सिक्किम में आयी बाढ़ ने हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं को लेकर फिर से आगाह किया है. आठ अक्टूबर को अचानक बाढ़ आने से मारे गये लोगों की वास्तविक संख्या अभी तक स्पष्ट नहीं है. तीस्ता नदी के तेज बहाव के बाद जमा कीचड़ और मलबे से शव बरामद हुए हैं, मगर बड़ी संख्या में लोग लापता हैं. बाढ़ की वजह दक्षिण ल्होनक नाम की एक ग्लेशियर झील के तटबंध का टूटना बताया जा रहा है. ये झीलें ग्लेशियरों के पिघलने से बनती हैं. बताया जा रहा है जिस झील के टूटने से बाढ़ आयी है उसे लेकर पहले भी चेतावनियां दी गयी थीं. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी के अनुसार प्रारंभिक तौर पर लगता है कि तेज बारिश से झील में पानी भरा और फिर उसके टूटने से बाढ़ आयी.
इसरो की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि इस झील का एक बहुत बड़ा हिस्सा एक सप्ताह के भीतर खाली हो गया, यानी उसका पानी बाहर निकल गया. कुछ रिपोर्टों से यह बात भी सामने आयी है कि झील में पानी काफी भरा, और फिर लगभग 55 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से नीचे बहने लगा. यानी आधी रात को अचानक से पानी इतनी तेज गति से नीचे आया कि लोगों को बचने का मौका नहीं मिला. सिक्किम में अभी जिस तरह से बाढ़ आयी है, ठीक वैसा ही कई बार पहले भी हुआ है. हाल के समय में वर्ष 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आयी गंभीर बाढ़ के समय भी चौराबरी झील का तटबंध टूटा था.
इसका पानी मंदाकिनी नदी में मिल गया जिससे बहुत तेजी से अचानक पानी का बहाव आया और तबाही मचा कर चला गया. जानकार हिमालय क्षेत्र में लंबे समय से ग्लेशियर झीलों के फटने की चेतावनी देते रहे हैं. जानकार बार-बार दो बातों का ध्यान दिलाते हैं. पहला, कि जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं, और एक ही स्थान पर लंबे समय तक और ज्यादा बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं. दूसरा, हिमालय क्षेत्र में बांधों और पनबिजली परियोजनाओं से, इस क्षेत्र का भौगोलिक ढांचा प्रभावित हो रहा है. केदारनाथ की आपदा के 10 साल बाद अब सिक्किम में बाढ़ ने तबाही मचायी है. भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए हिमालय क्षेत्र में खास तौर से ग्लेशियरों की समुचित निगरानी की व्यवस्था की जानी चाहिए, जिनकी संख्या बहुत ज्यादा है.