अपने शोध को दिखाने के लिए उन्होंने एक कार्यक्रम का आयोजन किया और सबके सामने एक पौधे को जहर का इंजेक्शन लगाया. इसके बाद वहां बैठे वैज्ञानिकों से कहा कि अभी आप देखेंगे कि इस पौधे की मृत्यु कैसे होती है. लेकिन पौधे पर जहर का कोई असर नहीं हुआ.
अपनी खोज पर उन्हें इतना विश्वास था कि उन्होंने भरी सभा में कह दिया कि अगर इस इंजेक्शन का पौधे पर असर नहीं हुआ, तो मुझ पर भी इसका कोई असर नहीं होगा और खुद को इंजेक्शन लगाने लगे. तभी दर्शकों के बीच से एक व्यक्ति खड़ा हुआ और बोला, ‘मैं अपनी हार मानता हूं मिस्टर जगदीश चंद्र बोस, मैंने ही जहर की जगह मिलते-जुलते रंग का पानी डाल दिया था.’
इसके बाद बोस ने पौधे को जहर का इंजेक्शन लगाया और वह पौधा मुरझा गया. बोस सिर्फ बायोलॉजिस्ट ही नहीं, पॉलीमैथ, फिजिसिस्ट, बायोफिजिसिस्ट, बॉटनिस्ट और आर्कियोलॉजिस्ट भी थे. वर्ष 1973 की 23 नवंबर को वे इस दुनिया से विदा हो गये, पर उनके अनुसंधान आज भी वैज्ञानिकों का पथ-प्रदर्शन कर रहे हैं.