15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

परीक्षा प्रणाली में बड़े सुधार जरूरी

नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) विभिन्न परीक्षाओं के साथ चार बड़ी परीक्षाएं आयोजित करती है- नीट, जेइइ, यूजीसी-नेट और सीयूइटी.

लगभग 25 वर्ष पहले आइआइटी, बंबई के निदेशक पद का कार्यकाल पूरा करने के तुरंत बाद प्रो सुहास सुखात्मे का एक साक्षात्कार प्रकाशित हुआ था. उनसे एक प्रश्न यह पूछा गया था कि पांच साल के उनके कार्यकाल की कुछ विशेष बातें क्या रहीं. उन्होंने एक पंक्ति में जवाब दिया- ‘मुझे किसी ने अपने बच्चे का प्रवेश कराने के लिए नहीं कहा.’ इस उत्तर का गहरा महत्व है. इससे पहली बात तो यह निकलती है कि आप निदेशक को प्रभावित कर प्रवेश नहीं पा सकते. दूसरी बात, ‘तंत्र’ का कोई व्यक्ति ऐसा कहने या करने की सोच भी नहीं सकता. मंत्री, उद्योगपति, राजनेता या अभिजन, कोई भी हो, प्रवेश परीक्षा के अलावा किसी अन्य तरीके से आइआइटी में दाखिला पाने के बारे में सोच नहीं सकता था. यह एक अलिखित नियम था, जो समय के साथ एक कायदा बन गया, जिसे सभी मानते थे. यह नियम संयुक्त प्रवेश परीक्षा की पवित्रता में भरोसे के कारण बना रहा और यह पवित्रता अनुल्लंघनीय थी. इसी कारण अन्य कुछ संस्थानों ने भी इस परीक्षा के अंकों को अपने यहां प्रवेश का आधार बनाया. यह प्रणाली लगभग चार दशकों तक चलती रही, जब केवल पांच आइआइटी संस्थान थे और परीक्षार्थियों की संख्या का प्रबंधन हो सकता था. परीक्षा की पूरी प्रक्रिया का संचालन बारी-बारी से आइआइटी संस्थान करते थे. आइआइटी के प्राध्यापकों की पीढ़ियों ने यह सुनिश्चित किया कि परीक्षा की शुचिता बनी रहे.

लेकिन एक समय के बाद यह संभव नहीं रहा. आपूर्ति और मांग के बीच खाई बढ़ती गयी. आइआइटी में प्रवेश के लाभ आसमान छूने लगे. कोचिंग क्लास उद्योग मनमाने तरह से चलने लगे. ऐसे में सीट बढ़ाने की जरूरत पैदा हुई. आइआइटी संस्थानों की संख्या बढ़ी, प्रवेश अधिक होने लगे और आवेदकों की तादाद भी बहुत हो गयी. साल 2013 के आसपास यह गंभीर नीतिगत चर्चा होने लगी कि सभी इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों के लिए देशभर में एक परीक्षा की व्यवस्था हो. इसका उद्देश्य छात्रों और अभिभावकों को कई प्रवेश परीक्षाओं में बैठने की मुश्किलों से राहत दिलाना था. साथ ही, इससे देश में परीक्षाओं के स्तर भी समान होते. कोचिंग उद्योग द्वारा पैदा की गयी खाई और उनकी भारी कमाई से जुड़ी चिंताएं भी थीं. सो, हम ‘एक परीक्षा’ व्यवस्था में आ गये. साल 2017 में एक अलग एजेंसी गठित की गयी, जिसे नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) नाम दिया गया. यह एजेंसी विभिन्न परीक्षाओं के साथ चार बड़ी परीक्षाएं आयोजित करती है- मेडिकल प्रवेश के लिए नेशनल एलिजीबिलिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट (नीट), इंजीनियरिंग प्रवेश के लिए ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम (जेइइ), यूजीसी-नेट और सेंट्रलाइज्ड यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूइटी). बीते कुछ वर्षों से इन सभी परीक्षाओं के अनुभव गड़बड़ियों से अछूते नहीं रहे हैं. इससे छात्रों और अभिभावकों की चिंताएं बहुत बढ़ी हैं. इन परीक्षाओं की तैयारी में अमानवीय दबाव के कारण छात्रों में आत्महत्या के बढ़ते मामलों को भी नहीं भूलना चाहिए.

इस साल नीट (अंडरग्रेजुएट) और यूजीसी-नेट परीक्षाओं में गड़बड़ी को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. यूजीसी-नेट परीक्षा 19 जून को होने वाली थी. उसे महज एक दिन की सूचना पर रद्द कर दिया गया. इस परीक्षा में देशभर के 317 शहरों में लगभग नौ लाख छात्र बैठने वाले थे. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने इसलिए इस परीक्षा को रद्द किया क्योंकि उसे पर्चे लीक होने की आशंका थी. इससे पहले से ही नीट (अंडरग्रेजुएट) का मामला गर्म था, जिसके परिणाम चार जून को घोषित हुए थे. संयोग से उसी दिन लोकसभा चुनाव के नतीजे भी आये थे. इस परीक्षा में 571 शहरों और 4750 केंद्रों में 24 लाख छात्र शामिल हुए थे. लेकिन परिणामों में गड़बड़ियां लग रही थीं. जितने अंक लाकर पिछले साल 6800 के आसपास रैंक हासिल की जा सकती थी, इस बार उतने अंक में 21 हजार की रैंक मिली. इतना ही नहीं, 67 छात्रों को पूरे अंक मिले, जिनमें से छह छात्रों के क्रमांक एक ही अनुक्रम में थे और इनका परीक्षा केंद्र भी एक ही था. इससे रोष फैलना स्वाभाविक था. जब छात्रों ने सोशल मीडिया पर अपने अंकों को साझा किया, तो एक अजीब-सी बात देखी गयी, जिसका खुलासा एनटीए ने नहीं किया था. वह बात यह थी कि 1563 छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिये गये थे, जिसके बारे में किसी पूर्व शर्त की घोषणा नहीं की गयी थी. ऐसे अंक दिव्यांग छात्रों को ठोस कारणों से दिये जा सकते हैं, लेकिन इस मामले में वे इसलिए दिये गये क्योंकि परीक्षा केंद्र पर प्रश्न पत्र बहुत देर से पहुंचे थे.

तब तक पूरा मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंच चुका था. ग्रेस मार्क्स को रद्द किया गया और पुनः परीक्षा का आदेश दिया गया. बड़े पैमाने पर पर्चा लीक होने की आशंका तथा एनटीए के दोषपूर्ण प्रणाली से जुड़े सवाल अभी हैं. ऐसा लगता है कि नकल का बड़ा घोटाला हुआ है. इस संबंध में बिहार और गुजरात में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई हैं. न तो यह कहानी अभी खत्म हुई है और न ही छात्रों और अभिभावकों का भारी तनाव कम हुआ है. आज बड़े बदलावों और सुधारों की आवश्यकता है. ऑप्टिक मार्क्स रिकॉग्निशन (ओएमआर) के इस्तेमाल वाली परीक्षाओं के लिए उनको छापने, ढोने और सुरक्षित केंद्रों पर ले जाने की जरूरत होती है. अब ऐसी व्यवस्था की प्रासंगिकता नहीं है. महाराष्ट्र की एक महत्वपूर्ण सरकारी परीक्षा एजेंसी लगभग 15 साल पहले ही स्क्रीन-बेस्ड सिस्टम को अपना चुकी है. अत्याधुनिक तकनीकों के इस दौर में हमें ओएमआर जैसे तरीके की जरूरत नहीं है.

कंप्यूटर से सवालों के क्रम को ऐसे बदला जा सकता है कि सवाल बनाने वाले को इसका पता पर्चा सामने आने पर ही लगे. तकनीक आधारित समाधानों को देश में कई जगहों पर अपनाया गया है. हमें एक परीक्षा और एक राष्ट्रीय एजेंसी पर भारी दबाव को कम करना चाहिए. हम दो या इससे अधिक टेस्ट की व्यवस्था कर सकते हैं, जो प्रतिस्पर्धात्मक हों. इसमें कुछ निजी कंपनियों को भी शामिल किया जा सकता है. तीसरा सुधार दीर्घकालिक है, जिसमें हमें मांग और आपूर्ति की बड़ी खाई को कम करना होगा. इसका यह भी अर्थ है कि हम शिक्षा क्षेत्र को जकड़न से मुक्त करें तथा उच्च शिक्षा के संस्थानों को पाठ्यक्रम तय करने, शिक्षक भर्ती करने और उनका वेतन तय करने, शुल्क का निर्णय लेने आदि में अधिक स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता दें. अन्यथा हमारे लाखों युवा अपनी महत्वपूर्ण युवावस्था को मनोवैज्ञानिक बोझ के साथ परीक्षा की तैयारी और बार-बार परीक्षा देने में बर्बाद करते रहेंगे, जहां सफलता मिलना लॉटरी लगने से भी अधिक मुश्किल है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें