19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जेपी नड्डा और भाजपा की तीसरी लहर

विनम्र और हंसमुख नड्डा को दबा देना आसान नहीं है. तीन दशक के सार्वजनिक जीवन में उन पर एक भी दाग नहीं है. वे सिद्धांतकार या वक्ता नहीं हैं, पर परखने में उनकी नजर कमाल की है

मोदी की भाजपा में महत्व रखने वाली एकमात्र वंशावली पार्टी की नीति है. हिमाचल प्रदेश के एक सामान्य परिवार से संबंधित भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपने गृह राज्य में हार के बाद भी दोबारा मौका मिला है. उन्होंने कहा है कि उन्हें इस जिम्मेदारी का पूरा अहसास है, जिसे कई बड़े नेता संभाल चुके हैं. मोदी और शाह को उनसे बड़ी उम्मीदें हैं: 2024 में भाजपा की लगातार तीसरी जीत सुनिश्चित करना.

राष्ट्रीय कार्यकारिणी के निर्णय के बाद अमित शाह ने मीडिया को बताया कि बतौर अध्यक्ष नड्डा के कार्यकाल में भाजपा 120 से अधिक विभिन्न चुनाव लड़ी, जिनमें से 77 में पार्टी जीती. बिहार और महाराष्ट्र में पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया तथा बंगाल विधानसभा में 77 सीटें मिलीं, जो पहले केवल तीन थीं. दक्षिणी राज्यों में अच्छा माहौल बना है.

गोवा में जीत की तिकड़ी बनी और गुजरात में ऐतिहासिक जनादेश मिला. उन्होंने भरोसा जताया कि मोदी और नड्डा के नेतृत्व में भाजपा 2024 में अधिक सीटों के साथ बहुमत हासिल करेगी. साल 2014 में भाजपा को बदलकर इतिहास रचने वाले बड़े आदमी की यह बड़ी अपेक्षा है.

नड्डा न तो मोदी हैं और न ही शाह. वे अटल या आडवाणी भी नहीं हैं. लेकिन क्या वे अगले बड़े मौके के लिए सही व्यक्ति हैं? जून, 2024 तक के लिए ही उनका कार्यकाल बढ़ाया गया है. तब तक लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके होंगे. शाह को दो कार्यकाल मिले थे और उन्होंने उत्तर प्रदेश की निर्णायक जीत से अपनी क्षमता साबित भी की थी.

करिश्माई नेताओं द्वारा संचालित पार्टी में नड्डा का आकलन उनके राजनीतिक मूल्य से होगा. अटल-आडवाणी की जोड़ी ने एक बहिष्कृत संगठन को पुनर्जीवित किया तथा वैचारिक स्तर पर विरोधी व्यक्तियों एवं दलों के साथ मिलकर सरकार का गठन किया. नड्डा की प्रतिस्पर्धा कुशाभाऊ ठाकरे, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी जैसे बड़े नेताओं की विरासत से है.

ये नेता भी नीचे से ऊपर तक आये थे. मोदी ने भले ही पार्टी में जाति बाधा को तोड़ दिया है, पर 11 सांगठनिक प्रमुखों में नड्डा समेत छह ब्राह्मण हैं. भाजपा के एकमात्र दलित अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण रहे, जिन्हें एक स्टिंग ऑपरेशन के बाद शर्मनाक ढंग से हटना पड़ा था.

विनम्र और हंसमुख नड्डा को दबा देना आसान नहीं है. तीन दशक के सार्वजनिक जीवन में उन पर एक भी दाग नहीं है. वे सिद्धांतकार या वक्ता नहीं हैं, पर परखने में उनकी नजर कमाल की है. वे अपने निशाने को जानते हैं. उनकी केसरिया पृष्ठभूमि पर भी सवाल नहीं उठाया जा सकता है, जो शीर्ष नेताओं के लिए बेहद जरूरी योग्यता है. जबलपुर के पूर्व भाजपा सांसद की बंगाली बेटी से उनकी शादी हुई है.

वे विद्यार्थी परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध रहे हैं. वे पार्टी की सभी इकाइयों में रहे हैं- विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में पटना में छात्र चुनाव जीते, युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे, हिमाचल में तीन बार विधायक रहे, 2019 में भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बनने से पहले वे राज्य और केंद्र में मंत्री तथा पार्टी के महासचिव रहे थे.

साल 2020 में वे अध्यक्ष बने. उनके करियर से भले ही गुलाब की खुशबू आती है, पर उसमें कांटों की कमी नहीं रही. आज भाजपा अपनी शक्ति के शिखर पर है. उसके पास 400 से अधिक सांसद हैं. अकेले या गठबंधन के साथ 16 राज्यों में उसकी सरकार है. उसकी सदस्य संख्या 17 करोड़ से अधिक है.

वह दुनिया का सबसे धनी राजनीतिक संगठन है. नड्डा का मिशन इसे बढ़ाना है तथा छवि बिगाड़ने वालों के घमंड को काबू करना है, जो सत्ता के मद में छात्रों को पीटते हैं, जहाज के दरवाजे खोल देते हैं, मुहल्ले में आने वाले हर अनजान का धर्म पूछते हैं और सिनेमाघरों को धमकियां देते हैं. ये भाजपा के ऐसे नये विशेषाधिकार-प्राप्त नेताओं की श्रेणी है, जो मांग करते हैं कि उनकी प्रशंसा हो और उनका अनुसरण किया जाए.

कांग्रेस-विरोध की रणनीति कुछ कम कारगर प्रतीत हो रही है क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा को समर्थन मिल रहा है. केंद्र में नौ वर्षों से भाजपा सत्ता में है और कई राज्यों में उसके पांच साल पूरे हो चुके हैं. नड्डा के सामने एंटी-इनकंबेंसी की चुनौती है. मोदी ने इस समस्या को समझा है.

उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सलाह दी है कि पार्टी 18-25 साल के युवाओं से जुड़े और उन्हें पुरानी सरकारों के भ्रष्टाचार की याद दिलाये तथा अपनी सरकार की उपलब्धियों से अवगत कराये. हिंदुत्व और मोदीत्व के असरदार मिश्रण को ठीक से आगे ले जाना नड्डा का मिशन है.

सहयोगी दलों के साथ सामंजस्य भी एक सरदर्द है. नड्डा के सामने ढेर सारे उद्देश्य हैं, पर गुंजाइश बहुत कम है क्योंकि निर्णय शीर्ष द्वारा लिये जाते हैं. उनकी भूमिका निर्णायक की कम, लागू करने वाले की ज्यादा है. लेकिन वे शीर्षस्थ दो नेताओं की तरह ही बेहद मेहनती हैं.

साल 2014 में मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का आह्वान किया था. बीते नौ साल में डबल इंजन टीम ने देश और अधिकतर राज्यों में जीत हासिल की है. फिर भी कांग्रेस को मिटाने का उनका सपना अभी भी सपना ही है. राजनीतिक रूप से हाशिये पर किये जाने के बाद भी कांग्रेस का विचार अभी भी अस्तित्व में है. आखिर गांधी परिवार और कांग्रेस पर भाजपा के लगातार हमले को कैसे समझा जाए?

महाराष्ट्र में सरकार बनाने से चूक जाने और मध्य प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक में बहुमत नहीं पाने पर भाजपा ने विलय और अधिग्रहण के सहारे सरकारें गठित की. एक दशक में वह उन सात राज्यों को वापस नहीं पा सकी है, जहां वह सहयोगियों के साथ सत्ता में थी, हालांकि उसने गुजरात, उत्तर प्रदेश, असम और उत्तराखंड में दुबारा जीत हासिल की. जिन नौ राज्यों में 2024 से पहले चुनाव होंगे, उनमें से छह में भाजपा, दो में कांग्रेस और एक में टीआरएस उर्फ बीआरएस सत्ता में हैं.

भाजपा के समक्ष बड़ी चुनौती है क्योंकि दक्षिण भारत समेत कई राज्यों में उसके पास करिश्माई नेता नहीं हैं. नड्डा का आकलन सीटों से नहीं, बल्कि कांग्रेस मुक्त भारत की प्रक्रिया में तेजी लाने की क्षमता के आधार पर होगा. नड्डा बचपन में तैराक थे और उन्होंने अखिल भारतीय तैराकी प्रतियोगिता में भाग भी लिया था. उन्होंने चुनौतीपूर्ण स्थितियों को हंसते-मुस्कराते पार किया है. उनके दूसरे कार्यकाल में भाजपा की तीसरी लहर एक बेहद अहम क्षण होगा, जिसका इंतजार वे और उनके उस्ताद कर रहे हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें