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परिवारों का बढ़ता कर्ज

Loan pressure on families: यह संतोषजनक है कि परिवार आवास के लिए अधिक कर्ज ले रहे हैं और पारिवारिक बचत में भी कमोबेश स्थिरता है, पर व्यक्तिगत कर्ज, क्रेडिट कार्ड आदि के कारण बचत पर प्रभाव पड़ने की आशंका है.

Loan pressure on families: हमारे देश में पारिवारिक कर्ज की मात्रा सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का 38 प्रतिशत हो चुकी है. यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2023 का है. केयर एज रेटिंग्स की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, आवास कर्ज और असुरक्षित ऋण (पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड उधार आदि) में बढ़ोतरी के कारण परिवारों पर कर्ज का दबाव बढ़ता जा रहा है. हालांकि जीडीपी की तुलना में मौजूदा अनुपात वित्त वर्ष 2021 के 39.2 प्रतिशत से कम है, पर ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका जैसी अनेक उभरती अर्थव्यवस्थाओं से यह अधिक है. हालांकि यह संतोषजनक है कि परिवार आवास के लिए अधिक कर्ज ले रहे हैं और पारिवारिक बचत में भी कमोबेश स्थिरता है, पर व्यक्तिगत कर्ज, क्रेडिट कार्ड आदि के कारण बचत पर प्रभाव पड़ने की आशंका है.

इस वर्ष जून में भारतीय रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में रेखांकित किया गया था कि कुल पारिवारिक बचत में वित्तीय बचत का अनुपात 2022-23 में 28.5 प्रतिशत था, जो 2013-22 के औसत 39.8 प्रतिशत से बहुत कम है. साल 2013 और 2022 के बीच औसत बचत जीडीपी का 20 प्रतिशत रही थी, पर 2022-23 में यह आंकड़ा घटकर 18.4 प्रतिशत पर आ गया. कोरोना महामारी के बाद उपभोग और निवेश के लिए वित्त हासिल करने के कारण खुदरा कर्ज में बढ़ोतरी हो रही है. कृषि और कारोबारी ऋण में भी बढ़त हो रही है.

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में जीडीपी की तुलना में घरेलू कर्ज की मात्रा 40 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गयी थी. अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ भारत की वित्तीय व्यवस्था भी मजबूत है. अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की मात्रा इस वर्ष मार्च तक 2.8 प्रतिशत के स्तर पर आ गयी, जो 12 वर्षों में सबसे कम है. फिर भी, पारिवारिक बचत में गिरावट और कर्ज में बढ़ोतरी को लेकर रिजर्व बैंक ने बैंकों को सजग रहने की सलाह दी है. बैंक ऑफ बड़ौदा के एक अर्थशास्त्री का आकलन है कि वित्त वर्ष 2024 में नये एनपीए में खुदरा कर्ज चुकाने में विफलता की मात्रा 40 प्रतिशत रही थी, जबकि कुल कर्ज में इन कर्जों का अनुपात 21.3 प्रतिशत ही है.

ऐसे में रिजर्व बैंक का चिंतित होना स्वाभाविक है. कुछ वर्षों से मुद्रास्फीति की दर अधिक रहने का दबाव भी बचत पर पड़ा है. अब जब इस दर में गिरावट आयी है, तो यह आशा की जा सकती है कि इसका सकारात्मक असर बचत वृद्धि के रूप में सामने आयेगा. रिजर्व बैंक और अन्य बैंक समय-समय पर अपने ग्राहकों को आगाह करते रहते हैं कि वे व्यक्तिगत कर्ज लेने और क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने में सावधानी बरतें. भारत में यह सांस्कृतिक समझ हमेशा से रही है कि जितनी बड़ी चादर हो, उतना ही पैर फैलाना चाहिए. खर्च, बचत और कर्ज में संतुलन रखना जरूरी है.

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